आलेख : आखिरकार झूठ की उम्र कितनी लंबी होगी लेखक - सुसंस्कृति परिहार

आलेख : आखिरकार झूठ की उम्र कितनी लंबी होगी  लेखक - सुसंस्कृति परिहार 



भारत देश में प्राचीन काल से नैतिक शिक्षा का ज़ोर रहा है,जिसमें अपराध से घृणा और सच का साथ देने पर ज़ोर दिया गया है। इन्हीं शिक्षाओं की बदौलत समाज में अपराध वृत्ति पर अंकुश लगाने की कोशिश की गई। स्कूलों में प्राथमिक विद्यालय से हमें यह ज्ञान मिला है हमारे बुजुर्गवार हमें हरदम ऐसी शिक्षा कहानियों के माध्यम से भी देते रहें हैं। तब ऐसा दौर था हम किसी उचित मनपसंद पात्र को अपना आदर्श बना लेते थे और उसका अनुकरण करते थे।

पिछले दस सालों में स्कूली पाठ्यक्रम से नैतिक शिक्षा ख़त्म कर दी गई है | साथ ही साथ कुछ आदर्श महापुरुषों, लेखकों को भी हटा दिया गया है। उसकी जगह पर संघ की शाखाओं में जिस तरह के पाठ आयोजित हुए उसने एक नई सोच विकसित की। जिसने देश के गांव गांव में खुले सरस्वती शिशु मंदिरों के माध्यम से देश भर में पहुंचाने और मानसिकता बदलने में अहम् भूमिका निभाई। संघ नीत भाजपा सरकार ने तो संपूर्ण शिक्षा की कमर ही तोड़ दी।
हालांकि ये शाखाएं चोरी छिपे भारतीय मेलजोल वाली संस्कृति के स्वरूप को लेकर 1925 से ही लोगों को तैयार करने में जुटी थीं | हिटलर इनका आदर्श था इसलिए टोपी का रंग काला और पोशाक भी विदेशी खाकी रंग का पेंट शर्ट चुना गया| विचार भी वही फासिस्टवादी। आज इनकी उन्हीं शाखाओं से निकले लोग भारत के सत्ता के हर केंद्र में बैठे हुए हैं। इसलिए अपराध का ग्राफ़ निरंतर बढ़ रहा है। स्त्रियों के प्रति इनका घृणास्पद व्यवहार जग जाहिर है। इसलिए बलात्कार के अपराधियों का स्वागत सत्कार और सम्मान होता है। मुसलमान नाम आते ही इनकी पाशविक प्रवृत्ति जाग उठती है। अब तो मुस्लिम पोशाक और वेश में हिंदू महिलाएं और पुरुष भी मुसलमानों को बदनाम करने जघन्य अपराधों में संलग्न पाए जाते हैं। यह घृणा भारत पाक विभाजन के समय से परवान चढ़ी। 

