कविता - पूर्णिका : जिंदगी बन जाते कोई यहाँ 
जिंदगी बन जाते कोई यहाँ ।
थाम दामन जाते कोई यहाँ ।।

प्यार की बगियां हरदम महकती।
धड़कनें बन जाते कोई यहाँ ।।

यूं जज्बातों का करते सच कदर ।
मीत भी बन जाते कोई यहाँ ।।

ये पत्थर दिल भी देखो पिघलते। 
रहनुमा बन जाते कोई यहाँ ।।

फूल राहों पर खेदू बिछ्ते चले ।
देख जां बन जाते कोई यहाँ ।।

✍ डॉ. खेदू भारती "सत्येश"

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