स्मृति शेष....इतना स्नेह करने वाले पंकज भैया


प्रिय और मजबूत साथी
हम सब के प्रिय और मजबूत साथी, हंसते रहने वाले, मददगार पंकज का यह समाचार स्तब्ध कर गया। 
- वरिष्ठ पत्रकार काशीनाथ शर्मा 
बड़े भाई सा स्नेह दिया
पंकज भाई का जाना हम सब की व्यक्तिगत क्षति है। हालांकि हम लोग नव-भारत में सहयोगी के रूप में काम करते थे लेकिन मुझे हमेशा उन्होंने बड़े भाई सा स्नेह दिया। हमेशा इतनी आत्मीयता से मिलते थे कि मन गदगद हो जाता था। उनके साथ अनगिनत अच्छी यादें है और वे यही यादें छोड़कर हम सब के बीच से विदा हो गए।  
- वरिष्ठ पत्रकार अजय त्रिपाठी 

यकीन नहीं हो रहा
बेहद दुखद, निजी तौर पर अपूर्णनीय क्षति। उनका सदैव स्नेह मिला। जबलपुर से नरसिंहपुर आया तब भी उनका जुड़ाव हमेशा रहा। यकीन नहीं हो रहा वे नहीं रहे
- पत्रकार मयंक तिवारी

वो आखिरी मुलाकात
पंकज भाई से 2 अक्टूबर की रात करीब 12 बजे खेरमाई मन्दिर में आखिरी मुलाकात हुई। वही जिंदादिली और बेबाक टिप्पणियों से सराबोर रही पूरी चर्चा। उस वक्त यह कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि उनसे यह आखिरी मुलाकात है।  सुबह मिली हृदय विदारक खबर ने चेतना शून्य कर दिया। 
- पत्रकार संजय गोस्वामी 

अविश्वसनीय 
विश्वास ही नहीं हो रहा, पूरी तरह फिट रहने और दिखने वाला पंकज कैसे जा सकता है? 
- वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र मोहन रिछारिया 

अविश्वसनीय, अत्यंत दुखद
हरदिल अजीज प्रिय पंकज के अचानक निधन ने हजारों दिलों को गमगीन कर दिया। पंकज जिस किसी के भी सम्पर्क रहे ...चहेते रहे।
- पत्रकार इंद्रभूषण द्विवेदी 

बातें आखिरी होंगी किसे पता!
अविश्वसनीय खबर,कल रात करीब 12 बजे तक पंकज, अनिल दीक्षित और मैं साथ में थे,पंकज के चेहरे में थोडी उदासी सी जरूर दिख रही थी, सोचा कि अखबारों में काम का टेंशन रहता हैं शायद यही वजह होगी, पर विधि का विधान, यह मुलाकात व बातें आखिरी होंगी किसे पता!
- वरिष्ठ पत्रकार  नलिन कांत बाजपेयी 

नि:शब्द
पत्रकारिता में मेरे मार्गदर्शक प्रिय मित्र, संपादक आदरणीय पंकज पटेरिया जी के आकस्मिक निधन से नि:शब्द हूं। सादर नमन, विनम्र श्रद्धांजलि।
- पत्रकार हाजी मुईन खान

हे! भगवान, पंकज भैया, ऐसा कैसे हो सकता है
प्यारे भाई क्या हाल है, बहुत दिन बाद मिले, पर काम अच्छा कर रहे हो, तुम्हारी वो खबर बहुत अच्छी लगी, प्रभाकर बहुत मेहनत करते हो, एक-एक पेज लिख डालते, हर विषय पर लिखते हो, देखकर अच्छा लगता, पर अपनी सेहत का भी ध्यान रखा करो, रोज टहलना, योग करना अपनी आदत में शामिल कर लो, मुझे अच्छी तरह याद है जब बीजेसी करके इंटर्नशिप करने आए थे, मैंने पहले ही असाइनमेंट में पहचान लिया था तुम कुछ बड़ा करोगे, प्रभाकर बहुत अच्छा काम कर रहा है पीयूष, अनिल, पंकज भैया का प्यार, दुलार सदैव मिला, भले ही उनके साथ काम करने का सौभाग्य नहीं मिला पर उनका मार्गदर्शन, आशीर्वाद सदैव प्राप्त होता रहा, कभी सार्वजनिक रूप से सबके सामने तो कभी फोन पर, सोशल मीडिया में या उन जगहों पर भी जहां मैं मौजूद नहीं होता था, मेरे साथियों, वरिष्ठ जनों से, 1 महीने पहले का संवाद ऐसा लग रहा है जैसे कल का ही है, एक दिन बोले तुम्हारी खबरों में अब नाम की जरूरत नहीं होती, शब्द और लिखने का स्टाइल बता देता है कि खबर तुम्हारी है, अब आपका वो स्नेह, प्यार, लाड़, दुलार कहां मिलेगा भैया, पंकज भैया का खिलखिलाता चेहरा, पर दुर्भाग्य आप इतनी जल्दी छोड़ गए हम सबको, आप रोज कई किलोमीटर पैदल चलते थे, योग करते थे, पर दुर्भाग्य नियति ने आपको हम सबसे छीन लिया, पर आप ऐसे सबको छोड़कर चले जाओगे किसी को अंदाजा नहीं था, आप सबको रुला गए भैया!! भगवान जी आपको अपने श्री चरणों में स्थान दें!
- पत्रकार प्रभाकर मिश्रा 

