परसाई की याद में साल भर होंगे आयोजन, प्रगतिशील लेखक संघ का राष्ट्रीय सम्मेलन दूसरी बार जबलपुर में

               

जबलपुर/सुसंस्कृति परिहार। मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर के लिए यह बेहद सुखद अवसर होगा जब प्रगतिशील लेखक संघ का दूसरी बार राष्ट्रीय सम्मेलन होगा। पहला सम्मेलन यहां 1980 हुआ था, जिसमें  विख्यात व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई स्वयं मेजमान थे किंतु दूसरा सम्मेलन उनकी जन्म शताब्दी के उपलक्ष में 20-21-22 अगस्त 2023 में होगा। ज्ञातव्य हो 22 अगस्त परसाई की जन्मतिथि है। पिछले दिनों प्रलेस राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में यह महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया, जिसमें राष्ट्रीय महासचिव पंजाबी भाषा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुखदेव सिंह सिरसा मौजूद रहे।
इसी वर्ष राजकमल प्रकाशन ने जबलपुर शहर के जाने-माने चित्रकार अवधेश बाजपेयी अवधेश बाजपेई द्वारा बनाये हरिशंकर परसाई के 12 रंगीन चित्रों को इस शताब्दी वर्ष पर कैलेंडर के रूप में प्रकाशित किया है। वहीं उनके एक अभिन्न अनुयायी लेखक राजेन्द्र चन्द्रकांत राय ने अपने मित्रों के सहयोग से परसाई और उनसे अभिन्न तौर पर जुड़े 11 मित्रों की शिनाख्त करते हुए इसी वर्ष एक और कैलेंडर निकाला है। उन पर पूरे साल भर मासिक गोष्ठियों का सिलसिला चल रहा है। जबलपुर और आसपास के शहरों के परसाई को जानने वाले लोगों के उन लेखों की भी एक किताब भी आने वाली है जिसमें उनके अनछुए पहलुओं की जानकारी होगी। वहीं पंकज दीक्षित ने हरिशंकर परसाई के व्यंग्य लेखों से उद्धृत महत्वपूर्ण सूत्र वाक्यों का चयन कर उनको अपने रेखांकन से पोस्टर बनाकर तैयार किया है। आमतौर पर जन्म शताब्दी वर्ष सम्बंधित व्यक्ति के जन्मदिन से प्रारंभ होकर उनके आगामी जन्मदिन तक मनाया जाता है। लेकिन ये परसाई के प्रति अप्रतिम प्यार ही है कि सन् 2023 के प्रारंभ में ही परसाई को शहर ने दो दो कैलेंडर देकर उनके जन्मशती वर्ष को एक नया स्वरूप प्रदान किया। इस तरह साल भर परसाई लोगों के स्मृति पटल पर बने रहेंगे।
ऐसा इसलिए संभव हो पाया क्योंकि परसाई जनजीवन से गहरे जुड़े हुए रचनाकार थे 'मेरे समकालीन' शीर्षक से लिखते हुए साहित्यकार अपने समय के साहित्यकारों पर लिखते हैं किंतु परसाई ने रिक्शा वाले, पान वाले, चाय वाले को समकालीन लिखा है। जनजीवन से जुड़ाव की ये अनूठी मिसाल है। हजारों हजार छात्रों, नौजवानों ने उनके लेखक एवं सानिध्य से प्रेरणा ग्रहण की। उनके ऊपर जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लाठीधारियों ने हमला किया तो बरसते पानी में जबलपुर के 5000 मजदूरों ने एक जुलूस निकाला और उनके निवास पर उनके प्रति समर्थन व्यक्त करने गए। ऐसी घटना दुनिया में शायद ही कहीं और घटी हो।
