लेखक सुसंस्कृति परिहार |
कम्युनिस्ट आंदोलन के लिए कामरेड येचुरी का जाना एक देश की चिंताओं में शामिल एक महान शख्सियत का जाना है। अफ़सोसनाक यह कि जब वाममोर्चा के प्रति लोगों की आश्वस्ति बढ़ रही थी, तभी उनका जाना अखर गया। जैसे ही कामरेड सीताराम येचुरी के अवसान की ख़बर आई तमाम वामपंथी संगठनों में ख़ामोशी छा गई। वे एक प्रसिद्ध स्तंभकार, अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में जाने जाते थे। उनके छात्र आंदोलनों में लगातार सक्रियता से भला कौन अवगत नहीं होगा। हायर सेकंडरी के आल इंडिया टापर रहे येचुरी जेएनयू के तीन बार अध्यक्ष रहे। इमरजेंसी के दौरान वे जेल भी गए।
सीताराम येचुरी अस्सी के दशक में सीपीएम की केंद्रीय राजनीति का हिस्सा बने और फिर लगातार कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते गए। 1984 में वो सीपीएम की केंद्रीय समिति में चुने गए। 1985 में प्रकाश करात के साथ वो. सीपीएम के केंद्रीय सचिवालय का हिस्सा बने, जिसे पोलित ब्यूरो के मातहत काम करना था। 1992 में वो सीपीएम की पोलित ब्यूरो में चुने गए.। 2015 में सीपीएम के महासचिव चुने गए 2018 और 2022 में उन्हें दूसरी और तीसरी बार सीपीएम के इस सर्वोच्च पद के लिए चुना गया। 1984 में वो सीपीएम की केंद्रीय समिति में चुने गए।1985 में प्रकाश करात के साथ वो. सीपीएम के केंद्रीय सचिवालय का हिस्सा बने जिसे पोलित ब्यूरो के मातहत काम करना था। 1992 में वो सीपीएम की पोलित ब्यूरो में चुने गए। 2015 में सीपीएम के महासचिव चुने गए 2018 और 2022 में उन्हें दूसरी और तीसरी बार सीपीएम के इस सर्वोच्च पद के लिए चुना गया
येचुरी को पार्टी के पूर्व महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत की गठबंधन निर्माण विरासत को आगे बढ़ाने के लिए जाना जाता है। उन्होंने 1996 में संयुक्त मोर्चा सरकार के लिए साझा न्यूनतम कार्यक्रम का मसौदा तैयार करने के लिए पी चिदंबरम के साथ सहयोग किया था। साल 2004 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के गठन के दौरान गठबंधन निर्माण प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सीताराम येचुरी ने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के मुद्दे पर UPA सरकार के साथ चर्चा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हालांकि, 2008 में वामपंथी दलों ने इस मुद्दे पर सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था, जिसका मुख्य कारण उनके प्रकाश करात का अडिग रुख था।
इन दिनों में वे त्रिपुरा और बंगाल में सीपीएम को पुनर्जीवित करने के प्रयास में लगे थे, वे निजी जीवन के दुखद संकटों से भी जूझ रहे थे। उनके 35वर्षीय पुत्र आशीष का कोरोना में चले जाना उसका मुंह देखने के लिए तरसता उनका चेहरा ग़मगीन कर देता है। जब से एम्स में अपनी बीमारी से जूझ रहे थे तभी बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य की मौत की ख़बर उन्हें मिलती है वे अपने संदेश में वे लिखते हैं -“यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि मुझे एम्स से ही बुद्धो दा के प्रति भावनाएं प्रकट करना और लाल सलाम कहना पड़ रहा है।" इसके बाद उन्होंने कामरेड नूरानी की मौत पर ग़म जताया। कौन जानता था कि अपने कामरेड साथियों की मौत पर शोक जताते जताते वे भी उसी राह चल देंगे। उनके कामरेड के अपूर्ण कार्यों को गति देकर ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है। कामरेड येचुरी ज़िंदाबाद। लाल सलाम। वे हमेशा याद किए जाएंगे।
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