प्रेमचंद के निजी व्यक्तित्व पर संघीय हमले : लेख - सुसंस्कृति परिहार


सुसंस्कृति परिहार 

संघ और भाजपा जो आज तक अपने निजी आईकान नहीं तलाश पाई। वह मशहूर लेखक प्रेमचंद की निजी ज़िंदगी पर अनर्गल आरोप लगाकर उनकी छवि धूमिल करने की कोशिश में लगी है। यूं तो प्रेमचंद का पाठ्यक्रम से बायकाट कर मृदुला सिन्हा को प्रतिस्थापित करने की पुरज़ोर मुहिम चली किंतु पाठ्यक्रम के अलहदा मृदुला जी जनमानस में स्थान नहीं बना पाई।

  • साहित्य से उन्हें नफ़रत है

प्रेमचंद का साहित्य जिसने भारत में स्थापित शोषण की विभिन्न परम्पराओं पर खुलकर जान जोखिम में डालकर हमले किए। वे ही परेशान ताकतें आज उनके निजी जीवन में दाखिल होकर उनकी कमज़ोरियों को सामने लाने विषैले प्रचार में लगी हैं। उन्हें जैसा कि आज़ादी के संग्राम सेनानियों के इतिहास से नफ़रत है और वे नया इतिहास लिखने में लगे हैं। इसी तरह पाखंड, छुआछूत, अनमेल विवाह तथा सामंती शोषण करने वालों के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले प्रगतिशील लेखक के साहित्य से उन्हें नफ़रत है।

  • दर्द बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की 

पिछले दस वर्षों के शासन काल में प्राचीन पाखंडी मान्यताओं पर जिस तरह का ज़ोर दिया जा रहा है। इससे आज की अपडेट नई पीढ़ी सिर धुन रही है। जहां-जहां सरकार रोक लगाने और उससे नफ़रत की बात करती है। युवा पीढ़ी उसे और दिलचस्पी से पढ़ रही है। समाज के विभिन्न वर्गों ने इस बार प्रेमचंद जयंती जिस उत्साह से मनाई। उनका पुनर्पाठ किया गया।उसने इन नफरती और पोंगापंथी ताकतों को हताश कर दिया उसी का परिणाम है। उनकी गरीबी को धनपति बनाना। उन्हें नशेबाज, मांसाहारी बताना वगैरह। इन चारित्रिक आक्षेपों से एक रचनाकार की आवाज़ को दफ़न नहीं किया जा सकता। वे आवाज़ें तब तक चीखती रहेंगी जब तक ये दमनकारी ताकतें धरा पर मौजूद रहेंगी।

ये तथाकथित सनातन संस्कृति के उपासक यह भी नहीं जानते कि किसी भी पतिततम आदमी की भी तमाम बुराईयां मौत के साथ ख़त्म हो जाती हैं। सिर्फ अच्छाई ही शेष और चर्चाओं में रहती है। अब ये बात और है कि ये वे धूर्त लोग हैं, जो सर्व कल्याण की बात सोचने वाले को अपने निजी कल्याण के लिए शत्रु की तरह देखते हैं।

  • उनके फटे जूते, इनकी दरिद्र मानसिकता 

कबीर और हरिशंकर परसाई के बीच की कड़ी के रूप प्रेमचंद एक महत्वपूर्ण रचनाकार है। उनके फटे जूते वाली फोटो जो अक्सर सोशल मीडिया पर नज़र आती है और जिसे देखकर परसाई प्रेमचंद के फटे जूते लिखते हैं। उनकी आर्थिक स्थिति दर्शाते हैं। उनका समाज सुधारक स्वरूप उनके लेखन की तासीर बताता है। वे क्या खाते पीते हैं, इससे फ़र्क नहीं पड़ता। प्रेमचंद कालजयी रचनाकार हैं। संघ के उन पर हुए हमलों के कारण वे और ज्यादा पढ़े जा रहे हैं। डूबती संघी सरकार के ये घृणित विचार उसकी कुंठा के प्रतीक हैं। चूंकि उनके पास कोई आईकान नहीं जिसे माडल के रुप में पेश कर पाते।

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