कोर्ट का बयान – दहेज के आरोप निराधार, विवाद यौन असहमति से प्रेरित
प्रयागराज। दहेज उत्पीड़न के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए कहा कि यह मामले व्यक्तिगत यौन मतभेदों से उपजा विवाद है, और इसे दहेज की मांग से जोड़ना तर्कहीन है। न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की एकल पीठ ने प्रांजल शर्मा और उनके परिवार पर लगे दहेज उत्पीड़न के आरोपों को खारिज कर दिया। कोर्ट ने पाया कि आरोपों में पेश किए गए सबूत और गवाहों के बयान दहेज के लिए उत्पीड़न की पुष्टि नहीं करते।
फैसले में न्यायमूर्ति गुप्ता ने जोर देकर कहा कि यह विवाद युगल के निजी यौन जीवन से संबंधित है, न कि दहेज की मांग से। उन्होंने टिप्पणी की, "यदि सभ्य समाज में पति अपनी यौन इच्छाओं को अपनी पत्नी के समक्ष प्रकट नहीं करेगा, तो वह किससे करेगा?" यह बयान दंपति के बीच यौन असहमतियों से उपजी समस्या के संदर्भ में दिया गया, जिसे दहेज से गलत रूप से जोड़ा गया था।
कोर्ट ने इस पर चिंता जताई कि निजी यौन मतभेदों को दहेज उत्पीड़न का मामला बनाना न केवल कानून का दुरुपयोग है, बल्कि इससे वास्तविक दहेज उत्पीड़न के मामलों की गंभीरता भी कम हो जाती है।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि दोनों पक्षों के बीच विवाद का मुख्य कारण यौन असहमति है, जिसके कारण पत्नी ने प्राथमिकी दर्ज कराई। साथ ही दहेज की मांग से संबंधित आरोप पूरी तरह से बेबुनियाद और काल्पनिक हैं।
अदालत ने कड़ा सवाल किया, “एक नैतिक समाज में यदि पति-पत्नी अपनी यौन इच्छाओं का प्रकटीकरण एक-दूसरे से नहीं करेंगे, तो वे कहां जाएंगे?" प्राथमिकी में प्रांजल शुक्ला पर दहेज की मांग और पत्नी के साथ गाली-गलौज करने के साथ ही उसे अश्लील फिल्में दिखाने और अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का आरोप लगाया गया था। कोर्ट ने पाया कि इन आरोपों का समर्थन करने के लिए कोई ठोस साक्ष्य नहीं है।
लगाए गए आरोप
मामले की पृष्ठभूमि में, मीशा शुक्ला का विवाह प्रांजल शुक्ला के साथ 7 दिसंबर 2015 को हिंदू रीति-रिवाज से हुआ था। मीशा ने सास-ससुर, मधु शर्मा और पुण्य शील शर्मा, पर दहेज की मांग का आरोप लगाया। हालांकि, प्राथमिकी में यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया कि विवाह से पहले दहेज की कोई मांग नहीं थी। प्राथमिकी में यह भी कहा गया कि प्रांजल शराब पीने का आदी था और अश्लील फिल्में देखता था, साथ ही उसने अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का भी प्रयास किया, जिसका मीशा ने विरोध किया। इसके बाद प्रांजल सिंगापुर चला गया, और अपनी पत्नी को छोड़ दिया।
याचिकाकर्ता का पक्ष
याचिकाकर्ता के वरिष्ठ अधिवक्ता विनय शरण ने तर्क दिया कि प्राथमिकी में लगाए गए आरोप मुख्य रूप से शारीरिक संबंधों से संबंधित हैं, और पत्नी द्वारा मारपीट का आरोप केवल यौन इच्छाओं की पूर्ति न होने पर लगाया गया है, न कि दहेज की मांग से संबंधित।
अदालत का निर्णय
अदालत ने कहा, "प्राथमिकी और पीड़िता के बयान से स्पष्ट होता है कि यदि कोई मारपीट हुई है, तो वह दहेज की मांग के लिए नहीं, बल्कि यौन इच्छाओं की पूर्ति न होने पर हुई है।" अदालत ने 3 अक्टूबर को अपने आदेश में प्रांजल शुक्ला के खिलाफ मामला खारिज कर दिया और कहा, "हमारे अनुसार यह प्राथमिकी केवल एक काल्पनिक कथा है, जो दहेज की मांग से संबंधित नहीं है।"
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