कह गए, आने वाला समय बहुत कठिन है...
■ काय .....इत्ती लेट काय हो गए....हम सोच ई रये थे कि अब तक काय नई आये...सम्पूर्ण और कल्ली कहाँ हैं....
ये बात ठेठ दीक्षितपुरिया भाषा मे पंकज भैया ने हमसे कल उस समय बोली.... जब रात 10 बजे मक्रवाहिनी से महाआरती लेकर हम लोग छोटी देवन पहुँचे.....तो पंकज भैया वहीं खड़े थे....जब तक आरती होती रही उनने मुझे पंडाल की झांकी में लिखे गए कोटेशन पढ़वा दिए... वे बोले इस बार तुमाई मन की झांकी और कोटेशन हैं...सब को बोलो जरूर देखें ...मैने स्वीकृति में सर हिलाया तो उन्होंने कंधे पर हाथ रखते हुए कहा..की प्यारे भाई आने वाला समय बहुत कठिन है.....

"जम्प" (जर्नलिस्ट यूनियन ऑफ एमपी ) में पहले वे प्रदेश सचिव थे ...उनके छोड़ने के बाद जब में उनके स्थान पर सचिव बना तो उन्होंने मुझे सिविक सेंटर में बुलाया और बड़े लाड़ से सीने से लगा लिया । फिर बहुत सारे निर्देश दिए ....भोपाल में रहा तो वे लगातार संपर्क में रहते....लिखने को तो बहुत है....पर दुखी कलम बहुत द्रवित है ....कारण वही कि ......मेरा सम्बल रहे ...पंकज भैया, अब नहीं रहे...। 

माँ मक्रवाहिनी उन्हें अपने चरणों मे स्थान प्रदान करें...भैया हो सके तो लौट आओ
- पत्रकार विलोक पाठक 

अपूरणीय क्षति 
नव भारत के बाद प्रदेश टुडे में एक साथ काम करने का अनुभव रहा, पंकज भाई का जाना व्यक्तिगत क्षति से कम नहीं। 
- मदन अवस्थी, वरिष्ठ मीडिया प्रबंधक 

नि:शब्द हूं, स्तब्ध हूं
मैंने पंकज भैया के साथ प्रदेश टुडे में पूरे पांच साल काम किया। इन सालों में कभी एहसास नहीं हुआ कि वो संपादक है। हमेशा उनसे आत्मीय लगाव रहा, हर मुद्दे पर बात करता था।  मेरे परिवार के सदस्य भी दिल से जुड़ गए थे। जब कभी प्रबंधन से बातचीत का मसला हो या फिर खबरों को लेकर चर्चा वो हमेशा मुझसे कहते थे नीरज टेंशन मत लिया करो। उनके साथ बिताए गए पल हमेशा अपने पास रखूंगा। 
 - पत्रकार नीरज उपाध्याय 

इतना स्नेह करने वाले पंकज भैया

रोज सुबह मेरा और उनके ऑफिस आने का समय एक होता। उनकी कार के बिल्कुल बाजी से मेरी गाड़ी रखी खड़ी होती और वे एक ही शब्द कहते और प्यारे भाई सब ठीक है। इतना कहने के बाद 2 मिनट चर्चा होती। फिर अपने ऑफिस चले जाते। यदि किसी और की गाड़ी खड़ी हो जाए तो वह मेरे लिए उस गाड़ी को हटवा देते थे। इतना स्नेह इतना प्रेम करने वाले पंकज भैया, कल आखरी बार प्यारे भाई कह पाए और आज सदा के लिए विदा हो गए। 
 - पत्रकार लाली कोष्टा



  

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