तब जन जन में प्रिय, सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी को गोलियों से भूनकर यह कोशिश की गई कि इस हत्या के बाद तमाम मुसलमानों को पाकिस्तान खदेड़ दिया जाएगा। किंतु तत्कालीन  प्रधानमंत्री पंडित नेहरु और सरदार पटेल जैसे नेताओं में देश की जनता ने विश्वास जताया और देश में एका बनी। हिंदुओं का ध्रुवीकरण नहीं हुआ इसलिए ये नेहरू को रात-दिन कोसते हैं और उनके परिवार जनों से मुसलमान जैसी नफ़रत करते हैं। 2002 में गुजरात दंगे कराने का रहस्य गोदरा में कारसेवकों की ट्रेन जलाने का कथित आरोप इसी गैंग पर है। जैसे पुलवामा रहस्य  बना हुआ है। दिल्ली के दंगे इनके द्वारा प्रायोजित थे। देश में कांग्रेस शासन के दौरान जितने भी दंगे फसाद कराए गए उनमें संघ के अनुषंगी संगठनों का हाथ रहा। नाथूराम गोडसे जैसा हत्यारा हिंदू महासभा से जुड़ा था, जिसे संघ ने प्रशिक्षण दिलवाया था। आज ऐसे 300 से अधिक संघ के अनुषंगी संगठन अपराध करने में संलग्न हैं, इसलिए संघ पर सीधे कोई इल्ज़ाम नहीं लगता। वह अपने को साफ़ पाक बताता है। यह छल और छद्मावरण वाले लोग हैं।
याद कीजिए सनातन संस्था और हिंदू जागृति मंच को जिस पर डॉ. नरेंद्र  दाभोलकर, कामरेड  गोविंद पानसरे, प्रख्यात लेखक एमएम कलबुर्गी और पत्रकार लंकेश गौरी की हत्याओं के आरोप हैं क्योंकि वे भी सच उजागर करने वाले समाजसेवी लोग थे। माॅब लिंचिंग में कितने जुनैद गौरक्षा आंदोलन वालों और बजरंग दल ने मार दिए। जेएनयू में घुसपैठ कर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने कन्हैया कुमार को किस तरह झूठा वीडियो बनाकर फंसाया गया था। मुस्लिम छात्र उमर खालिद बिना अपराध सिद्ध हुए चार साल से जेल में है। उसे जमानत  भी नहीं मिल पा रही। कहने का आशय स्पष्ट है कि ये मुख में राम बगल में छुरी रखने लोग हैं। संघ प्रमुख के भाषण लोगों को भ्रमित करने वाले होते हैं, असली चेहरा उनके ऐसे संगठनों में देखा जा सकता है।

पिछले दिनों से एक ख़बर अखबार में सुर्खियों में है कि गोड्सेवादियों ने प्रतिपक्ष नेता राहुल गांधी को जान से मारने की धमकी दी है। तो एक संगठन के विधायक ने राहुल की जीभ काटकर लाने पर इनाम देने की बात कही है। ये सब राहुल की बढ़ती अपार लोकप्रियता और सत्ता जाने के डर से उपजी मानसिक बीमारी और कायरता का प्रतीक है। निर्भीक और अपार साहस से लबरेज़ राहुल इस धमकी से डरने वाले हैं। डरे हुए तो वे लोग हैं जो उनके ख़िलाफ़ षड्यंत्र रच रहे हैं। आज सच बोलने वाले को फिर मारने की खुले आम धमकी दी जा रही। सरकार का विधायक सरे आम चैलेंज कर रहा है। ये अपराधियों का राज नहीं तो और क्या है?

अच्छी बात यह है कि राहुल के चाहने वाले उन तक तमाम सूचनाएं पहुंचा रहे हैं वे पूरी तरह सावधान और सजग है। इस तरह की बात सोचने वाले अपना पुराना 1948 का इतिहास देख लें। महात्मा गांधी को समाप्त करने के बाद देश ने कांग्रेस को सर पर बैठाए रखा। देश मज़बूत हुआ। उसकी दुनियां में साख रही। अपराधी को मौत की सज़ा मिली। सच जीता।

1914 में जो कुछ हुआ उसमें झुठ जीत का प्रमुख आधार बना। उसके बाद षडयंत्रों से जीत। तीसरी बार षड़यंत्रों की आंशिक सफलता ने परेशान कर रखा है। चार सौ पार के अरमान  ठंडा गए। दस साल बाद प्रतिपक्ष नेता की उपस्थिति असहनीय हो गई है। जमे जमाए खेल की गोटियां तितर बितर हो रही हैं। तिस पर पितामह संघ पुरुष का ख़फ़ा होना नागवार गुजर रहा है। आखिरकार झूठ की उम्र कितनी लंबी होगी। उनके अपराध अक्षम्य है। जबकि सच परेशान हो सकता है, पराजित नहीं।

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