एक मनुष्य सुपरमैन बनना चाहता है, इसके बाद देवता और फिर भगवान : मोहन भागवत


गुमला (झारखंड) | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि आत्म-विकास करते समय एक मनुष्य अतिमानव (सुपरमैन) बनना चाहता है, इसके बाद वह देवता और फिर भगवान बनना चाहता है और विश्वरूप की भी आकांक्षा रखता है, लेकिन वहां से आगे भी कुछ है क्या, यह कोई नहीं जानता है।
  • लोगों को मानव जाति के कल्याण के लिए अथक प्रयास करना चाहिए
उन्होंने कहा कि कुछ लोगों में मनुष्य होने के बावजूद मानवीय गुणों का अभाव होता है और उन्हें सबसे पहले अपने अंदर इन गुणों को विकसित करना चाहिए। यहां गैर-लाभकारी संगठन विकास भारती द्वारा आयोजित ग्राम स्तरीय कार्यकर्ता बैठक को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि लोगों को मानव जाति के कल्याण के लिए अथक प्रयास करना चाहिए, क्योंकि विकास और मानव महत्वाकांक्षा का कोई अंत नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘‘मानवीय गुणों को विकसित करने के बाद एक मनुष्य अलौकिक बनना चाहता है, ‘सुपरमैन’ बनना चाहता है, लेकिन वह वहां रुकता नहीं है। इसके बाद उसे लगता है कि देवता बनना चाहिए लेकिन देवता कहते है कि हमसे तो बड़ा भगवान है और फिर वह भगवान बनना चाहता है। भगवान कहता है कि वह तो विश्वरूप है तो वह विश्वरूप बनना चाहता है। वहां भी कुछ है क्या रुकने की जगह, ये कोई नहीं जानता है। लेकिन विकास का कोई अंत नहीं है। बाहर का विकास भी और अंदर का विकास भी, यह निरंतर चलने वाली एक प्रक्रिया है।”

उन्होंने कहा कि मनुष्य को मानवता के लिए अथक परिश्रम करना चाहिए। साथ ही कहा कि एक कार्यकर्ता को अपने काम से कभी संतुष्ट नहीं होना चाहिए। भागवत ने कहा, ‘‘काम जारी रहना चाहिए, पर्यावरण, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में निरंतर कार्य करने का प्रयास करना चाहिए…इसका कोई अंत नहीं है और विभिन्न क्षेत्रों में निरंतर कार्य करना ही एकमात्र समाधान है…हमें इस विश्व को एक सुंदर स्थान बनाने का प्रयास करना चाहिए जैसी की भारत की प्रकृति है।”

उन्होंने कहा कि सनातन धर्म मानव जाति के कल्याण में विश्वास करता है। उन्होंने कहा, ‘‘सनातन संस्कृति और धर्म राजमहलों से नहीं, बल्कि आश्रमों और जंगलों से आए हैं। बदलते समय के साथ हमारे कपड़े तो बदल सकते हैं लेकिन हमारा स्वभाव कभी नहीं बदलेगा।”

उन्होंने कहा, ‘‘बदलते समय में अपने काम और सेवाओं को जारी रखने के लिए हमें नए तौर-तरीके अपनाने होंगे। जो लोग अपने स्वभाव को बरकरार रखते हैं, उन्हें विकसित कहा जाता है।” भागवत ने कहा, ‘‘सभी को समाज के कल्याण के लिए अथक प्रयास करना चाहिए और जो लोग सही मायने में काम कर रहे हैं, उन्हें मंच से बोलना चाहिए जबकि हमें बैठकर सुनना चाहिए।”

उन्होंने यह भी कहा कि आदिवासी पिछड़े हुए हैं और उनके लिए शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी काम किये जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘‘वन क्षेत्रों में जहां आदिवासी पारंपरिक रूप से रहते हैं, वहां के लोग शांत और सरल स्वभाव के होते हैं और ऐसा बड़े शहरों में नहीं मिलता। यहां तो मैं गांव वालों पर आंख मूंदकर भरोसा कर सकता हूं, लेकिन शहरों में हमें सतर्क रहना पड़ता है कि हम किससे बात कर रहे हैं।”

