नई दिल्ली। विपक्ष द्वारा असंसदीय शब्दों की नई लिस्ट को लेकर लोकसभा सचिवालय पर सवाल उठाए जा रहे हैं। इस बीच लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने गुरुवार को स्पष्ट किया कि किसी भी शब्द पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है और सचिवालय ने उन शब्दों का संकलन जारी किया है जिन्हें पहले सदन में हटा दिया गया था। बिरला ने कहा कि निष्कासन के लिए चुने गए शब्दों का इस्तेमाल सत्ता पक्ष के सदस्यों के साथ-साथ विपक्ष ने भी किया है।
प्रेस कांफ्रेंस में ओम बिरला ने कहा, "जिन शब्दों को हटा दिया गया है, वे विपक्ष के साथ-साथ सत्ता में पार्टी द्वारा संसद में कहे/उपयोग किए गए हैं। केवल विपक्ष द्वारा इस्तेमाल किए गए शब्दों के चुनिंदा निष्कासन के रूप में कुछ भी नहीं...किसी भी शब्द पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है, उन शब्दों को हटा दिया गया है जिन पर पहले आपत्ति थी।"
उन्होंने कहा, "पहले इस तरह के असंसदीय शब्दों की एक किताब का विमोचन किया जाता था...कागजों की बर्बादी से बचने के लिए हमने इसे इंटरनेट पर डाल दिया है। किसी भी शब्द पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है, हमने उन शब्दों का संकलन जारी किया है, जिन्हें हटा दिया गया है। यह 1959 से जारी एक नियमित अभ्यास है।"
इससे पहले संसद के कई वरिष्ठ सदस्यों ने लोकसभा सचिवालय की उस रिपोर्ट की आलोचना की, जिसमें "असंसदीय" के रूप में नामित शब्दों की एक सूची जारी की गई थी। बिरला ने कहा कि सदस्य अपने विचार व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं; कोई भी उस अधिकार को नहीं छीन सकता है लेकिन संसद की मर्यादा के अनुसार होना चाहिए।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा, "शब्दों को हटाने का निर्णय संदर्भ और अन्य सदस्यों द्वारा उठाई गई आपत्तियों को ध्यान में रखते हुए लिया गया।" लोकसभा सचिवालय ने एक पुस्तिका प्रकाशित की जिसमें 'शर्मिंदा', 'जुमलाजीवी', 'तानाशाह', 'दुर्व्यवहार', 'विश्वासघात', 'भ्रष्ट', 'नाटक', 'पाखंड' और 'अक्षम' जैसे शब्दों को असंसदीय अभिव्यक्तियों के रूप में सूचीबद्ध किया गया था।
विपक्ष ने सरकार पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि उसने "यह वर्णन करने के लिए कि भाजपा भारत को कैसे नष्ट कर रही है" उनके द्वारा इस्तेमाल किए गए हर शब्द को असंसदीय के रूप में सूचीबद्ध किया। बिरला ने कहा कि संसदीय प्रथाओं से अनजान लोग हर तरह की टिप्पणियां कर रहे हैं और कहा कि विधायिकाएं सरकार से स्वतंत्र हैं।
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