प्यारे भाई पंकज अलविदा



जबलपुर। आज सुबह जैसे ही पंकज पटरैया (पटेरिया नहीं) के निधन की जानकारी मिली तो सहसा विश्वास नहीं हुआ कि वे इतनी जल्दी हम सब लोगों को अलविदा कह देंगे। दिन भर प्रदेश टुडे की खबरों से जूझने के बाद वे देर रात तक अपनी वेबसाइट विराज भारत में खबर को अपलोड करते रहते थे। कल रात में भी उन्होंने कुछ खबरों को अपलोड किया था। वर्षों से पंकज पटरैया जबलपुर की पहली ड‍िटेक्टि‍व (Detective) एजेंसी शुरू करने की तैयारी कर रहे थे। उनके जीवन का यह पहला महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट था। इन सब के बीच वे अपने स्वभाव के अनुसार जबलपुर और बाहर जीवंत सम्पर्क बनाए रखते थे। संभवत: पंकज पटरैया जबलपुर के एकमात्र संपादक थे जो लोगों से खबर व फोटो व्यक्ति‍गत तौर पर मांग कर छापते थे। 
  • तीन पीढ़ी के सेतु
पंकज पटरैया दरअसल जबलपुर की पत्रकारिता की तीन पीढ़ी के सेतुबंध थे। भगवतीधर वजापेयी, मायाराम सुरजन से ले कर मोहन शश‍ि व उनके समकालीन और वर्तमान पत्रकारिता के नौजवानों के बीच पंकज पटरैया सदैव सेतुबंध का काम करते रहे। उन्होंने संपादक बनने के बाद भी स्वयं को कभी चेम्बर तक सीमित नहीं रखा, बल्क‍ि उनकी पहुंच ज्यादा लोगों तक हो गई। उनके सरोकार व्यक्त‍िगत नहीं बल्क‍ि सामाजिक थे।  
  • संबंधों को निभाना जानते थे 
मैंने अपने पत्रकारिता व जनसम्पर्क क्षेत्र में ऐसा पत्रकार नहीं देखा जिसका राजनैतिज्ञ, ब्यूरोक्रेट, डाक्टर, धर्म गुरू, कुलपति, सामाजिक कार्यकर्त्ताओं, छात्र नेताओं, महिला संगठनों और न जाने कितने लोगों व संस्थाओं से प्रत्यक्ष व्यक्त‍िगत संबंध थे। पंकज पटरैया निबाहते भी खूब थे। पत्रकारों के मुद्दों से ले कर शासकीय व सामाजिक स्तर पर वे आधी रात में सहायता देने के लिए तत्पर रहते थे। उनके इस सहयोगी भावना के मेरे पास असंख्य अनुभव हैं। इन सरोकार के कारण पंकज पटरैया अपने पारिवारिक व व्यक्त‍िगत कामों को नहीं कर पाते थे। याद दिलाने पर ‘’देख लेंगे’’ कह कर फिर भूल जाते थे। पंकज पटरैया का स्वभाव रहा कि वे मिलने वाले पर इतना भरोसा कर लेते थे कि कई बार उन्हें छला भी गया। उन्होंने स्वभाव के अनुसार कभी ऐसी बातों पर क्षोभ तक व्यक्त नहीं किया।
  • परिवार के सभी बच्चों के वे अभ‍िभावक
दीक्ष‍ितपुरा का संयुक्त पटरैया परिवार आज के युग में एक मिसाल ही है। अग्रज मयंक और अनुज नीरज व धीरज, पंकज भाई के कारण निश्चित ही रहते थे। परिवार के सभी बच्चों के वे अभ‍िभावक थे। बेटे व बेटी की चिंता से ज्यादा उनको भतीजे व भतीजियों की चिंता रहती थी। स्कूल में टीचर-पेरेंट्स मीट‍िंग में पंकज पटरैया सभी बच्चों के अभ‍िभावक के रूप में मौजूद रहते थे। मयंक भाई की बेटी को किस ट्रेन से बाहर जाना है, यह चिंता का विषय मां-पिता का नहीं पंकज भाई का रहता था। 
