लेखक ए विनोद, राष्ट्रीय संयोजक, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास
एनसीईआरटी ने बहुप्रतीक्षित पाठ्यपुस्तकों को जारी करना शुरू कर दिया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुसार, एनसीईआरटी ने पिछले साल बुनियादी स्तर का पाठ्यक्रम प्रकाशित किया था। इसके अंतर्गत बालवाड़ी (प्री-प्राइमरी) स्तर यानी 3 से 6 वर्ष के बच्चों हेतु एक शिक्षण सामग्री ‘जादू का पिटारा’ प्रस्तुत की गई थी। चयनित केंद्रीय विद्यालयों के माध्यम से इसकी उपादेयता का परीक्षण किया गया है और इस वर्ष से इसे नियमित रूप से शुरू किया गया है। इसके अलावा कक्षा एक और दो के लिए गणित और भाषा की किताबें प्रकाशित की गई हैं। इस प्रकार, यह नया शैक्षणिक वर्ष स्कूली शिक्षा के पहले पांच वर्षों के लिए, बुनियादी स्तर की पाठ्य-पुस्तकों, शिक्षण सहायक सामग्री और अध्ययन सामग्री के साथ शुरू हुआ है। अभी कक्षा 3 के लिए पर्यावरण विज्ञान (चारों ओर की दुनिया), गणित (गणित मेला), कला (बांसुरी), शारीरिक शिक्षा (खेल योग) के साथ-साथ तीन भाषाओं (हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी) की किताबें भी प्रकाशित हुई हैं।
तीसरे चरण अर्थात कक्षा तीन से विषय-आधारित शिक्षा शुरू होती है। इस वर्ग के लिए प्रकाशित पाठ्य-पुस्तकों में प्रतिपादित दृष्टिकोण, उसकी सामग्री और संरचना आदि सभी महत्वपूर्ण होते हैं। ये पुस्तकें आगे की कक्षाओं में आने वाली पाठ्य-पुस्तकों और उनमें मौजूद सामग्री का संकेत भी देती हैं। एन.सी.एफ. में नए पाठ्य-पुस्तक के माध्यम से किए जाने वाले मुख्य परिवर्तनों को वर्णित किया गया है। यह बच्चों में भारतीयता, अनुभवात्मक ज्ञान, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, सीखने की पद्धति, तर्कसंगत सोच और शाश्वत जीवन मूल्य पर ज़ोर देता है। इसके मूल में बच्चों को व्यावहारिक स्तर पर विकसित करने की संभावनाएं मौजूद हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि सद्यः प्रकाशित पाठ्य-पुस्तकों की पाठ्य-सामग्री एन.सी.एफ. के मूल उदेश्य के अनुरूप है। किताबें बच्चों की रुचि को देखते हुए तैयार की गई हैं इसलिए उन्हें बहुत प्यारी प्रतीत हो रही हैं। ये पुस्तकें उन लोगों की भी सबसे महत्वपूर्ण मांग थी जो पुरानी और दोषपूर्ण प्रणाली की जगह एक आधुनिक भारतीय मॉडल को पुष्ट करने वाली पुस्तकें चाहते थे। इस प्रकार ये पाठ्य-पुस्तकें आयातित विचार और दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली के खिलाफ भारतीयता के विचार को पुष्ट करने वाली रोमांचक और छात्रोपयोगी हैं।
प्रकाशित पुस्तकें न केवल सामग्री के आधार पर ही सराहनीय हैं बल्कि संयोजन अथवा संकलन की दृष्टि से भी सराहनीय हैं। प्रत्येक पाठों के अनुक्रम में इतिहास के अध्ययन को बहुत ही वैज्ञानिक और व्यापक तरीके से प्रयुक्त किया गया है। इतिहास के पाठ तर्कसंगत तरीके से बढ़ते हैं जैसे इतिहास का समय और स्रोत नामक अध्याय (इतिहास क्या है ?, इतिहास का अध्ययन कैसे किया जाता है ?, मानव इतिहास कहां है?) और फिर हमारे इतिहास के बारे में, भारत जो भारतीय है, भारतीय सभ्यता की शुरुआत, भारत की सांस्कृतिक जड़ें, विविधता में एकता या एक में कई परिवार और समुदाय। इस तरह पाठ्य-पुस्तक का दृष्टिकोण इतिहास को उसकी संपूर्णता में व्याख्यायित करना और उसमें भारत के स्थान को वर्णित करना है। प्रत्येक पाठ की शुरुआत में भारतीय विचार का परिचय देकर छात्रों में प्रेरणा और आत्मसम्मान पैदा करने पर विशेष ध्यान दिया गया है। पुस्तक के निर्माताओं ने यह अनुभव किया है कि भारत की सांस्कृतिक विरासत एक ऐसी चीज है जिसे प्रत्येक पाठ की व्यवस्था करते समय किताबी ज्ञान से परे अनुभव करने की आवश्यकता है। ये पाठ्य-पुस्तकें राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के मूल को तैयार करने में एक बड़े मानक तक पहुंच गई हैं, जिसका उद्देश्य जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में भारत की उपलब्धियों, हमारे जीवन मूल्यों और ज्ञान परंपरा को एकीकृत करके एक ‘आधुनिक ज्ञान संचालित आर्थिक समाज’ बनाना है।
