नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार पीड़िताओं का टू फिंगर टेस्ट करने की प्रथा को महिलाओं की गरिमा के खिलाफ बताते हुए इसकी निंदा की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस प्रथा का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। इससे यौन उत्पीडऩ का शिकार महिलाएं फिर से पीड़ित होती हैं।
टू-फिंगर परीक्षण यौन उत्पीडऩ और बलात्कार की शिकार महिलाओं के बारे में यह जानने के लिए किया जाता है कि वे सेक्स की अभ्यस्त हैं या नहीं। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह सोच पितृसत्तात्मक और लैंगिकतावादी है कि किसी महिला के अपने साथ बलात्कार होने की बात पर सिर्फ इसलिए विश्वास नहीं किया जा सकता कि वह यौन रूप से सक्रिय है। यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि दुष्कर्म पीड़िताओं के परीक्षण की टू-फिंगर प्रणाली समाज में आज भी व्याप्त है।
टू फिंगर परीक्षण करने वाले को कदाचार का दोषी माना जाएगा
न्यायालय ने कहा कि टू-फिंगर परीक्षण करने वाले किसी भी व्यक्ति को कदाचार का दोषी ठहराया जाएगा। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने झारखंड सरकार की याचिका पर बलात्कार और हत्या की घटना के दोषी शैलेंद्र कुमार राय उर्फ पांडव राय नामक व्यक्ति को बरी करने के झारखंड उच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया और उसे गुनहगार करार देने के एक निचली अदालत के फैसले को कायम रखा। पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत के एक दशक पुराने एक फैसले में टू-फिंगर परीक्षण को महिलाओं की गरिमा और निजता का उल्लंघन बताया गया था। दुर्भाग्य की बात है कि यह प्रणाली अब भी व्याप्त है।
शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों के अधिकारियों को कुछ निर्देश जारी किए और राज्यों के पुलिस महानिदेशकों तथा स्वास्थ्य सचिवों को यह सुनिश्चित करने को कहा कि टू-फिंगर परीक्षण नहीं हो। इसने कहा कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने यौन हिंसा के मामलों में स्वास्थ्य प्रदाताओं के लिए 19 मार्च 2014 को दिशा-निर्देश जारी किए थे जिसमें टू फिंगर परीक्षण को प्रतिबंधित किया गया था।
पाठ्यक्रम से हटाने का आदेश
पीठ ने केंद्र और राज्य के स्वास्थ्य सचिवों को निर्देश दिया कि सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों के पाठ्यक्रम से टू-फिंगर परीक्षण से संबंधित अध्ययन सामग्री को हटाया जाए।
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