आलेख : बुढ़ापे का लें जमकर आनंद - लेखक सुसंस्कृति परिहार


लेखक सुसंस्कृति परिहार

बड़ी अजीब बात है जिस उम्रदराज़ होने की हम जीवन भर दुआएं लेते हैं, इस जीवन को लंबी उम्र पाने के लिए कई नुस्खे अपनाते हैं और जब उम्र रिटायरमेंट की आती है तो यकायक अपने को निढाल कर लेते हैं मानों जीवन का सब आनंद ख़त्म हो गया हो। वस्तुत:इसे इस तरह लेना चाहिए सोचिए किस तरह आप बैल की तरह अब तक जुते रहे अब निजात मिली है तो जीवन का लुत्फ उठाइए।
ये जो दूसरी पारी की शुरुआत हम करते हैं उसे यदि आप करीने से लेते हैं और अपने दमित स्वप्नों को साकार करने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं तो जीवन फिर लहलहा उठेगा। यदि घूमने के शौक़ीन हैं तो घर के हालात के अनुसार घुमक्कड़ी का कार्यक्रम पत्नी के साथ बना लीजिए हो सकता है, उन्हें आपके साथ घूमने का अवसर शायद ही मिला हो। जीवनसंगिनी के साथ आपको वो खुशी मिलेगी, जिससे आपकी आधी परेशानियां हल हो जाएंगी। पत्नी की अभिरुचियों का ख़्याल इस उम्र के पड़ाव पर ज़रुर रखें उसने जीवन भर पूरे परिवार का ख्याल रखा है इसे ना भूलें। यहां एक बात का ध्यान रखें स्वप्न ऐसे ना देखे जाएं जो क्षमता से बाहर हों।बहुतेरू लोग इस समय का सदुपयोग पेंटिंग,गायन तथा अन्य कलात्मक अभिरुचियों में कर सकते हैं।

यहां यह बात विशेष तौर पर ध्यान देने की है कि घर में हुकूमत जमाने की कोशिश ना करें क्योंकि अब आपको सहारे की जरूरत होगी देह कमज़ोर हो रही होगी आहिस्ता आहिस्ता। ये कुदरत का नियम है इसे कोसिए मत ना ही ज़रा ज़रा सी तकलीफ़ के लिए डॉक्टर यहां जाएं। सर्वोपरि है अपना ध्यान किसी भी क्षेत्र में केंद्रित करें। इसीलिए कतिपय लोग भगवान भक्ति में लीन होने कहते हैं क्योंकि यह सहज है। यह ध्यान अध्ययन, लेखन और बच्चों में कलात्मक रुचियां जागृत करने में भी तल्लीनता से लगाया जा सकता है।

भोजन में रसास्वादन की इच्छा इस उम्र में बलवती होती है | प्रेमचंद ने बूढ़ी काकी कहानी में इस सत्य को उजागर भी किया है किंतु अपने दिन दिन कमज़ोर होते शरीर को जितना उचित हो उतना ही ग्रहण करें। बार-बार याद रहें कि धीरे-धीरे सब इंद्रिया शिथिल हो रही हैं। प्रकृति अपने काम में जुटी है। क्षरण के बाद फिर अवसान के क्षण पूरी कायनात में आते हैं |  इससे हम बच नहीं सकते इसलिए अपने जीवन को उसकी कृपा ही मानें और उसका ज़रुरत के हिसाब से उपयोग करें।