हम जानते हैं कि प्रारंभिक चरणों में सामाजिक विज्ञान की पाठ्य-पुस्तक इतिहास, भूगोल, राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र को एकीकृत तरीके से पेश करती है। यहां भी सामग्री उसी तरह से प्रस्तुत है, लेकिन सभी पाठ मुख्य रूप से तीन बुनियादी विचारों से गुजरते हैं - भूवैज्ञानिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक। प्रत्येक भाग सांस्कृतिक विरासत और उसकी विशेषताओं का विवेचन तो करता ही है इसके साथ ही एक समाज के रूप में इसके प्रगतिशील मूल्यों को वर्णित करता है। इतना ही नहीं विवेच्य समाज के प्रगतिशील मूल्यों को पूर्व में कैसे व्यक्त किया गया और आज उसकी प्रासंगिकता क्या है ? इसका परिक्षण करता है। इसके माध्यम से नई पीढ़ी को न केवल भारत की सांस्कृतिक विरासत का ज्ञान होता है, बल्कि उसे सराहना का अवसर भी मिलता है। यह निश्चित रूप से लक्षित पाठक वर्ग के मन-मस्तिष्क में आत्म-सम्मान का भाव पैदा करेगा। हर स्तर पर, बच्चे को एक व्यक्ति के रूप में अपनी भूमिका का एहसास करने, अधिकारों की भावना के साथ अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को समझने और एक अच्छे नागरिक के रूप में लोकतांत्रिक प्रणाली को समझने का अवसर दिया जाता है। इस नागरिक भावना को कम उम्र में ही व्यवहार में लाने का दृढ़ विश्वास पैदा करने हेतु पाठ्य-पुस्तक में विशेष ध्यान रखा गया है। पाठ्य-पुस्तक प्राकृतिक और मानव संसाधनों के पारस्परिक लाभकारी समर्थन के माध्यम से कुल कल्याण प्राप्त करने संबंधी भारतीय दृष्टिकोण को मजबूत आधार प्रदान कर रही है और इस दृष्टि से वह अर्थशास्त्र के क्षेत्र से संबंधित है। यह इतिहास, भूगोल और आधुनिक युग की चुनौतियों और अवसरों को ठीक ढंग से वर्णित करती है। इन पुस्तकों के माध्यम से एक चिंतन दृष्टि मिलती है कि आधुनिक युग के वैश्विक नागरिकों का दृष्टिकोण कैसा होना चाहिए।
इन सभी मामलों को आवश्यक दार्शनिक समर्थन देने के लिए, प्राचीन ग्रंथों से उद्धरण और लोकप्रसिद्ध व्यक्तियों के उपदेशों को एक ऐसे तरीके से शामिल करने का प्रयास किया गया है जो अतिश्योक्तिपूर्ण या अप्रिय नहीं है। भारतीय संस्कृति सभी की एकता (एकम सद् विप्रा बहुधा वदन्ति) पर आधारित है, यह विचार पाठ्य-पुस्तक विभिन्न माध्यमों से व्यक्त हुआ है। यह भी चर्चा की गई है कि भारत की बौद्धिक विरासत कला, साहित्य, विज्ञान, चिकित्सा, योग, धर्म, शासन, मार्शल आर्ट, वास्तुकला, मूर्तिकला, शिल्प और चित्रकला जैसे विभिन्न रूपों में व्यक्त की गई है। इसके अलावा भारत के विविध दर्शन, सांख्य, न्याय, योग, द्वैत, अद्वैत विचार आकर्षक और दिलचस्प तरीके से प्रस्तुत किए गए हैं। इन पाठ्य-पुस्तकों के माध्यम से हम देख सकते हैं कि भारत में उभरे शैव, वैष्णव, बौद्ध, जैन, सिक्ख, सूफी जैसे विभिन्न धार्मिक पंथों के एकीकरण से भारत ने कैसे प्रगति की और विश्व में शांति व्यवस्था के निर्माण में भारत द्वारा किए जाने वाले सद्प्रयास (दुनिया के विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक विचारों को एकीकृत करने) की भावना का बीजारोपण कैसे हुआ!
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