मध्यप्रदेश के सतपुड़ा ताप विद्युत गृह सारनी के जलाशय में तैरती जलकुंभी के जैविक नियंत्रण से मिली सफलता
जबलपुर। जलकुंभी जैसी खरपतवार को नष्ट करने में एक छोटे से कीड़े ने कमाल कर दिया है। भस्मासुर जैसा यह कीड़ा पहले तो जलकुंभी को खा जाता है। और तीन महीने में खुद भी ख़त्म हो जाता है। इस तरीके से सरकार के करोड़ों रुपये और समय बच गया है। मध्यप्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी लिमिटेड के सतपुड़ा ताप विद्युत गृह सारनी के जलाशय में तैरती जलीय खरपतवार सिल्वेनिया मोलेस्टा या जलकुंभी के नियंत्रण में जैविक विधि से आश्चर्यजनक सफलता मिली है। जैविक विधि से इस कार्य को करने से लगभग 15 करोड़ रूपए और चार से पांच वर्ष समय की बचत हुई है। इस जलीय खरपतवार के निर्मूलन के लिए समाज सेवी संस्थाओं, जिला प्रशासन, जल संसाधन विभाग, मध्यप्रदेश विधानसभा व संसद में भी जनप्रतिनिधियों द्वारा चिंता व्यक्त की जा चुकी थी।
- 55 वर्ष पुराना है जलाशय
मध्यप्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी के बैतूल जिले में स्थित सतपुड़ा ताप विद्युत गृह सारनी के संचालन के लिए जल आपूर्ति हेतु वर्ष 1967 में तवा नदी पर 110 एमसीएम क्षमता के लगभग 2900 एकड़ जलग्रहण क्षेत्र वाले एक वृहद् सतपुड़ा जलाशय व बांध का निर्माण किया गया था। वहीं अब इस जलाशय से नगर पालिका परिषद सारनी के सभी 36 वार्डों में पेयजल की आपूर्ति भी की जाती है।
- क्या है सिल्वेनिया मोलेस्टा
लगभग पांच दशकों बाद वर्ष 2018 से मूलतः ब्राज़ील में पाई जाने वाली व दक्षिण भारत से आई एक जलीय खरपतवार सिल्वेनिया मोलेस्टा (स्थानीय नाम चाईनीज़ झालर या जलकुम्भी) ने सतपुड़ा जलाशय के लगभग साठ प्रतिशत जल क्षेत्र की सतह को अपने आगोश में ले लिया। इस जलकुंभी को मशीनों व मजदूरों से हटाने हेतु लगभग 4 से 5 वर्ष का समय व 15 करोड़ करोड़ का खर्च आंकलित था।
- भारतीय खरपतवार संस्थान का सफल प्रयास
मध्यप्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी ने सम्पूर्ण भारत में इस विषय पर कार्य करने वाले भारतीय खरपतवार अनुसंधान निदेशालय (आईसीएआर) जबलपुर से संपर्क कर उन्हें सतपुड़ा जलाशय सारनी की इस जलीय खरपतवार सिल्वेनिया मोलेस्टा के निर्मूलन हेतु परामर्श प्राप्त किया गया।
भारतीय खरपतवार अनुसंधान निदेशालय जबलपुर के वैज्ञानिकों ने स्थल निरीक्षण कर सतपुड़ा जलाशय सारनी में व्याप्त इस जलीय खरपतवार सिल्वेनिया मोलेस्टा के पौधों के सैम्पल जबलपुर जाकर उसे नष्ट करने के दृष्टिगत उस पर विभिन्न प्रयोग व अनुसन्धान प्रारम्भ किए। उन्होंने इस खरपतवार के जैविक (बायोलॉजिकल) नियंत्रण हेतु इसे नष्ट करने वाले एक कीट (सिरटोबैगस साल्विनी बायोएजेन्ट) को दक्षिण भारत से लाकर मध्यप्रदेश की जलवायु में उसके जीवित रहने, प्रजनन द्वारा उसकी संख्या में वृद्धि होने व खरपतवार को खाकर नष्ट करने की क्षमता पर विभिन्न प्रयोगों द्वारा अनुसंधान का कार्य किया। तीन माह आयु वाले दो मिलीमीटर आकार के इस कीट की विशेषता यह है कि यह कीट केवल सिल्वेनया मोलेस्टा के पौधे के ऊपर के कोमल भाग को खाकर पौधे की वृद्धि रोक कर उसे नष्ट कर देता है व अन्य किसी जलीय खरपतवार या पौधे को नहीं खाता। जिसके पश्चात वह कीट सिल्वेनिया मोलेस्टा के उक्त कोमल भाग के नष्ट हो जाने पर भूखे रहने से स्वयं भी अपना जीवन खो देता है। वहीं रासायनिक न होकर यह एक जैविक विधि होने से पर्यावरण भी दूषित नहीं होता।
- कटनी में मिली पहले प्रयोग को सफलता
इस दौरान भारतीय खरपतवार संस्थान जबलपुर द्वारा किए गए इस जैविक अनुसंधान का कटनी के 20 हेक्टेयर के एक तालाब में प्रयोग कर उसकी सम्पूर्ण सिल्वेनिया मोलेस्टा को नष्ट करने में सफलता अर्जित की। जिसके पश्चात भारतीय खरपतवार अनुसंधान निदेशालय जबलपुर ने मध्यप्रदेश पावर जनरेटिंग कंपनी द्वारा बैतूल जिले में स्थित उसके सतपुड़ा ताप विद्युत गृह सारनी के वृहद सतपुड़ा जलाशय के लगभग साठ प्रतिशत जल क्षेत्र पर तैरती इस जलीय खरपतवार सिल्वेनिया मोलेस्टा के निर्मूलन हेतु सौंपे गए रु. 50 लाख लागत के परामर्श-ठेके पर भी गति पूर्वक कार्य किया। जिसके तहत उनके द्वारा सिल्वेनिया मोलेस्टा के पौधों पर ही विकसित कियए गए लगभग 6 लाख कीट अभी तक सतपुड़ा जलाशय में छोड़े गए हैं, जिनकी संख्या प्रजनन द्वारा अब अरबों में पहुँच चुकी है।
- आए सुखद परिणाम
इस कार्य के क्रियान्वयन होने से सतपुड़ा जलाशय में सुखद परिणाम मिले हैं। सतपुड़ा जलाशय के प्रभावित क्षेत्र के लगभग 70 प्रतिशत भाग की जलीय खरपतवार सिल्वेनिया मोलेस्टा नष्ट होकर जल तीव्र-गति से साफ हो गया है। वहीं आगामी छह माह में जलीय खरपतवार से प्रभावित सतपुड़ा जलाशय के सम्पूर्ण क्षेत्र के साफ होने की आशा है।
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