मलय एक महत्वपूर्ण कवि जिनकी हमेशा उपेक्षा की गई
पंकज स्वामी
जबलपुर। प्रगतिशील कविता के अग्रणी कवि मलय का 9 जनवरी को जबलपुर में 94 वर्ष की आयु में जबलपुर में निधन हो गया। वे हिन्दी साहित्य में मुक्तिबोध युगीन अंतिम कवि थे। डॉ. मलय ने अविभाजित मध्यप्रदेश में विभिन्न शासकीय कॉलेज में हिन्दी विषय का अध्यापन किया। इस दौरान राजनांदगांव में मलय गजानन माधव मुक्तिबोध के सम्पर्क में आए। इसके बाद कविता मलय के जीवन की जिजीविषा बन गई। मलय को नयी कविता के बाद और अकविता से पहले के कवि माना जाता है। मलय को इसलिए भी याद करना चाहिए क्योंकि वे परसाई रचनावली के संपादकों में से एक थे। परसाई के व्यंग्यशास्त्र को ध्यान मे रखकर व्यंग्य का सौंदर्य शास्त्र लिखना हिन्दी साहित्य में उनका योगदान माना जाता है।
मलय की शुरुआती कविताएँ लयबद्ध व छन्दबद्ध थीं और बाद में वे मुक्त कविता की ओर बढ़े और फिर रूके नहीं। मुक्तिबोध ने मलय की कविताओं पर लम्बा पत्र लिखा था जो मुक्तिबोध रचनावली में प्रकाशित है। इस पत्र को संपादकों ने पहले गलत पाठ के साथ छाप दिया था लेकिन अब रचनावली के नए संस्करण में सही पाठ के साथ प्रकाशित हुआ। गलत पाठ ने मलय का तब तक बहुत नुकसान कर दिया था।
मलय हिन्दी के एक ऐसे विरल और महत्वपूर्ण कवि हैं, जिनकी लगातार उपेक्षा की गई और हिंदी आलोचना ने उनके साथ भी कभी समुचित न्याय नहीं किया। वे इन सबसे मुक्त होकर लगातार कविता लिखते रहे। इस कारण से उनकी कविताओं में नैसर्गिक प्रभाव कायम रहा है। मलय ने हर बार नवीनता और अनुभव की उच्चतर सघनता के साथ नई कविताएँ लिखीं।
यह सच है कि हिन्दी के नामवर आलोचकों ने मलय को कभी तवज्जो नहीं दी। आलोचकों ने उन्हें नकारा, पर हिन्दी के कवियों ने उन्हें स्वीकारा और खूब मान दिया। मलय को हिन्दी के कवियों का खूब प्यार व सम्मान मिला। मलय पर वरिष्ठ के साथ युवा कवियों ने लिखा और इसे महत्वपूर्ण माना गया। इन सारे आलेखों को कवि ओम भारती ने संपादक के रूप में एक पुस्तक के रूप में निकाल कर बड़ा व महत्वपूर्ण काम किया। इस पुस्तक का शीर्षक है- ‘जीता हूँ सूरज की तरह’।
कवि नरेंद्र जैन ने ‘जबलपुर में मलय’ शीर्षक कविता में गहरा व्यंग्य किया है-
“आलोचक दिल्ली में विराजे हैं
जबलपुर में मलय कविता लिख रहे हैं
आलोचक द्वारा न पढ़े जाने से
क्या बना-बिगड़ा कविता का?
जबकि आलोचक
अपने औज़ार तेज करने से
हाथ धो बैठे
यहाँ
भयावह मोर्चा लग चुका है आलोचना को
वहाँ
जबलपुर में मलय
कविता में डूबे हैं.”
- अँधेरे को चीरकर, प्रकाश की ओर आने की एक जिद्दी यात्रा
मलय की कविता की बात की जाए तो वह उसमें नई भाषा है। मलय का शिल्प सीधा नहीं था. थोड़ा आड़ा-तिरछा था। पर वह सब उनका सचेत चयन था। उन्होंने कठिन और लंबी राह ही चुनी थी। मलय की कविता में अनगढ़ता का सौंदर्य है। सरलता और सादगी का सौंदर्य है। इसमें काट-छाँट, तराश, करीनापन नहीं है, बल्कि ठेठ हिंदुस्तानी का जीवन सौन्दर्य बोध यहाँ झलक मारता है। मलय की काव्य-संवेदनाओं में कहीं कोई दरार नहीं मिलेगी, जो उनकी सरल-सिधाई और ईमानदारी का प्रमाण भी है। मलय की काव्य यात्रा कभी पूरी न होने वाली एक कविता की ही अनवरत यात्रा है। यह यात्रा अँधेरे से उजाले की ओर अनवरत अग्रसर होने की यात्रा रही है। उनकी यात्रा अँधेरे से लड़कर, अँधेरे को चीरकर, प्रकाश की ओर आने की एक जिद्दी यात्रा है। यह मलय की जिजीविषा के कारण ही संभव हो पाई है।
मलय के प्रकाशित 13 काव्य संग्रह हैं। उनका आलोचनात्मक कार्य व्यंग्य का सौंदर्य शास्त्र काफ़ी सराहा व महत्वपूर्ण माना गया है। जीता हूँ सूरज की तरह (मलय पर केन्द्रित मूल्यांकन परक आलेखों, साक्षात्कारों एवं कुछ अन्य सामग्रियों का संकलन) पिछले दिनों प्रकाशित हुआ था। मलय को सप्तऋषि सम्मान, मध्यप्रदेश साहित्य परिषद के अखिल भारतीय भवानी प्रसाद मिश्र कृति पुरस्कार, मध्यप्रदेश साहित्य सम्मेलन का भवभूति अलंकरण, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल शोध संस्थान, वाराणसी का चन्द्रावती शुक्ल पुरस्कार व हरिशंकर परसाई सम्मान से सम्मानित किया गया था।
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