तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को रिपोर्ट सौंपते हुए बीपी मंडल | |
मंडल कमीशन यानी द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग की ज्यादातर सिफारिशें अभी भी धूल फांक रही हैं। इस पर चर्चा करने को कोई तैयार नहीं है कि समाज के वंचित तबके के उत्थान के लिए की गई संस्तुतियां अब तक लागू क्यों नहीं कराई जा सकीं। कमीशन ने ‘पूरी योजना’ लागू करने के 20 साल बाद इसकी समीक्षा करने की भी सिफारिश की थी। आरक्षण की समीक्षा करने की बात तो अक्सर कोई न कोई छेड़ देता है। आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत 2015 में आरक्षण की समीक्षा करने की बात कर चुके हैं। लेकिन मंडल कमीशन की रिपोर्ट किस हद तक लागू हो पाई, इस पर बातचीत नहीं होती।
मंडल कमीशन ने अपनी रिपोर्ट के अध्याय 13 में कुल 40 प्वाइंट में सिफारिशें की हैं। पहले प्वाइंट में ही कहा गया है कि सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ापन और गरीबी, जाति आधारित बाधाओं की वजह से है। यह बाधाएं हमारे सामाजिक ढांचे से जुड़ी हुई हैं। इन्हें खत्म करने के लिए ढांचागत बदलाव की जरूरत होगी। देश के शासक वर्ग के लिए ओबीसी की समस्याओं की अनुभूति में बदलाव कम महत्वपूर्ण नहीं होगा।
इस ढांचागत बदलाव के लिए कमीशन ने नौकरियों व शिक्षण संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने की सिफारिश की। सिफारिश में आयोग ने आरक्षण लागू करने पर गुणवत्ता, ओबीसी की स्थिति में कुछ नौकरियों के चलते बदलाव न होने, मेधावी अभ्यर्थियों के मनोबल पर बुरा असर पड़ने जैसे तमाम तर्कों का जवाब दिया।
आइए कमीशन की सिफारिशों को बिंदुवार देखते हैं, जिन्हें लागू करने को लेकर चर्चा नहीं होती।
1. खुली प्रतिस्पर्धा में मेरिट के आधार पर चुने गए ओबीसी अभ्यर्थियों को उनके लिए निर्धारित 27 प्रतिशत आरक्षण कोटे में समायोजित नहीं किया जाए।
2. ओबीसी आरक्षण सभी स्तरों पर प्रमोशन कोटा में भी लागू किया जाए।
3. संबंधित प्राधिकारियों द्वारा हर श्रेणी के पदों के लिए रोस्टर व्यवस्था उसी तरह से लागू किया जाना चाहिए, जैसा कि एससी और एसटी के अभ्यर्थियों के मामले में है।
4. सरकार से किसी भी तरीके से वित्तीय सहायता पाने वाले निजी क्षेत्र के सभी प्रतिष्ठानों में कर्मचारियों की भर्ती उपरोक्त तरीके से करने और उनमें आरक्षण लागू करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए।
5. इन सिफारिशों को प्रभावी बनाने के लिए यह जरूरी है कि पर्याप्त वैधानिक प्रावधान सरकार की ओर से किए जाएं, जिसमें मौजूदा अधिनियमों, कानूनों, प्रक्रिया आदि में संशोधन शामिल है, जिससे वे इन सिफारिशों के अनुरूप बन जाएं।
6. शैक्षणिक व्यवस्था का स्वरूप चरित्र के हिसाब से अभिजात्य है। इसे बदलने की जरूरत है, जिससे यह पिछड़े वर्ग की जरूरतों के मुताबिक बन सके।
7. अन्य पिछड़े वर्ग के विद्यार्थियों को शिक्षा प्राप्त करने में सुविधा देने के लिए अलग से धन का प्रावधान किया जाना चाहिए, जिससे अलग से योजना चलाकर गंभीर और जरूरतमंद विद्यार्थियों को प्रोत्साहित किया जा सके और उनके लिए उचित माहौल बनाया जा सके।
8. ज्यादातर पिछड़े वर्ग के बच्चों की स्कूल छोड़ने की दर बहुत ज्यादा है। इसे देखते हुए प्रौढ़ शिक्षा के लिए एक गहन एवं समयबद्ध कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिए, जहां ओबीसी की घनी आबादी है।0 पिछड़े वर्ग के विद्यार्थियों के लिए इन इलाकों में आवासीय विद्यालय खोले जाने चाहिए, जिससे उन्हें गंभीरता से पढ़ने का माहौल मिल सके। इन स्कूलों में रहने खाने जैसी सभी सुविधाएं मुफ्त मुहैया कराई जानी चाहिए, जिससे गरीब और पिछड़े घरों के बच्चे इनकी ओर आकर्षित हो सकें।
9. ओबीसी विद्यार्थियों के लिए अलग से सरकारी हॉस्टलों की व्यवस्था की जानी चाहिए, जिनमें खाने, रहने की मुफ्त सुविधाएं हों।