  • पत्रकारिता की शुरूआत दैनिक भारती से
पंकज पटरैया के पत्रकारिता जीवन की शुरूआत जबलपुर में दैनिक भारती से हुई। इसके बाद वे रीवा से प्रकाश‍ित होने वाले दैनिक जागरण से लंबे समय तक जुड़े रहे। दैनिक जागरण और उसके मालिक राजीव मोहन गुप्त के लिए उन्होंने काम करते हुए जी-जान लगाई। जग संवाद, जबलपुर एक्सप्रेस, स्वतंत्र मत और नवभारत में रिपोर्ट‍िंग व डेस्क में काम करते हुए पंकज पटरैया ने नए आयाम स्थापित किए। पंकज पटरैया के आयु में अंतर होने के बावजूद प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंड‍िया (पीटीआई) के हरि‍हर सहाय वर्मा और यूएनआई के रामानुज शुक्ल से मधुर संबंध थे। हर‍िहर सहाय वर्मा के साथ सिगरेट पीने का साहस सिर्फ पंकज पटरैया ही कर सकते थे। 
  • जिससे मिले उसी के होकर रह गए 
नब्बे के दशक में पत्रकारिता जीवन में पंकज पटरैया व हिन्दी एक्सप्रेस के हुनैद ज़माल की जो़ड़ी जबलपुर में प्रसि‍द्ध रही। पंकज पटरैया की हल्की चाकलेटी रंग की बिना स्टेपनी वाली वेस्पा स्कूटर में यह लोग शहर की परिक्रमा लगाते थे। पंकज पटरैया के अभ‍िन्न साथ‍ियों में चंदू यादव व अख‍िलेश पांडे भी रहे। ये दोनों साथी पंकज पटरैया की स्कूटर में लद कर दिन भर घूमते थे। मुझे भी पंकज पटरैया की इस स्कूटर में कई बार बैठ कर घूमने का मौका मिला। 
  • पुरानी इमारत को बनाया ठ‍िकाना
पंकज पटरैया का लंबे समय तक ठ‍िया होम साइंस कॉलेज से शास्त्री ब्रिज मार्ग पर दाएं ओर की पुरानी इमारत रही। यहां जगमोहन पाठक व विनय अम्बर स्क्रीन प्र‍िटिंग का काम करते थे। यह ठ‍िकाना चित्रकार विनय अम्बर का स्टूड‍ियो भी रहा। इस ठ‍िए पर दिन भर में पंकज पटरैया कई बार आते रहते थे।
  • प्रोफेशनल जर्नलिज्म के पक्षधर
पंकज पटरैया जबलपुर में प्रोफेशनल जर्नलिज्म के हर समय पक्षधर रहे। पार्ट टाइम पत्रकारिता का उन्होंने विरोध किया। पंकज पटरैया ने पत्रकारिता को एक पेशे के रूप में मान्यता दिलाने के लिए संघर्ष किया। कई संगठनों के जरिए उन्होंने अपनी लड़ाई लड़ी। नगर पत्रकार संघ और महाकौशल प्रेस क्लब बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। 

जीवन भर सुबह से रात तक व्यस्त रहे पंकज पटरैया स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह नहीं थे। कई बरसों से सुबह पैदल घूमते थे, लेकिन दो तीन दिन से बैचेनी को गैस व एसीड‍िटी की समस्या मान कर वे लापरवाह रहे। उनकी लापरवाही उनके लिए ही नहीं बल्क‍ि परिवार और हम जैसे चाहने वालों के लिए कितनी दुखदायी साबित होगी, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। 
प्यारे भाई पंकज, आप सदैव याद आएंगे। प्यारे भाई अलविदा। 
- पंकज स्वामी

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