लेखक - सुसंस्कृति परिहार |
गांधी जयंती पर विशेष आलेख : उन्हें बापू आज भी चैन से सोने नहीं देते ? लेखक - सुसंस्कृति परिहार
कहा जाता है कि मानव मन हमेशा अपने गुनाहों से भयभीत रहता है जबकि इसके विपरीत निडरता से वही बोल सकता है। जिसने गुनाह नहीं किया होता है। पिछले दस सालों से सत्ता पर काबिज भारत सरकार की पुनर्वापसी के बाद भी गांधी जी के वैचारिक सिद्धांतों से वे पीछा नहीं छुड़ा सके हैं बल्कि अब तो वे अपने नेता को गांधी नेहरु के समकक्ष मानने लगे हैं।
- मजबूरी है या ज़रूरी हैं गांधीजी
इस सबके बावजूद भारत सरकार जिस तरह गोडसे वादी विचार धारा को लेकर अंदरुनी तौर पर काम कर रही है वह किसी से छुपा नहीं है। जबकि विदेशों में और देश में विदेशी नेताओं के साथ जिस तरह बापू के स्मारकों पर सरकार प्रमुख शामिल होने मज़बूर हैं, वह आंख खोलने वाला है। आखिर वह कौन सी मजबूरी है और क्यों ज़रूरी हैं गांधीजी। इस विषय पर आज जानने की सख्त ज़रूरत है।
महात्मा गांधी एक ऐसा महान व्यक्तित्व है जिसे राष्ट्रवासी कभी भी भुला नहीं सकते। विदेशों में भी गांधी इकलौते ऐसी शख्सियत हैं जिन्हें ना केवल पढ़ाया जाता है बल्कि उनके सत्य और अहिंसा के प्रबल हथियारों को राजनीति में मान्यता दी जाती है।
- वे गांधी को मारकर अब भी डरते हैं ?
अफ़सोसनाक सच यह है कि गांधी के अपने देश में ही दो विचारधाराएं हैं। एक तरफ गांधीवादी विचारधारा के लोग बहुतायत से हैं तो दूसरी ओर चंद लोग बापू के हत्यारे गोडसे वादी भी हैं। बड़ा नाज़ुक सा सवाल यह है कि वे गांधी को मारकर अब भी क्यों डरते हैं ? जबकि केन्द्र और बहुतेरे राज्यों में उन्हीं की सरकार है। केन्द्र के तमाम शक्ति केन्द्र उनके पास हैं। इस सवाल का उत्तर एक साधारण व्यक्ति देते हुए कहेगा कि क्योंकि उन्होंने गांधी की हत्या की है और गांधी की आत्मा आज भी हत्यारों को चैन से रहने नहीं देती जब तक उसका वे तर्पण नहीं करेंगे। अमूनन ग्रामीण क्षेत्रों में कहा जाने वाला एक सत्य यह है। वे मानते हैं कि हत्यारे हमेशा भयभीत रहते हैं। कहा जाता है जो एक सच्चे संत को इस तरह मारते हैं, उन्हें कभी चैन नहीं मिलता। यह सत्य भी सबके सामने है कि गांधी के जाने के बाद भी देश-विदेश में गांधी विचारधारा का काफ़ी विस्तार हुआ है कारण था क्योंकि गांधी विचारधारा मौजूदा अन्य विचारधाराओं से श्रेष्ठ साबित हुई है।
गांधी जी के जन्म दिवस पर बार बार बापू और उनके हत्यारे की याद आना स्वाभाविक है। कहने को तो अब गोडसे भी नहीं है किन्तु जिस विचारधारा से प्रेरित होकर गोडसे अपने 12वें प्रयास में सफल होता है। उस विचारधारा के लोग आज देश की सत्ता पर काबिज हैं। जो लोग यह कहते हैं कि यह हत्या भारत पाक विभाजन में पाकिस्तान को दी जाने वाली राशि से सम्बंधित है, वह झूठ है क्योंकि गांधी जी को मारने की कोशिश तो बहुत पहले से शुरू थी।
वे गांधी को सिर्फ इसलिए मारना चाहते थे क्योंकि वे सर्वधर्म समभाव को मानते थे। वे जात-पात के भेद को समाप्त करना चाहते थे। वे महिलाओं को बराबरी का दर्जा देना चाहते थे। उनकी इच्छा थी कि भारत-पाकिस्तान बंटवारा ना हो किंतु मुस्लिम लीग और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लोग जो अंग्रेजों के चाटुकार थे और सन् 1925 में सिर्फ इसी मकसद से इकट्ठे हुए थे कि भारत हिंदू राष्ट्र और पाकिस्तान मुस्लिम राष्ट्र बनाया जाए। वो तो गांधी , नेहरू, पटेल, मौलाना आजाद जैसे असंख्य लोग थे, जिन्होंने भारत की अपनी सांस्कृतिक पहचान जिसे गंगा जमुनी तहज़ीब कहा जाता है, को बचाने यह फैसला लिया कि जो लोग पाकिस्तान जाना चाहे जा सकते हैं, वे लोग आ सकते हैं जो वहां से भारत आना चाहते हैं। यह भी जो भारत में रहना चाहते हैं वे बेहिचक यहां रह सकते हैं। गांधीजी तो ये भी नहीं चाहते थे कोई भी मुसलमान भारत छोड़ कर जाए। संकीर्ण विचारधारा से लैस मुस्लिम लीग और संघ को इस बात से गहरा आघात लगा। वे तो ये मान बैठे थे कि एक एक मुसलमान को देश से पाकिस्तान खदेड़ दिया जायेगा।