एक दिलचस्प बात ये है विज्ञान ने मानव जीवन को सहयोग देने कुछ चीज़ें विकसित कर ली हैं | मसलन कान से कम सुनाई देने पर मशीन लगा लेना, आंखों से कम दिखने पर लैंस बदलवा लेना, दांत गिरने पर बत्तीसी लगवाना, बाल झरने पर विंग लगा लेना वगैरह लेकिन एक बार हमें सोचना चाहिए कि यह प्राकृतिक नियमों के ख़िलाफ़ हैं क्योंकि प्रकृति ने यदि कान, दांत, आंख कमज़ोर किए हैं तो वह हमारी प्राकृतिक सुरक्षा के तहत हैं एवं हमारे कवच हैं। मसलन कान ध्वनि प्रदूषण या ऊल-जलूल बात को हम तक ना पहुंचाकर मस्तिष्क को स्वस्थ रखेंगे, आंखों की कमजोरियां भी उसे बेवजह परेशानियों से बचाएंगी। बत्तीसी लगवाकर अनजाने में आप अपने पेट में अजर-गजर पहुंचाते हैं। दांत गिरकर आपसे तरल खाद्य की जैसे दूध, दलिया, दाल, दलिया, खिचड़ी या दाल सब्जी में डूबीं मुलायम रोटी खाने को कहते हैं। नई बत्तीसी के चक्कर में, आपने जो खाया है उसे साठ सत्तर बरस पुरानी आंतें कैसे पचा पाएंगी। उसे बदला जाना तो मुमकिन नहीं। विस्मरण  होना भी आपको ताजगी देगा वरना आप वर्षों पुराने दुखद अवसरों को याद कर  अपने मस्तिष्क को परेशान करते। इसलिए प्रकृति के काम में बाधा डालना अनुचित व्यवहार है। इससे अनेकों बीमारियां घेर लेती हैं यदि उसके अनुरूप ही चलते हैं तो बिना दवा दारु प्राकृतिक मृत्यु को प्राप्त करते हैं जिसमें हमारी विदाई खुशी के साथ होती है।

मान लीजिए आपके पास कोई बीमारी आ जाए तो भी घबराएं नहीं। घबराने से बीमारी बढ़ती है। मनोबल से काम लें कैंसर रोगियों को भी हंसते हुए बीमारी से जूझने की सलाह दी जाती है जो उनकी उम्र ही नहीं बढ़ाती बल्कि उनकी तकलीफ़ भी कम कर देती है। जिजीविषा और मनोबल आपका सुदढ़ है तो मौत से कभी डर नहीं लगेगा आजकल हंसने को तो तन्दुरूस्ती के लिए जरुरी माना गया है।

इसके लिए बुजुर्ग चाहें तो लाफ्टर क्लब बना लें इसमें अपने जीवन के उन पलों या क्षणों को रखें जब आप खुश हुए थे। यहां आप गाएं, नाचे, मस्ती करें। जो जीवन को आनंददायक बना देगा। परिवार के साथ यदि मुफीद हो तो सोने में सुहागा। यदि यह संभव ना हो आपकी इच्छा शक्ति से कई परिवार आपके अपने बन जाते हैं। इस सब के लिए आपका निश्छल प्रेम ही अहम् है। वैसे आजकल पीढ़ियों का गैप इतना बढ़ गया है कि नाती पोते बहुत व्यस्त हो गए हैं वरना पुराने लोग बच्चों के किस्सा कहानी, नैतिक शिक्षा देते ना केवल बुढ़ापा काटते थे बल्कि एक समझदार पीढ़ी को जन्म देते थे। आज भी बहुत से ऐसे बच्चे मिल जाएंगे, जिनका कोई भविष्य नहीं है यदि दो चार बच्चों का भी साथ देते हैं | उनकी शिक्षा-दीक्षा में सहभागिता निभाते हैं तो जो उनसे स्नेह-प्यार मिलेगा वह आपके जीवन की सांसों को मज़बूत करेगा ।
कुल मिलाकर बुढ़ापा टांग पसारकर आराम कुर्सी पर बैठकर हुकुमत जमाने के लिए नहीं है वह तो जीवनानुभव का खजाना है। उसे बांटिए। मस्त रहिए। अपनी चिंता छोड़िए। अंत सभी का एक जैसा होता है। मायने वह जीवन रखता है जो दूसरे के साथ इस उम्र में आनंदपूर्वक रहकर सबको आनंदित रखता है। आईए अपने बुढ़ापे को सजाने और संवारने में लग जाएं ताकि हमसे किसी को गिला-शिकवा ना रहे।


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