वे सरकारी नौकरी में भी रहे लेकिन परेशानियों के बावजूद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और लेखन को आय का जरिया बनाया। ऐसे उदाहरण बहुत कम देखने मिलते हैं। चूंकि वे शिक्षक रहे थे इसलिए शिक्षक आंदोलनों में उनकी सक्रियता हमेशा बनी रही। बिस्तर पर लेटे-लेटे उन्होंने ऐसी व्यंग्य रचनाएं लिखीं जिनकी प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। शिक्षकों के आन्दोलन से उन्होंने अपनी पहली बार प्रतिबद्धता दर्शाई। बाद में वे ट्रेड यूनियनों से जुड़े और उन्हें हकों के लिए लड़ने प्रेरित किया। सागर विश्वविद्यालय में स्थापित "मुक्तिबोध पीठ" के अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने छात्र यूनियनों को भी एक नई दिशा दी। आज भी सागर विश्वविद्यालय से निकले उनके साथी और छात्र उनके जैसे गुरु के रास्ते पर चल रहे हैं।
परसाई की रचनाओं में गंभीर चिंतन है। रचना पूरी तरह व्यंग्य के माहौल में डूबी रहती है पर दैनिक जीवन की वास्तविकताएं हमारे सामने आती रहती हैं. उदाहरण के लिए एक स्थान पर वे लिखते हैं -"हमारे जीवन में नारी को जो  मुक्ति मिली है, क्यों मिली है ? आंदोलन से, आधुनिक दृष्टि से, उसके व्यक्तित्व की स्वीकृति से, नहीं उसकी मुक्ति का कारण महंगाई है। नारी मुक्ति के इतिहास में यह वाक्य अमर रहेगा "एक कमाई से पूरा नहीं पड़ता।"
अपनी खुद की मुफ़लिसी पर उन्होंने बहुत कुछ लिखा है। वे दीनता पर गर्व करते हैं। 'दुख का ताज' में लिखते हैं-  "जिसके पास कुछ नहीं होता, अनंत दुख होता है और वह धीरे-धीरे शहादत के गर्व के साथ कष्ट भुगतता है। जीने के लिए आधार चाहिए और तब अभाव में यह दुख ही जीवन का आधार हो जाता है।"
उन्होंने प्रगतिशील लेखक संघ को मध्यप्रदेश में अग्रणी बनाए रखा और 'वसुधा' जैसी पत्रिका का संपादन किया। आवश्यक लिखना, निरंतर लिखना परसाई जी से ही सीखने की चीज़ है। वे ऐसी विचारधारा को जरूरी मानते हैं जिसमें जीवन का विश्लेषण हो सके और ठीक निष्कर्षों पर पहुंचा जा सके। इसके बिना लेखक गलत निष्कर्ष का शिकार हो जाता है। वे मानते हैं- "प्रतिबद्धता  गहरी चीज है जो इस बात से तय होती है कि समाज में जो द्वंद है उनमें लेखक किस तरफ खड़ा है। पीड़ितों के साथ या पीड़कों के साथ। वह मानते हैं जीवन जैसा है उससे बेहतर होना चाहिए, जो गलत मूल्य हैं उन्हें नष्ट होना चाहिए क्योंकि साहित्य के मूल्य जीवन मूल्यों से बनते हैं।"
कुल मिलाकर परसाई जी के व्यंग्य की शिष्टता का संबंध उच्चवर्गीय मनोरंजन से न होकर समाज में सर्वहारा की उस लड़ाई से अधिक है जो आगे जाकर मनुष्य की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है। 
परसाई पर समर्पित प्रलेस राष्ट्रीय सम्मेलन से अपेक्षाएं रहेंगी कि यहां आने वाले तमाम देशी विदेशी साहित्यकार और लेखक उनके मुश्किलात भरे दिनों में लिखे बेबाक लेखन से प्रेरणा लेकर आमजन को उस उजास की ओर अग्रसर करने में सफल होंगे, जिससे देश उम्मीद की सहर देख सके। इस घनघोर अंधेरे समय में परसाई पर केंद्रित राष्ट्रीय सम्मेलन में जबलपुर और आसपास के शहरों के आमजन भी पहुंचेंगे क्योंकि वे लोगों के पसंदीदा लेखक के अलावा जुझारू कामरेड की हैसियत रखते थे। वे जबलपुर के पटियों पर बैठकर सबके सुख दुख के भागीदार थे। लेखन में उन्होंने अपने मित्रों और अपने आपको भी नहीं बख्शा। ऐसे जन जन के प्रिय लेखक को भला जबलपुर और उनसे जुड़े लोग कैसे भूल सकते हैं।
कुल मिलाकर जबलपुर शहर परसाई केन्द्रित समस्त कार्यक्रमों के इंतजार में प्रतीक्षारत और सहयोगी की भूमिका में रहेगा।

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