भागवत ने कहा कि वह देश के भविष्य को लेकर कभी चिंतित नहीं रहे, क्योंकि कई लोग इसकी बेहतरी के लिए सामूहिक रूप से काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘देश के भविष्य को लेकर कोई संदेह नहीं है, अच्छी चीजें होनी चाहिए, इसके लिए सभी मिलकर काम कर रहे हैं, हम भी प्रयास कर रहे हैं।”

उन्होंने कहा कि भारत के लोगों का अपना स्वभाव है और कई लोग बिना किसी नाम या ख्याति की इच्छा के देश के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे यहां पूजा की अलग-अलग पद्धतियां हैं, क्योंकि हमारे यहां 33 करोड़ देवी-देवता हैं और 3,800 से अधिक भाषाएं बोली जाती हैं और यहां तक ​​कि खान-पान की आदतें भी भिन्न हैं। भिन्नता के बावजूद हमारा मन एक है और अन्य देशों में ऐसा नहीं मिल सकता।”

उन्होंने कहा कि आजकल तथाकथित प्रगतिशील लोग समाज को कुछ देने में विश्वास करते हैं, जो कि भारतीय संस्कृति में पहले से ही निहित है। उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा कहीं भी शास्त्रों में नहीं लिखा है, लेकिन पीढ़ी दर पीढ़ी यह हमारे स्वभाव में है।”

उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी के बाद पूरी दुनिया को यह पता चल गया कि भारत के पास शांति और खुशहाली का रास्ता है। भागवत ने कहा, ‘‘पिछले दो हजार वर्षों में विभिन्न प्रयोग किए गए, लेकिन वे भारत की पारंपरिक जीवन शैली में निहित खुशी और शांति प्रदान करने में विफल रहे। कोरोना के बाद दुनिया को पता चला कि भारत के पास शांति और खुशहाली का रास्ता है।”

  • कांग्रेस का कटाक्ष: नागपुर ने लोक कल्याण मार्ग को निशाना बनाकर ‘अग्नि मिसाइल दागी’

कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत की ‘‘भगवान” वाली टिप्पणी को लेकर बृहस्पतिवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर कटाक्ष किया और कहा कि ‘नागपुर द्वारा अग्नि मिसाइल दागी गई जिसका निशाना लोक कल्याण मार्ग था।’ आरएसएस का मुख्यालय नागपुर में स्थित है और ‘सात लोक कल्याण मार्ग’ प्रधानमंत्री का आधिकारिक निवास है।

भागवत ने एक कार्यक्रम में बृहस्पतिवार को कहा कि कि आत्म-विकास के क्रम में एक व्यक्ति ‘‘सुपरमैन”, फिर ‘‘देवता” और ‘‘भगवान” बनना चाहता है, लेकिन कुछ भी निश्चित नहीं है कि आगे क्या होगा तथा विकास का कोई अंत नहीं है।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने भागवत की टिप्पणी का हवाला देते हुए कहा, ‘‘मुझे यक़ीन है कि स्वयंभू नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री को इस ताज़ा अग्नि मिसाइल की ख़बर मिल गई होगी, जिसे नागपुर ने झारखंड से लोक कल्याण मार्ग को निशाना बनाकर दागा है।”

विपक्षी दलों से जुड़े कई लोगों ने भी सोशल मीडिया पर इसी तरह के कुछ कटाक्ष किए। झारखंड के गुमला जिले में ‘विकास भारती’ द्वारा आयोजित ग्राम-स्तरीय कार्यकर्ता बैठक को संबोधित करते हुए आरएसएस प्रमुख भागवत ने कहा कि लोगों को मानव जाति के कल्याण के लिए लगातार काम करना चाहिए, क्योंकि विकास और मानव महत्वाकांक्षा का कोई अंत नहीं होता है।

उन्होंने कहा, ‘‘मानवीय गुणों को प्राप्त करने के बाद, मनुष्य अलौकिक शक्तियों के साथ सुपरमैन बनना चाहता है.. ‘देवता’ बनना चाहता है, ‘भगवान’ का दर्जा प्राप्त करना चाहता है। लेकिन भगवान कहता है कि मैं ‘विश्वरूप’ हूं।”

उन्होंने कहा कि आंतरिक और बाहर के विकास का कोई अंत नहीं है और व्यक्ति को मानवता के लिए निरंतर काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि एक कार्यकर्ता को कभी भी अपने काम से संतुष्ट नहीं होना चाहिए।

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