लेखक - सुसंस्कृति परिहार |
संविधान के प्रति वैसे भी भारत सरकार की रुझान ना के बराबर है, किंतु मज़बूरी में उसे सम्मान देने की नौटंकी आपने संसद में देखी होगी, जब हमारे माननीय साहब जी ने माथे से संविधान के प्रति लगाकर अपनी गहरी निष्ठा का प्रदर्शन किया था। बात आई गई हो गई और संविधान की धज्जियां निरंतर उड़ाई गई। संसद से लेकर न्यायालय, चुनाव आयोग और स्वतंत्र इकाई के रुप से जांच में जुटे संस्थानों की क्या हालत कर दी गई। अब तो सिर्फ एक आवाज सब पर भारी लोकतंत्र को दस वर्षों के बाद भी तहस नहस करने में जुटी है। आइए एक नज़र संविधान की प्रस्तावना पर डाल लें "हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए ,दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0 को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।"
हाल ही एनसीआरटी की कक्षा तीसरी और छठवीं की पुस्तक में से संविधान की प्रस्तावना को हटा दिया गया है। जिसकी पहली पंक्ति पढ़कर "हम भारत के लोग... पढ़कर भारतवासी गौरव का अनुभव करते हैं। इन छोटी क्लासों से इसे हटाकर बच्चों को इसमें उल्लिखित तमाम बातों से वंचित किया जा रहा है जो भारतीय संविधान की आत्मा का निचोड़ है। तुर्रा यह कि एनसीईआरटी में पाठ्यक्रम अध्ययन एवं विकास विभाग की प्रमुख प्रोफेसर रंजना अरोड़ा ने कहा, "एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों से प्रस्तावना को हटाने के आरोपों का कोई ठोस आधार नहीं है।"
जबकि वास्तविकता यह है कक्षा 3 में हिंदी, अंग्रेजी, गणित और 'हमारे आसपास की दुनिया' की नई पाठ्य पुस्तकें ( जो पर्यावरण अध्ययन या ईवीएस की जगह लेता है।) में प्रस्तावना नहीं है। पुरानी ईवीएस पुस्तक, लुकिंग अराउंड और हिंदी पुस्तक, रिमझिम 3 में प्रस्तावना थी।
कक्षा 6 की पुरानी पाठ्यपुस्तकों में प्रस्तावना अंग्रेजी पुस्तक हनी सकल, विज्ञान पुस्तक, हिंदी पाठ्यपुस्तक दुर्वा और तीनों सामाजिक विज्ञान पुस्तकों - हमारे अतीत-I, सामाजिक और राजनीतिक जीवन-I, और पृथ्वी हमारा निवास में छपी थी। नई अंग्रेजी पाठ्यपुस्तक पूर्वी में राष्ट्रगान है, जबकि संस्कृत पाठ्य पुस्तक दीपकम में राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत दोनों हैं, लेकिन प्रस्तावना नहीं है। पिछली संस्कृत पुस्तक रुचिरा में भी प्रस्तावना नहीं है।
उधर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा है कि संविधान की प्रस्तावना को NCERT की किताबों से हटाने के आरोप पूरी तरह से निराधार बता रहे हैं।दलील ये दी जा रही है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत, NCERT ने पाठ्य पुस्तकों में संविधान के अलग-अलग पहलुओं को शामिल किया है. इनमें प्रस्तावना, मौलिक अधिकार, मौलिक कर्तव्य, और राष्ट्रगान भी शामिल हैं. इन सभी पहलुओं को उम्र के हिसाब से अलग-अलग चरणों की किताबों में शामिल किया गया है. उन्होंने कहा- "यह समझ कि केवल प्रस्तावना ही संविधान और संवैधानिक मूल्यों को प्रतिबिंबित करती है, त्रुटिपूर्ण और संकीर्ण सोच है। बच्चों को प्रस्तावना के साथ-साथ मौलिक कर्तव्यों, मौलिक अधिकारों और राष्ट्रगान से संवैधानिक मूल्य क्यों नहीं प्राप्त होने चाहिए? हम समग्र विकास के लिए इन सभी को समान महत्व देते हैं।"
एनसीईआरटी के तर्क से टीचर सहमत नहीं हैं। उन्होंने याद दिलाया कि एनसीईआरटी और अन्य स्कूल बोर्डों ने तो महात्मा गांधी, भगत सिंह, अंबेडकर से जुड़े कई चैप्टर पिछले साल ही हटा दिए थे। मुगलों से जुड़े इतिहास के कई चैप्टर तमाम किताबों से हटा दिए गए हैं। अकबर को महान बताने वाले चैप्टर हटाए जा चुके हैं। यह सब एक साजिश के तहत हो रहा है। देश की आजादी से जुड़ा दक्षिणपंथियों का कोई इतिहास नहीं है, इसलिए यह सारी छटपटाहट दिखती है। जिनकी भूमिका आजादी की लड़ाई में रही है, वे उनका नामोनिशान मिटाने पर तुल गए हैं।
कांग्रेस पार्टी की प्रवक्ता डॉ. शमा मोहम्मद ने एक्स पर लिखा कि एनसीईआरटी की ओर से इस साल जारी कक्षा तीन और छह की कई किताबों से संविधान की प्रस्तावना हटा दी गई है। भारतीय जनता पार्टी ने संविधान को नष्ट करने के लिए बड़े पैमाने पर हमला शुरू कर दिया है. सभी अभिभावकों को साथ आकर इस इतिहास मिटाने के इस जबर्दस्त प्रयास पर आपत्ति जाहिर करनी चाहिए।
सच्चाई तो यही है कि चरणबद्ध तरीके से संविधान की बेशकीमती बातें बच्चों तक ना पहुंचे वे जागरुक ना होने पाए इसलिए यह धीमी गति से दिया जाने वाला जहर है, इसका सशक्त विरोध होना ही चाहिए।
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