लेख - आज़ाद भारत में स्त्री अस्मिता को कौन बचाएगा ? : लेखक सुसंस्कृति परिहार

लेख - आज़ाद भारत में स्त्री अस्मिता को कौन बचाएगा ? : लेखक सुसंस्कृति परिहार 


लेखक सुसंस्कृति परिहार  


नौ अगस्त कोलकाता की घटना ने एक बार फिर यह बता दिया है कि आज़ादी के 77 साल बाद भी स्त्री दरिंदों के आगे कितनी कमज़ोर है। महिला सशक्तिकरण, बेटी-बचाओ, बेटी पढ़ाओ, नारी सुरक्षा कानूनों के तमाम प्रयास नाकाम रहे हैं। जबकि पुरुष सशक्त हुआ है, वह गैंगरेप के साथ पीड़िता के साथ कुत्सित और क्रूरतम व्यवहार कर जान भी लेने लगा है। इस डरावने सच के पीछे जो मानसिकता काम कर रही है, उसकी पड़ताल बेहद ज़रूरी है।
ऐसी घटनाएं आमतौर पर नशा करने वाले लोग ही करते हैं। निर्भया को याद कीजिए किस तरह बस के कर्मियों ने वीभत्स कृत्य किया था। ताज़ा कोलकाता, उत्तराखंड और मुजफ्फरपुर में भी ऐसी स्थिति में घृणित और जघन्य कृत्य हुआ। मुजफ्फरपुर  में स्तन काटने की नांगली प्रथा को दुहराया गया। यहां यह भी प्रयास होने चाहिए कि पीड़िता के साथ हुई यौन हिंसा के तौर-तरीकों का प्रचार प्रसार ना हो। क्योंकि रेप करने वाले उसका अनुसरण करने लगते हैं।

  • सत्ता अपराधियों का स्वागत करने में भी संकोच नहीं करती

दूसरी बात यह कि ऐसे लोगों का मनोबल बहुत सी ऐसी घटनाओं के दुर्दांत अपराधियों के साथ हुए राजनैतिक बर्ताव से भी बढ़ता है। कुलदीप सैंगर ही नहीं बल्कि सैकड़ों महिलाओं के साथ यौनाचार करने वाले जेल से पैरोल पर आज़ादी के दिन ही छोड़े जाते है। ये है राम-रहीम और आसाराम बापू। याद कीजिए पिछले साल सुबह सुबह स्वाधीनता दिवस पर बिल्किस बानो के साथ अमानवीय कृत्य करने वालों को जेल से रिहा किया गया था। जिस देश की सत्ता इस महान दिवस पर ऐसे बलात्कारियों के साथ ऐसा व्यवहार करें तो जुनूनी लोगों का मनोबल बढ़ता ही है। खास बात ये कि सत्ता इन अपराधियों का स्वागत- अभिनन्दन भी करने में संकोच नहीं करती।

  • बढ़ गया साक्ष्य मिटाने पीड़िता को जान से मारना 

तीसरी बात यह भी सामने आई है कि निर्भया कानून बनने के बाद जब महिलाएं सतर्क होने लगीं तो गैंगरेप बढ़ना शुरू हुआ तथा साक्ष्य मिटाने पीड़िता को मारा जाना भी तेजी से शुरू हुआ। इस कानून में फांसी का प्रावधान था पर आज तक शायद ही किसी को फांसी हुई हो। बहुसंख्यक मामले तो परेशानियों के चलते वापस ले लिए जाते हैं। इससे भी ऐसी प्रवृत्ति को भी बढ़ावा मिला है।

