डायबिटिक रेटिनोपैथी की जांच पर नए दिशानिर्देश जारी


नई दिल्ली। विश्व दृष्टि दिवस के अवसर पर गुरुवार को विट्रीओ रेटिनल सोसाइटी ऑफ़ इंडिया (वीआरएसआई) और रिसर्च सोसाइटी फ़ॉर द स्टडी ऑफ़ डायबिटीज़ इन इंडिया (आरएसएसडीआई) ने संयुक्त रूप से डायबिटिक रेटिनोपैथी जांच के लिए अपने तरह के पहले दिशानिर्देश जारी किए हैं। इन दिशानिर्देशों से हर चिकित्सक और मधुमेह विशेषज्ञ को अपने मरीजों को डायबिटिक रेटिनोपैथी के खतरों से अवगत कराने में सहायता मिलेगी, जिससे समय पर पहचान और उपचार सुनिश्चित हो सकेगा।

इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण की पूर्व कार्यकारी निदेशक डॉ. सुधा चंद्रशेखर ने कहा, "भारत में लाखों मधुमेह पीड़ितों की दृष्टि की रक्षा हेतु डायबिटिक रेटिनोपैथी जांच को आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत सम्मिलित किया गया है। राष्ट्रीय स्तर पर इसके प्रारंभिक पहचान को प्राथमिकता दी जा रही है, ताकि दृष्टि बचाने और स्वास्थ्य परिणामों में सुधार का लक्ष्य पूरा किया जा सके।"

हमारा उद्देश्य बेहतर मधुमेह प्रबंधन को प्रोत्साहन

वीआरएसआई के अध्यक्ष डॉ. आर किम ने इस पहल पर प्रकाश डालते हुए कहा, "हम इन दिशानिर्देशों को जारी करने के अवसर पर अत्यंत प्रसन्न हैं, क्योंकि इससे मधुमेह से जुड़ी रेटिनोपैथी जांच के लिए एक नया मापदंड स्थापित किया गया है। चिकित्सकों, मधुमेह विशेषज्ञों और नेत्र चिकित्सकों के बीच सामंजस्य बढ़ाकर, हमारा उद्देश्य बेहतर मधुमेह प्रबंधन को प्रोत्साहन देना है और रोकथाम योग्य दृष्टिहीनता के मामलों को न्यूनतम करना है।"
डायबिटिक रेटिनोपैथी की प्रारंभिक जांच में मधुमेह विशेषज्ञों की महत्वपूर्ण भूमिका
भारत को दुनिया की 'मधुमेह राजधानी' कहा जाने लगा है, क्योंकि यहां 10.1 करोड़ से अधिक लोग मधुमेह से ग्रसित हैं। इस बढ़ती संख्या के साथ डायबिटीज़ से संबंधित दृष्टिहीनता के मामलों में भी भारी वृद्धि हो रही है, जो बेहद चिंताजनक है। हालांकि, उचित समय पर पहचान और इलाज से इन मामलों को नियंत्रित किया जा सकता है। डायबिटिक रेटिनोपैथी की प्रारंभिक जांच में मधुमेह विशेषज्ञों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जो मरीजों को समय पर नेत्र विशेषज्ञ के पास भेजकर दृष्टिहीनता को टाल सकते हैं।

समय पर जांच और इलाज को अनिवार्य बनाने की आवश्यकता

वीआरएसआई की महासचिव, डॉ. मनीषा अग्रवाल ने बताया, "डायबिटिक रेटिनोपैथी का फैलाव तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन जागरूकता की कमी और प्रारंभिक चरण में लक्षणों के अभाव के कारण बहुत कम मधुमेह रोगी अपनी आंखों की जांच करवाते हैं। इससे दृष्टिहीनता का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए, जागरूकता फैलाने और समय पर जांच और इलाज को अनिवार्य बनाने की आवश्यकता है।"

डॉ. मनीषा ने यह भी कहा कि देश में मधुमेह रोगियों की संख्या शहरीकरण, जीवनशैली में बदलाव, मोटापा और तनाव के कारण तेजी से बढ़ रही है। इसके साथ ही मधुमेह से संबंधित दृष्टिहीनता के मामले भी अधिक हो रहे हैं। टाइप-2 मधुमेह विशेष रूप से कामकाजी आयु वर्ग में पाया जाता है, जो उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। यदि समय पर निदान नहीं किया गया, तो यह दृष्टिहीनता का मुख्य कारण बन सकता है, जिससे आर्थिक बोझ भी बढ़ेगा। भारत में लगभग 30 लाख लोग दृष्टिहीनता के खतरे से जूझ रहे हैं, जिनमें से 12.5 प्रतिशत मधुमेह रेटिनोपैथी से प्रभावित हैं। इस गंभीर समस्या को शुरुआत में पहचानना मुश्किल है, इसीलिए इसे 'साइलेंट चोर' कहा जाता है, जो दृष्टि को चुपचाप नुकसान पहुंचाता है।

आरएसएसडीआई के महासचिव डॉ. संजय अग्रवाल ने कहा, "भारत में मधुमेह पीड़ितों की बढ़ती संख्या यह दर्शाती है कि सिर्फ ग्लूकोज के स्तर की निगरानी ही नहीं, बल्कि मधुमेह से जुड़ी जटिलताओं की नियमित जांच भी बेहद महत्वपूर्ण है। मधुमेह से संबंधित रेटिनोपैथी एक गंभीर जटिलता है, जो अगर समय पर इलाज न किया जाए, तो अंधेपन का कारण बन सकती है। ये नए दिशानिर्देश सामान्य चिकित्सकों और मधुमेह विशेषज्ञों के बीच डायबिटिक रेटिनोपैथी की समय पर जांच के महत्व को समझाने में अहम भूमिका निभाएंगे।"

Post a Comment

और नया पुराने