सजा में कमी पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट का फैसला निरस्त
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने जल्दबाजी और लापरवाही के चलते एक व्यक्ति की मौत के मामले में दोषी को मिली सजा कम करने के बारे में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का फैसला निरस्त कर दिया और कहा कि आरोपी के पक्ष में ‘अनावश्यक सहानुभूति' दिखाना उचित नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट ने इस बात पर बिल्कुल विचार नहीं किया कि आईपीसी प्रकृति में दंडात्मक और (अपराध के प्रति) हतोत्साहित करने वाली है तथा इसका मुख्य उद्देश्य संहिता के तहत किए गए अपराधों के लिए अपराधियों को दंडित करना है।
शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ पंजाब सरकार की ओर से दायर एक अपील पर अपना फैसला सुनाया, जिसमें एक आरोपी की दोषसिद्धि को बरकरार रखा गया था लेकिन उसकी 2 वर्ष की सजा कम करके 8 महीने कर दी गयी थी। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने 28 मार्च के अपने फैसले में कहा कि हाईकोर्ट ने सजा को कम करते समय अपराध की गंभीरता पर विचार नहीं किया था। पीठ ने कहा, 'हाईकोर्ट ने इस मामले में तथ्यों की उचित समीक्षा नहीं की और इस तथ्य पर विचार नहीं किया कि एसयूवी की टक्कर के कारण एम्बुलेंस पलट गई।'
सड़क दुर्घटना जनवरी 2012 में उस वक्त हुई थी, जब एसयूवी में सवार आरोपी ने चंडीगढ़ से मोहाली की ओर आ रही एक एंबुलेंस को टक्कर मार दी थी। पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया और निचली अदालत की ओर से दी गई सजा बहाल कर दी। अपील की अनुमति देते हुए, न्यायालय ने अभियुक्त को शेष सजा काटने के लिए आत्मसमर्पण करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया।
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