नए आपराधिक कानूनों को बनाने में विधि आयोग को नजरअंदाज किया गया: चिदंबरम



नई दिल्ली। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने दावा किया कि केंद्र ने एक जुलाई से लागू हुए तीन नए आपराधिक कानून बनाने में विधि आयोग की अनदेखी की। उन्होंने कहा कि सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, विधि विशेषज्ञों, प्रोफेसर और स्थायी कानूनी कर्मियों वाला विधि आयोग आम तौर पर बार काउंसिल के सदस्यों और अधिवक्ता संघों के साथ परामर्श तथा संसद में पेश करने के लिए एक मसौदा तैयार करता है। 

चिदंबरम ने कहा कि विधि आयोग को नजरअंदाज कर दिया गया और एक समिति के लिए पांच या छह "अंशकालिक" नियुक्त किए गए। भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम एक जुलाई से लागू हो गए, जिन्होंने क्रमश: भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की जगह ली है। 

  • विधि आयोग से नहीं किया परामर्श 

चिदंबरम ने नए कानूनों के खिलाफ द्रमुक की अधिवक्ता इकाई द्वारा यहां आयोजित एक प्रदर्शन में कहा, ‘‘कानूनों को विधि आयोग के पास नहीं भेजा गया और न ही उससे परामर्श किया गया। यह गलत है।'' उन्होंने कहा, ‘‘पूरी दुनिया में मौत की सजा को खत्म कर दिया गया है, लेकिन यहां एकांत कारावास को सजा के रूप में शामिल किया गया है, जो संविधान के अनुसार एक असामान्य और क्रूर सजा है।” पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि ऐसी सजा दुनिया में कहीं भी प्रचलित नहीं है। 

उन्होंने कहा, ‘‘इसी तरह, आजीवन कारावास और शेष जीवन तक आजीवन कारावास की सजा को भी शामिल किया गया है। क्या अंतर है?'' चिदंबरम ने कहा कि वह कई महीनों से नए कानूनों पर बहस पर जोर दे रहे थे लेकिन सरकार ने इनकार कर दिया, क्योंकि वह इसके लिए तैयार नहीं थी।

  • संशोधन ला सकती थी सरकार 

उन्होंने कहा, ‘‘नए कानूनों में 90-99 प्रतिशत ‘कट, कॉपी और पेस्ट' का काम है। सरकार इसके बजाय कुछ संशोधन ला सकती थी।'' चिदंबरम ने कहा, "मैंने यह नहीं कहा कि कोई सुधार नहीं होना चाहिए...उन्हें एक संशोधन लाना चाहिए था। उन्होंने केवल धाराओं की संख्याएं बदल दीं। अधिवक्ताओं, न्यायाधीशों और पुलिस को अब फिर से पढ़ना चाहिए।" 

Post a Comment

और नया पुराने