10. ओबीसी हमारी शैक्षणिक व्यवस्था की बहुत ज्यादा बर्बादी की दर को वहन नहीं कर सकते, ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि उनकी शिक्षा बहुत ज्यादा व्यावसायिक प्रशिक्षण की ओर झुकी हुई हो। कुल मिलाकर सेवाओं में आरक्षण से शिक्षित ओबीसी का एक बहुत छोटा हिस्सा ही नौकरियों में जा सकता है। शेष को व्यावसायिक कौशल की जरूरत है, जिसका वह फायदा उठा सकें।
11. ओबीसी विद्यार्थियों के लिए सभी वैज्ञानिक, तकनीकी और प्रोफेशनल इंस्टीट्यूशंस में 27 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की जाए, जो केंद्र व राज्य सरकारें चलाती हैं।
12. आरक्षण से प्रवेश पाने वाले विद्यार्थियों को तकनीकी और प्रोफेशनल इंस्टीट्यूशंस में विशेष कोचिंग की सुविधा प्रदान की जाए।
13. गांवों में बर्तन बनाने वालों, तेल निकालने वालों, लोहार, बढ़ई वर्गों के लोगों की उचित संस्थागत वित्तीय व तकनीकी सहायता और व्यावसायिक प्रशिक्षण मुहैया कराई जानी चाहिए, जिससे वे अपने दम पर छोटे उद्योगों की स्थापना कर सकें। इसी तरह की सहायता उन ओबीसी अभ्यर्थियों को भी मुहैया कराई जानी चाहिए, जिन्होंने विशेष व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त कर लिया है।
14. छोटे और मझोले उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए बनी विभिन्न वित्तीय व तकनीकी एजेंसियों का लाभ सिर्फ प्रभावशाली तबके के सदस्य ही उठा पाने में सक्षम हैं। इसे देखते हुए यह बहुत जरूरी है कि पिछड़े वर्ग की वित्तीय व तकनीकी सहायता के लिए अलग वित्तीय संस्थान की व्यवस्था की जाए।
15. पेशेगत समूहों की सहकारी समितियां बनें। इनकी देखभाल करने वाले सभी पदाधिकारी और सदस्य वंशानुगत पेशे से जुड़े लोगों में से हों और बाहरी लोगों को इसमें घुसने और शोषण करने की अनुमति नहीं हो।
16. देश के औद्योगिक और कारोबारी जिंदगी में ओबीसी की हिस्सेदारी नगण्य है। वित्तीय और तकनीकी इंस्टीट्यूशंस का अलग नेटवर्क तैयार किया जाए, जो ओबीसी वर्ग में कारोबारी और औद्योगिक इंटरप्राइजेज को गति देने में सहायक हों।
17. सभी राज्य सरकारों को प्रगतिशील भूमि सुधार कानून लागू करना चाहिए, जिससे देश भर के मौजूदा उत्पादन संबंधों में ढांचागत एवं प्रभावी बदलाव लाया जा सके।
18. इस समय अतिरिक्त भूमि का आवंटन एससी और एसटी को किया जाता है। भूमि सीलिंग कानून आदि लागू किए जाने के बाद से मिली अतिरिक्त जमीनों को ओबीसी भूमिहीन श्रमिकों को भी आवंटित की जानी चाहिए।
19. कुछ पेशेगत समुदाय जैसे मछुआरों, बंजारा, बांसफोड़, खाटवार आदि के कुछ वर्ग अभी भी देश के कुछ हिस्सों में अछूत होने के दंश से पीड़ित हैं। उन्हें आयोग ने ओबीसी के रूप में सूचीबद्ध किया है, लेकिन सरकार द्वारा उन्हें अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने पर विचार करना चाहिए।
20. पिछड़ा वर्ग विकास निगमों की स्थापना की जानी चाहिए। यह केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर किया जाना चाहिए, जो पिछड़े वर्ग की उन्नति के लिए विभिन्न सामाजिक-शैक्षणिक और आर्थिक कदम उठा सकें।
21. केंद्र व राज्य स्तर पर पिछड़े वर्ग के लिए एक अलग मंत्रालय/विभाग बनाया जाना चाहिए, जो उनके हितों की रक्षा का काम करे।
22. पूरी योजना को 20 साल के लिए लागू किया जाना चाहिए और उसके बाद इसकी समीक्षा की जानी चाहिए।
इन सिफारिशों के अलावा मंडल कमीशन ने रिपोर्ट के प्रारंभ में ही कहा था कि जातियों के आंकड़े न होने के कारण उसे काम करने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसलिए अगली जनगणना में जातियों के आंकड़े भी जुटाए जाएं।
- सवाल - आरक्षण का विरोध और मंडल आयोग के तर्क