- गांधी और कांग्रेस से नफरत का सबब
मूलतः यह मुद्दा ही गांधी और कांग्रेस से नफरत का कारण आज तक बना हुआ है। 1950 में जब भारत का संविधान लागू हुआ तब से इन्हें तिरंगा ही नहीं, राष्ट्रगान भी खटकता रहा है। याद रखिए नागपुर संघ प्रमुख कार्यालय में पिछले कुछ सालों से ही भगवा के साथ, राष्ट्रवासियों की आपत्ति पर वहां तिरंगा फहराया गया है। राष्ट्रगान के विरोध में बराबर पहलकदमी हुई खैरियत है वह बचा हुआ है। इस संघवादी सरकार की नज़र साबरमती आश्रम पर भी है, एक दिन राजघाट पर भी होगी। बापू के बारे में तथाकथित हिंदू धर्म पर संसद में अपमानजनक बातें की गई। किसी ने कभी खेद भी नहीं जताया। पिछले सालों में उनके प्रिय भजन 'अलाईडविद मी' को भी हटा दिया गया।
- गांधीजी दुनिया के तमाम शांति प्रिय देशों में आज भी प्रासंगिक
गुजरात में गांधीजी जैसे महामना की उपेक्षा कर सरदार पटेल की विशाल प्रतिमा का निर्माण कर जो चेहरा सामने लाया गया वह इंगित करता है कि वे गांधी के सिर्फ हत्यारे नहीं है बल्कि उनकी विचारधारा से बुरी तरह आहत भी है। पिछले कुछ सालों से कुछ सरकारी कार्यालयों से भी बापू की तस्वीर भी हटाई गई है। सरकार किसी भी दल की रही हो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की तस्वीर लगाने का नियम रहा है। क्या गॉधीजी अब अप्रासंगिक हो गये हैं। यह सोचना पूरी तरह ग़लत है कि गांधी देश में ही नहीं बल्कि दुनिया के तमाम शांति प्रिय देशों में आज भी प्रासंगिक हैं।
सबसे ज्यादा पीड़ा गोडसे वादी विचारधारा को इस बात से है कि गांधी की हत्या के बाद जो हिंदू राष्ट्र का सपना देखा था। वह गांधी के अनुयायियों ने पूरा नहीं होने दिया। बावरी ढहाने और गुजरात नरसंहार से मिली कथित ऊर्जा और झूठ के पाखंड से इन्हें बहुसंख्यक समुदाय की मात्र तीस फीसदी वोट के दम पर केन्द्र सरकार में ये ज़रूर पहुंच गए और यहीं से गोडसे विचारधारा हावी होना शुरू हो गई। जेएनयू में जबरिया जिस तरह टुकड़े टुकड़े गैंग की चपेट में पढ़ रहे छात्रों को देशद्रोह के आरोप में फंसाया और मुस्लिमों को डराने सीएए कानून लाया गया। वह इनके इरादे स्पष्ट करता है। किंतु गांधी वादी तरीके से मुस्लिम महिलाओं का इतना ज़बरदस्त प्रतिरोध, जैसा आज तक कहीं नहीं हुआ, जिसमें बच्चे और वृद्ध महिलाओं की बड़ी तादाद रही। इस जन आंदोलन को दीगर समाज के सामाजिक कार्यकर्ताओं का देश भर से समर्थन तो मिला ही है। देश के शहर कस्बों में भी शाहीन बाग स्थापित हुए। विदेशों से भी प्रतिरोध के स्वर बराबर आए। कुल मिलाकर जे एन यू और सी ए आंदोलन ने गांधी वादी आंदोलन का रवैया अख्तियार कर सरकार पर भरपूर दबाव बनाया।
उसके बाद एक साल से अधिक चले संयुक्त किसान मोर्चे के गांधीवादी आंदोलन ने तो ना केवल सरकार झुकाया बल्कि अपनी तमाम मांगों के लिए राजी भी कर लिया। यह गांधीवादी किसान आंदोलन विदेशी पाठ्यक्रम में शामिल हुआ। गांधी जी की यह महत्वपूर्ण देन देश के लिए भी वरदान साबित हो रही है। अफसोसनाक ये रहा कि अंग्रेजों को हटाने केलिए किए आंदोलन की जरूरत देश को पड़ गई क्योंकि अंग्रेजों के मददगार यूं कहें कथित देश के गद्दारों के इतिहास वाले संघ की टुकड़े टुकड़े गैंग का एक हिस्सा भाजपा सत्ता में है। जब देशवासियों पर ज़ुल्म बढ़ेगें गांधी के अहिंसक आंदोलन सामने आएंगे और देशवासियों की रक्षा करेंगे। पिछले वर्षों में चली जोड़ो जोड़ो भारत यात्रा में नफ़रत के विरुद्ध जो मोहब्बत का संदेश दिया गया वह काबिले तारीफ़ है और देश की एकता अखंडता और गांधी के प्रति सच्ची निष्ठा का प्रतीक है।
