आलेख : पीठ खुजवाने का सुख और पीठ पर वार का दु:ख



- प्रीतम लखवाल

पीठ शरीर का वह हिस्सा है, जो हमेशा किसी न किसी रूप में याद किया जाता रहा है। सोचो! अगर पीठ न होती तो किसके पीछे बुराइयां करते फिरते, किसकी पीठ और किसके पीछे वार करते, छुरा कहां भोंकते, सबसे बड़ी समस्या तो पीठ पर बोझा ढोने की हो जाती। पीठ पीछे बुराई और वार करने के लिए कोई और जगह की मैराथन तलाश करनी पड़ती। ईश्वर ने जब शरीर का ढांचा तैयार किया होगा तो सोच-समझकर ही पीठ बनाई होगी। तब उसने भी नहीं सोचा होगा कि पीठ का इस्तेमाल ऐसे भी हो सकता है। इस दौर में इस पीठ पुराण पर बहुत कम लिखा गया है, क्योंकि यही तो एक ऐसा हिस्सा रहा है, जिस पर जिम्मेदारियां तो बहुत डाल दी गईं, लेकिन पीठ की पीड़ा को जनता की पीड़ा की तरह हमेशा से ही नजरअंदाज किया गया।

अब आगे बढ़ते हैं, जैसा कि उल्लेख कर दिया गया है कि पीठ का सही उपयोग मानव करते आ रहे हैं। अब बात उन लोगों की, जो पीठ खुजाने और खुजलवाने के शौकीन हैं और जिनको इसमें महारत भी परंपरागत रूप से मिली हुई है। संभवत: पीठ खुजाने वाली प्रजाति शायद 20वीं सदी के आरंभ में अस्तित्व में आई होगी। इस पर अभी वैज्ञानिक पड़ताल जारी है। वैसे इस प्रजाति में लोअर से लेकर हाइप्रोफाइल लोग कब और कैसे समा गए, यह बता पाना तो मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है, लेकिन पिछले एक दशक के अथक शोध के बाद परिणाम यह सामने आया है कि इस प्रकार के लोग खुश होने और प्रसन्नता बांटने के पक्षधर जरूर रहे होंगे, जितना सुख पीठ खुजाने में मिलता है न उससे कहीं अधिक खुजलवाने में मिलता है। वास्तव में इसी में परमानंद है।

सवाल यह है कि वह अवसर कब और कैसे आता है, जब पीठ खुजलवाई जाए तो इसके लिए भी कुछ नियम और कायदे फिक्स हैं। यहां एक शब्द और बिल्कुल फिट बैठता है वह है पीठ लोचन। खुजाने का पर्याय लोचन या लोचने से रखा गया। वरिष्ठ नाम का जीव केवल पीठ खुजलवाने के लिए ही बना है। वह इसमें कोई कोताही नहीं चाहता। दूसरा वर्ग केवल तब तक खुजाता रहता है जब तक कि उसे वरिष्ठ का दर्जा हासिल नहीं हो जाता। कुछ लोग तो खुजाते-खुजाते इतने परेशान हो जाते हैं कि वे अपनी नेम प्लेट पर वरिष्ठ लिखवाने में रंच मात्र की देरी बर्दाश्त नहीं करते।

पीठ के लिए सबसे बड़ा संकट तो अब आ गया है कि कोई खुजाने वाला ही नहीं बचा। सब के सब पीठ लुचवाने की फिराक में रहते हैं। संकट की इस घड़ी में इसका भी एक समाधान निकाल लिया गया है। ‘तू मेरी खुजा मैं तेरी खुजा दूंगा’ की नई विधा के चलते सब कुछ ठीक हो गया है।

वैसे पीठ दिखाना सामाजिक अपराध माना गया है। पीठ दिखाने से व्यक्तित्व पर लांछन लग जाता है। पीठ पर बोझ उठाने वाले को भी हर बार अपमान सहन करना पड़ता है।

Post a Comment

और नया पुराने