  • धरना प्रदर्शन के बाद भी नहीं होती सुनवाई 

इससे अधिक शर्मनाक इस देश के लिए क्या हो सकता जब विश्व पटल पर सुर्खियां बटोर चुकी महिला पहलवान प्रधानमंत्री से कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के अपमान जनक यौन व्यवहार की शिकायत करती है। उनकी सुनवाई नहीं होती वे धरना प्रदर्शन करती है। संसद के सामने प्रदर्शन करने बाध्य होती है किंतु वहां से उन्हें अपमानित कर खदेड़ा जाता है। क्योंकि भाजपा सांसद बृजभूषण रसूखदार एक बड़े वोट बैंक का आधार है।
देश की सत्ता पर प्रतिष्ठित महामानव जो मणिपुर में हुए नारी अस्मिता और अपमान पर अब तक चुप्पी साधे हैं तो नारी की यह हालत तो होनी ही है। यह चुप्पी ऐसे कुत्सित कार्य करने भी प्रेरित करती है। सोचिए यदि साहिब बहादुर महिला पहलवानों और मणिपुर मामलों पर त्वरित कदम उठाकर सम्बंधित लोगों पर सख्त कार्रवाई करते तो आज ऐसी घटनाएं लगातार सामने नहीं आती। अफसोसजनक बात ये है कि ना महिला पहलवानों की और ना ही मणिपुर की महिला खिलाड़ियों की बात सुनी गई।
शायद यह उस स्कूल का दोष है जहां से वे निकले हैं जहां महिलाओं से घृणा करना सिखाया जाता है। विवाह को उलझन समझा जाता है उसे तो सिर्फ़ घर की शोभा और गुलाम समझा जाता है। यही वजह है कि इस स्कूल के सौ वर्ष पूरे होने को हैं लेकिन एक भी स्कूल की महिला को उच्च पद पर प्रतिष्ठित नहीं किया गया। पत्नी से नफ़रत और बिना तलाक उसे मुकद्दर के भरोसे छोड़ देना इस स्कूल की नियति रही है। उसके छात्र से कैसे महिला सुरक्षा और सम्मान की अपेक्षा की जा सकती है। याद कीजिए कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष, प्रतिपक्ष नेता सोनिया गांधी को कितने अपमानजनक अपशब्द ऐसे लोगों से सुनने पड़े। जबकि इससे पहले राजनैतिक गरिमा कभी नहीं टूटी। गत दिनों राज्यसभा के सभापति देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ द्वारा सांसद जया बच्चन के लिए हंस हंस कर जिन शब्दों का प्रयोग किया गया। वह एक सांसद की गरिमा को आहत करता है। महिलाओं के साथ संसद में शर्मनाक व्यवहार हो रहा है।घोर निंदनीय भी।

कहने का आशय यह है कि यौन कुंठा से ग्रस्त लोग ही स्त्री के प्रति ऐसा रवैया अख्तियार करते हैं। आज देश में ऐसा माहौल पनप रहा है। इसका निदान तब तक असंभव है जब तक सरकार खुले में शराब पीने वालों पर सख्त कार्रवाई नहीं करती तथा सबसे ज़रूरी बात है अपराधियों को संरक्षण के बजाय सख़्त सजा का प्रावधान नहीं करती, राजनैतिक और गैर राजनैतिक अपराधियों के साथ होने वाला व्यवहार एक जैसा ज़रूरी है। ऐसे मामलों का जल्द से जल्द निपटारा किया जाए ताकि लोग उस घटना को ना भूल पाएं और सबक लें। महिलाओं को भी एकजुट होना होगा। महिला यदि महिला की तकलीफ़ में शामिल नहीं होती है, तो उसे धिक्कार है। सबसे अहम् बात ये भी है वे अपने साथ हो रहे दुर्व्यवहार को छुपाएं नहीं सार्वजनिक करें और सबके साथ मिलकर बेझिझक उजागर करें। ध्यान रखें ऐसे मामले में कसूरवार महिला नहीं होती जिसे अमूमन महिला समाज समझ लेता है। लगता है अब यह कमान जिम्मेदार महिलाओं को अपने सहयोगियों के साथ संभालनी होगी। क्योंकि इस सत्ता से महिला अस्मिता की बात करना बेमानी है। महिला जब जागेगी तभी सबेरा होगा।

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