चुनावों में ‘मुफ्त की रेवड़ी’ के खिलाफ याचिका, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र व निर्वाचन आयोग से मांगा जवाब

मुफ्त सेवाओं और वस्तुओं का वादा करने पर रोक लगाने की मांग की गई



नई दिल्ली| चुनावी दौर में राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त सौगातों का वादा करने के बढ़ते चलन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने एक नई याचिका पर केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा है। यह याचिका बेंगलुरु निवासी शशांक जे. श्रीधारा द्वारा दायर की गई है, जिसमें चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त सेवाओं और वस्तुओं का वादा करने पर रोक लगाने की मांग की गई है।

भारत के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किया है। पीठ ने दोनों पक्षों से इस पर प्रतिक्रिया मांगी है, जिससे चुनावी प्रक्रिया में मुफ्त सौगातों का दुरुपयोग और उनके प्रभावों पर विचार किया जा सके।


शशांक जे. श्रीधारा की याचिका में दावा किया गया है कि चुनावों में इस तरह के मुफ्त वादे लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं और उन्हें नियंत्रित करने की आवश्यकता है। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि इस तरह के वादों से मतदाता भ्रमित होते हैं और उनका वास्तविक राजनीतिक निर्णय लेने का अधिकार प्रभावित होता है।

वकील श्रीनिवास द्वारा दायर याचिका में निर्वाचन आयोग को राजनीतिक दलों को चुनाव से पहले मुफ्त सौगातें देने के वादे करने से रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने का निर्देश दिए जाने का भी अनुरोध किया गया है।

याचिका में कहा गया है, ‘‘मुफ्त की रेवड़ियां बांटने के बेलगाम वादे सरकारी राजकोष पर बड़ा और बेहिसाबी वित्तीय बोझ डालते हैं। इसके अलावा, यह सुनिश्चित करने के लिए कोई तंत्र नहीं है कि चुनाव पूर्व किए वादे पूरे किए जाएं।” सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को इसी मुद्दे पर अन्य याचिकाओं से संबद्ध कर दिया।

इससे पहले, न्यायालय चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त की रेवड़ियां बांटने का वादा करने के चलन के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करने पर सहमत हो गया था। वकील एवं जनहित याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने मामले पर तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया था।

उपाध्याय की याचिका में कहा गया है कि मतदाताओं से अनुचित राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए लोकलुभावन उपायों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए क्योंकि वे संविधान का उल्लंघन करते हैं और निर्वाचन आयोग को उचित निवारक उपाय करने चाहिए।

याचिका में अदालत से यह घोषित करने का भी आग्रह किया गया है कि चुनाव से पहले सार्वजनिक निधि से अतार्किक मुफ्त की रेवड़ियां बांटने का वादा मतदाताओं को अनुचित रूप से प्रभावित करता है, समान अवसरों में बाधा डालता है और चुनाव प्रक्रिया की शुचिता को दूषित करता है।

याचिका में कहा गया है, ‘‘याचिकाकर्ता का कहना है कि चुनावों के मद्देनजर मुफ्त की रेवड़ियां बांटने का वादा कर मतदाताओं को प्रभावित करने की राजनीतिक दलों की हाल की प्रवृत्ति न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए बल्कि संविधान की भावना के लिए सबसे बड़ा खतरा है।”

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