मोरबी पुल हादसा : हाईकोर्ट ने गुजरात सरकार को फटकारा, पूछा-बिना टेंडर किसी व्यक्ति विशेष पर ‘कृपा क्यों की गई?

फाइल फोटो

अहमदाबाद। गुजरात हाईकोर्ट नेमंगलवार को मोरबी पुल त्रासदी मामले में स्वत: संज्ञान लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से पूछा कि किस आधार पर रुचि की अभिव्यक्ति के लिए कोई निविदा नहीं निकाली गई और बिना निविदा निकाले ही किसी व्यक्ति विशेष पर ‘कृपा क्यों की गई।' 

गुजरात के मोरबी जिले में मच्छु नदी पर बना ब्रिटिश काल का पुल 30 अक्टूबर को ढह गया था और हादसे में महिलाओं, बच्चों सहित 135 लोगों की जान चली गई थी। स्वत: संज्ञान लेकर दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने जानना चाहा कि क्या राज्य सरकार ने अजंता मैन्युफैक्चरिंग प्राइवेट लिमिटेड (ओरेवा समूह) के साथ वर्ष 2008 के समझौता ज्ञापन (एमओयू) और वर्ष 2022 के समझौते में फिटनेस प्रमाणपत्र के संबंध में किसी तरह की शर्त लगाई थी, यदि ऐसा था तो इसे करने के लिए सक्षम प्राधिकार कौन था? 
मुख्य न्यायाधीश अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष शास्त्री ने कहा, ‘यह समझौता सवा पन्ने का है जिसमें कोई शर्त नहीं है। यह समझौता एक ‘सहमति' के रूप में है। राज्य सरकार की यह उदारता 10 साल के लिए है, कोई निविदा नहीं निकाली गई, किसी तरह की रुचि की अभिव्यक्ति नहीं है।'

अदालत ने पूछा, ‘‘15 जून, 2017 को अवधि बीतने के बाद राज्य सरकार और मोरबी नगरपालिका द्वारा निविदा निकालने के लिए कौन से कदम उठाये गये? क्यों अभिव्यक्ति की रुचि के लिए कोई निविदा नहीं निकाली गई और कैसे बिना निविदा निकाले किसी व्यक्ति विशेष पर कृपा की गई।' 

अदालत ने कहा कि 15 जून, 2017 को अवधि बीतने के बावजूद अजंता (ओरेवा समूह) को पुल के रखरखाव और प्रबंधन का काम बिना किसी समझौते के जारी रखने के लिए कहा गया। कंपनी के साथ वर्ष 2008 में एमओयू पर हस्ताक्षर हुए थे जिसकी अवधि वर्ष 2017 में समाप्त हुई। उच्च न्यायालय ने जानना चाहा कि क्या यह अवधि समाप्त होने के बाद संचालन और रखरखाव के उद्देश्य से निविदा निकालने के लिए स्थानीय प्राधिकारियों ने कोई कदम उठाए?

उच्च न्यायालय ने सात नवंबर को कहा था कि इसने एक खबर के आधार पर पुल हादसा मामले में स्वत: संज्ञान लिया था और इसे जनहित याचिका के रूप में दर्ज किया था। अदालत ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया था कि गुजरात सरकार (जिसका प्रतिनिधित्व मुख्य सचिव करते हैं), राज्य के गृह विभाग, नगर पालिका आयुक्त, मोरबी नगरपालिका, जिला कलेक्टर और राज्य मानवाधिकार आयोग को पक्षकार बनाया जाए। 

पुल हादसे के बाद पुलिस ने 31 अक्टूबर को ओरेवा समूह से संबद्ध चार व्यक्तियों सहित नौ लोगों को गिरफ्तार किया था। पुल के संचालन एवं रखरखाव का जिम्मा संभाल रहीं कंपनियों के खिलाफ एक मामला दर्ज किया गया है।

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