कविता - पूर्णिका : दिल मचलने लगा

कविता - पूर्णिका : दिल मचलने लगा


आपको सोचकर दिल मचलने लगा।
मेरा  दिल आपके साथ, चलने लगा।

आपके भी क्या अरमां मचलते नही,
आपको देखकर दिल बदलने लगा।

हर जगह आप ही आप दिखते मुझे,
ये नशा क्यों मेरे दिलमें पलने लगा।

साजना  अब तेरे बिन न रहना मुझे,
आज क्यों सारा संसार जलने लगा।

कुछ  अजब याद आती रही है तेरी,
तेरी यादों से तन-मन महकने लगा।

क्या तुम्हें ऐसा महसूस होता नहीं,
मुझको संसार वेसार लगने  लगा।

तेरी दिलकश निगाहें मुझे भा गई,
आप आ जाइए तनये ढलने लगा।

तेरे निर्मल चरण कान्हा भाते मुझे,
मन अकेले में रहके बहकने लगा।

- सीताराम साहू 'निर्मल' छतरपुर मप्र 

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