गांधी जी ने अपनी संपूर्ण अहिंसक कार्य पद्धति को ‘सत्याग्रह’ का नाम दिया। उनके लिये सत्याग्रह का अर्थ सभी प्रकार के अन्याय, अत्याचार और शोषण के खिलाफ शुद्ध आत्मबल का प्रयोग करने से था। गांधी जी का कहना था कि सत्याग्रह को कोई भी अपना सकता है, उनके विचारों में सत्याग्रह उस बरगद के वृक्ष के समान था, जिसकी असंख्य शाखाएँ होती हैं। चंपारण और बारदोली सत्याग्रह गांधी जी द्वारा केवल लोगों के लिये भौतिक लाभ प्राप्त करने हेतु नहीं किये गए थे, बल्कि तत्कालीन ब्रिटिश शासन के अन्यायपूर्ण रवैये का विरोध करने हेतु किये गए थे। सविनय अवज्ञा आंदोलन, दांडी सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन ऐसे प्रमुख उदाहरण थे जिनमें गांधी जी ने आत्मबल को सत्याग्रह के हथियार के रूप में प्रयोग किया।
महात्मा गांधी ने कहा है- ’’आग आग से नहीं, पानी से शान्त होती है।’’ अहिंसा कुछ देर के लिए तो असफल हो सकती है, लेकिन यह स्थाई रूप से असफल नहीं हो सकती। बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान अहिंसा के द्वारा किया जा सकता है। इसलिए यह परमाणु बम से अधिक शक्तिशाली होती है। इसमें सार्वभौमिकता का गुण होता है। यह किसी जाति विशेष की धरोहर नहीं होती। गांधी जी ने लिखा है-’’यह आत्मा का गुण है, सबके लिए है, सब जगहों के लिए है, सब समय के लिए है।’’
इन गांधीवादी आंदोलनों से भी केंद्र सरकार विचलित है। गांधी की इस ताकत का एहसास सरकार को हो चुका है। संघ के सदस्य नितिन गडकरी गांधी का योगदान गिना चुके हैं और संघ प्रमुख मुस्लिम मौलानाओं के घर दस्तक देना शुरू कर दिए हैं। चर्च और मस्जिद जाने की बात करने लगे हैं।
ऐसा क्या जादू है गांधी में उसे समझाने गांधी और स्वाधीनता के तमाम नेताओं के संघर्ष और तौर तरीकों से बच्चों को परिचित कराना जरूरी है ताकि कठिन दौर में भावी पीढ़ी भी हिंसा से दूर रहकर गांधीवादी रास्ते का अनुशीलन कर सकें। गांधी तब तक दुनिया के लोगों को राह दिखाते रहेंगे जब तक असमानता, अंध धार्मिकता, जातिवाद आदि व्याधियां समाप्त नहीं हो जातीं। वे अपनी विचारधारा के साथ ज़िंदा है और देश को आज भी उनका संबल प्राप्त है। यही वे बातें जिनसे वर्तमान सरकार को डर लगता है।
- सुभाष चन्द्र बोस ने उन्हें कहा. राष्ट्रपिता
विदित हो 4 जून 1944को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने सिंगापुर रेडियो से एक संदेश प्रसारित करते हुए महात्मा गांधी को 'देश का पिता' (राष्ट्रपिता) कहकर संबोधित किया। सरोजनी नायडू ने 1947 में पहली बार राष्ट्रपिता बोला तब से यह शब्द उनके लिए प्रयुक्त होने लगा। गुजरात में पिता को बापू कहते हैं इसलिए देश में बापू ही चलन में है। वर्तमान सरकार को तो आज उनके राष्ट्र पिता कहने पर भी आपत्ति है। पिता की हत्या का भूत उनके सिर पर मंडराता रहता है।
अब तो, महात्मा गांधी की जान लेने वाले, उनके जीवन दर्शन और आदर्शों की रोज अर्थी निकालने वाले उनकी महानता का इस्तेमाल अपने नेता की चापलूसी करने के लिए कर रहे हैं। उनके लिए गांधी जी का यही उपयोग बचा है। उपराष्ट्रपति जी बता रहे हैं कि 17 सितम्बर को एक 'महामानव' का जन्म हुआ और दूसरे महामानव का जन्म 2 अक्टूबर को हुआ था। वे यह कहना चाह रहे हैं 15 दिन के अंतर पर पैदा होने के नाते मोदी साहब भी महान हो गए हैं! यह भी उनके अंदर छुपी गांधीजी की महानता को ही प्रदर्शित करती है। जिसे वह झूठे और हत्यारे पर चस्पा करना चाह रहे हैं।
कुल मिलाकर बापू आज भी उन्हें सताते हैं और हमेशा सताते रहेंगे।
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