स्त्री के लिखने के लिए पहली अनिवार्यता है, लिखने की आज़ाद : चन्द्रकला त्रिपाठी

सविता कथा सम्मान – 2023 में साहित्यकारों का सम्मान 


जबलपुर। सविता दानी के नाम पर स्थापित सविता कथा सम्मान – 2023 कार्यक्रम का संचालन करते हुए कथाकार श्रद्धा श्रीवास्तव ने सविता दानी के व्यक्तित्व और आयोजन के औचित्य पर संक्षिप्त प्रकाश डालते हुए यह बात बताई। जबलपुर के रानी दुर्गावती संग्रहालय के भरे पूरे हाल में ‘पहल’ और सविता दानी कथा सम्मान समिति के तत्वावधान में आयोजित यह कार्यक्रम केवल स्त्री रचनाकारों के संयोजन में सम्पन्न हुआ।  आरम्भ में सुश्री आंकाक्षा सिंह ने मंचासीन अतिथियों का गुलदस्तों द्वारा स्वागत किया। 
आयोजन की मुख्य अतिथि चर्चित कथाकार और प्रख्यात आलोचक चन्द्रकला त्रिपाठी ने आकांक्षा पारे काशिव की कहानियों में स्त्रीवादी विमर्श को विस्तार से रेखांकित करते हुए बताया कि सम्मानित कथाकार की कहानियाँ हमारे समय के यथार्थ को गहराई से पकड़ती हैं। स्त्री के लिखने के लिए पहली चीज़ क्या है...? सवाल उठाते हुए कहा कि लिखने की आज़ादी। स्त्री समाज ने पितृसत्ता से लड़ते हुए पीढ़ियाँ गुज़ार दीं। पितृसत्ता एलर्ट है, उसमें शातिर बारीक़ियाँ क़ायम हैं। दूसरों की लड़कियाँ बहुत बोलते हुए भले अच्छी लगतीं हों, पर अपनी लड़की अधिक बोलते हुए अच्छी नहीं लगती। आकांक्षा ने प्रेम को नये तरह से लिखा है। बर्बर व्यवस्था की आलोचना की है, कुलीनतावाद से टकराव किया है। उनकी कहानियाँ बड़ी और आवारा पूंजी के ख़तरे से भी आगाह करती हैं।  पत्रकारिता के अनुभव भी आकांक्षा के पास हैं। उनकी रचनाओं में वर्तमान है और वे इस से मुठभेड़ करती हैं। उन्होंने मानवीय संवेदन के प्रस्तावित विचार को अपनी रचनात्मकता का हिस्सा बनाया है। इस अवसर पर चंद्रकला त्रिपाठी जी ने आकांक्षा पारे काशिव को नकद राशि और शहर के उज्जवल कलाकार शरणजीत सिंह के द्वारा गढ़े गये आकर्षक स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। 
इस अवसर पर राजेन्द्र दानी के सम्पादन में प्रकाशित ‘अन्विति’ पत्रिका के पहले अंक का लोकार्पण अतिथियों द्वारा किया गया। 
  • नानी और परिवार के बुजुर्गों से सुनी कहानियों से मुझे लिखने के संस्कार मिले : आकांक्षा पारे काशिव

सम्मानित कथाकार आकांक्षा पारे काशिव ने कहा कि मुझे अपने जन्म स्थान में यह सम्मान मिला है। जिससे मैं अभिभूत हूँ और ख़ुद को गौरवान्वित महसूस कर रही हूँ। अपने जन्म-स्थल जबलपुर की स्मृतियों में खोकर उन्होंने कहा कि नानी और परिवार के बुजुर्गों से सुनी कहानियों से मुझे लिखने के संस्कार मिले। उन्होंने कहा कि शहर में भी गाँव के जद्दोज़हद करते लोग उपस्थित होते हैं। अतः ग्रामीण पात्रों और परिवेश को रचने के लिए गाँव में रहना ज़रूरी नहीं है। आज के समय में वाट्स-एप्प है जो आत्मीय आमंत्रण नहीं देता बल्कि उसमें केवल सूचनाएँ आती हैं।
  • संवेदनाओं को खोखला कर रही है आज की तकनीक : प्रो. स्मृति शुक्ला
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रसिद्ध आलोचक प्रो. स्मृति शुक्ला ने कहा कि आज तकनीक संवेदनाओं को खोखला कर रही है। मशीनों के साथ रहने काम करने से मनुष्य का भी मशीनीकरण हो रहा है। आकांक्षा की अधिकांश कहानियों में पात्र साहसी स्त्रियाँ हैं  जो स्त्रियों को संघर्ष की सकारात्मकता का संदेश देती हैं। उनकी कहानियाँ समय के साथ पुरानी नहीं पड़तीं। उनमें समकालीन सरोकारों से गहरा जुड़ाव और कुलीनतावाद से सीधा टकराव है। वे मानवीय संवेदन के लिए प्रस्तावित विचार को अपनी रचनात्मकता का हिस्सा बनाती हैं।
चर्चित कथाकार श्रद्धा श्रीवास्तव ने कार्यक्रम का कुशल और कसा हुआ संचालन किया। 

अंत में सुरभि मिश्रा ने श्रोताओं और आयोजन से जुड़े लोगों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की और आभार माना। इस आयोजन के केन्दीय व्यक्तित्व राजेन्द्र दानी रहे। कार्यक्रम को सफल बनाने में  कवि आलोचक राजीव कुमार शुक्ल, योगेन्द्र श्रीवास्तव, कथाकार पंकज स्वामी, कलाविद् अवधेश वाजपेयी, एक्टीविस्ट शरद उपाध्याय तथा चर्चित कवि विवेक चतुर्वेदी, फ़ोटोग्राफ़र मुकुल यादव का आत्मीय और सक्रिय सहयोग रहा। प्रख्यात कथाशिल्पी और पहल के यशस्वी सम्पादक ज्ञानरंजन की उपस्थिति ने इस आयोजन को गरिमामय बनाया। 

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