आरक्षण लागू किए जाने के विरोध को लेकर भी आयोग सतर्क था। अभी जिन तर्कों के साथ आरक्षण का विरोध किया जाता है, वही सब तर्क शुरुआत से रहे हैं। इन तर्कों पर अपनी सिफारिशों में आयोग ने कहा, ‘निश्चित रूप से यह सही है कि ओबीसी के लिए आरक्षण से तमाम अन्य लोगों का कलेजा दुखेगा। लेकिन क्या इस तकलीफ के कारण हम सामाजिक सुधार के नैतिक दायित्व को छोड़ सकते हैं? जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ा था, तब भी तमाम लोग ऐसे थे, जिनका दिल दुखा था। दक्षिण अफ्रीका में जब काले लोग दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ आवाज उठाते हैं तो सभी श्वेतों का कलेजा सुलगता है। अगर भारत में उच्च जातियों की 20 प्रतिशत से भी कम आबादी शेष आबादी पर सामाजिक अन्याय करती है तो निश्चित रूप से निचली जातियों का कलेजा सुलगता है। लेकिन अगर निम्न जातियां ताकत और सम्मान के राष्ट्रीय केक में से एक छोटा सा टुकड़ा मांग रही हैं तो यह सत्तासीन वर्ग के लोग यह दलील दे रहे हैं कि इससे असंतोष होगा। पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण के खिलाफ ‘असंतोष’ को लेकर जो तमाम भारी भरकम तर्क आ रहे हैं, वह सरासर कुतर्क हैं।’
- सवाल - आरक्षण का लाभ कुछ जातियों तक सिमट जाने का तर्क
मौजूदा समय में एक बड़ा तर्क यह भी दिया जाता है कि कुछ जातियां आरक्षण का पूरा लाभ ले रही हैं। शेष पिछड़ा वर्ग वंचित रह जा रहा है। इस तर्क का जवाब भी मंडल कमीशन ने देते हुए अपनी सिफारिशों में लिखा है, ‘इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है कि आरक्षण व कल्याणकारी कदमों का ज्यादा लाभ उन लोगों को होगा, जो पिछड़े समाज में ज्यादा आगे हैं। लेकिन क्या यह सार्वभौमिक लक्षण नहीं है? सभी सुधारवादी उपचार पदानुक्रम में धीरे धीरे होते हैं, सामाजिक सुधार में कोई अचानक उभार (क्वांटम जंप) नहीं होता। कमोबेश मानव स्वभाव रहा है कि वर्ग विहीन समाज में भी आखिरकार एक ‘नया वर्ग’ उभरकर सामने आता है। आरक्षण का मूल लाभ यह नहीं है कि ओबीसी में समतावादी समाज उभरकर सामने आएगा, जबकि पूरा भारतीय समाज असमानताओं से भरा पड़ा है। लेकिन आरक्षण से निश्चित रूप से ऊंची जातियों का सेवाओं में कब्जा खत्म होगा। मोटे तौर पर ओबीसी देश के शासन प्रशासन में थोड़ी हिस्सेदारी प्राप्त कर सकेंगे।’
- सवाल - आरक्षण से किसे लाभ हुआ?
इस समय यह बात अक्सर उठती है कि आरक्षण लागू होने पर भी पिछड़े वर्ग को क्या लाभ हुआ। अब तो पिछड़े वर्ग से जुड़े लोग भी कहने लगे हैं कि आरक्षण का कोई लाभ नहीं है। इससे कोई अगड़ापन नहीं आ गया है। यह तर्क भी पुराना है, जिसका जवाब मंडल कमीशन ने अपनी सिफारिश में की है। आयोग ने कहा, ‘हमारा यह दावा कभी नहीं रहा है कि ओबीसी अभ्यर्थियों को कुछ हजार नौकरियां देकर हम देश की कुल आबादी के 52 प्रतिशत पिछड़े वर्ग को अगड़ा बनाने में सक्षम होंगे। लेकिन हम यह निश्चित रूप से मानते हैं कि यह सामाजिक पिछड़ेपन के खिलाफ लड़ाई का जरूरी हिस्सा है, जो पिछड़े लोगों के दिमाग में लड़ी जानी है। भारत में सरकारी नौकरी को हमेशा से प्रतिष्ठा और ताकत का पैमाना माना जाता रहा है। सरकारी सेवाओं में ओबीसी का प्रतिनिधित्व बढ़ाकर हम उन्हें देश के प्रशासन में हिस्सेदारी की तत्काल अनुभूति देंगे। जब एक पिछड़े वर्ग का अभ्यर्थी कलेक्टर या वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक होता है तो उसके पद से भौतिक लाभ उसके परिवार के सदस्यों तक सीमित होता है लेकिन इसका मनोवैज्ञानिक असर बहुत व्यापक होता है।’
- हकीकत - मंडल आयोग पर ईमानदारी से नहीं हुआ अमल
मंडल आयोग की सिफारिशों को देखें तो इसके सिर्फ दो बिंदुओं पर कुछ हद तक काम हुआ है। वह है केंद्र सरकार की नौकरियों में ओबीसी को 27 परसेंट आरक्षण और दूसरा, केंद्र सरकार के उच्च शिक्षा संस्थानों के एडमिशन में ओबीसी का 27 परसेंट आरक्षण। बाकी सिफारिशों पर तो काम भी शुरू नहीं हुआ है। मंडल कमीशन की सिफारिशों पर बेमन से काम करने का परिणाम यह हुआ कि अब तक भारत के शोषणकारी सामाजिक ढांचे में बदलाव नहीं हुआ।
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