रेलवे कर्मियों के लिए बोनस, खेती-बाड़ी की दो योजनाओं और तेल-तिलहन के लिए राष्ट्रीय मिशन को मंजूरी



नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 11.72 लाख से अधिक रेलवे कर्मचारियों को 2028.57 करोड़ रुपये के 78 दिनों के कार्यकुशलता से जुड़े बोनस के भुगतान को मंजूरी दे दी। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने यह जानकारी दी। एक आधिकारिक बयान के मुताबिक, यह राशि रेलवे कर्मचारियों की विभिन्न श्रेणियों जैसे ट्रैक मेंटेनर, लोको पायलट, ट्रेन मैनेजर (गार्ड), स्टेशन मास्टर, पर्यवेक्षक, तकनीशियन, तकनीशियन हेल्पर, ‘पॉइंट्समैन’, मंत्रालयिक कर्मचारी और अन्य कर्मचारियों को दी जाएगी। कार्यकुशलता से जुड़े बोनस का भुगतान रेलवे के कार्यक्षमता में सुधार की दिशा में काम करने के लिए रेलवे कर्मचारियों को प्रेरित करने के लिए प्रोत्साहन के रूप में दिया जाएगा।
  • खाद्य तेल-तिलहन पर एक राष्ट्रीय मिशन को मंजूरी 
इसके अलावा सरकार ने घरेलू तेल-तिलहन उत्पादन को बढ़ाने और भारत को खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए 10,103 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ खाद्य तेल-तिलहन पर एक राष्ट्रीय मिशन को मंजूरी दी है। भारत अपनी खाद्य तेलों की सालाना जरूरत का 50 प्रतिशत से अधिक आयात करता है। एक सरकारी बयान में कहा गया है, ‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में राष्ट्रीय खाद्य तेल-तिलहन मिशन (एनएमईओ-तिलहन) को मंजूरी दी गई, जो घरेलू तिलहन उत्पादन को बढ़ाने और खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के उद्देश्य से एक ऐतिहासिक पहल है।’ बयान में कहा गया है कि इस मिशन को वर्ष 2024-25 से वर्ष 2030-31 तक सात साल की अवधि में लागू किया जाएगा, जिसका वित्तीय परिव्यय 10,103 करोड़ रुपये होगा। भारत- इंडोनेशिया और मलेशिया से पामतेल का आयात करता है जबकि वह सोयाबीन तेल का आयात ब्राजील और अर्जेंटीना से करता है। देश, सूरजमुखी मुख्य रूप से रूस और यूक्रेन से आयात करता है। बयान के अनुसार, नव स्वीकृत एनएमईओ-तिलहन प्रमुख प्राथमिक तिलहन फसलों जैसे रैपसीड-सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी और तिल के उत्पादन को बढ़ाने के साथ-साथ बिनौला, चावल भूसी और पेड़ों से निकलने वाले तेलों जैसे द्वितीयक स्रोतों से संग्रह बढ़ाने और पेराई दक्षता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करेगा। एनएमईओ-ओपी (ऑयल पाम) के साथ मिलकर, मिशन का लक्ष्य वर्ष 2030-31 तक घरेलू खाद्य तेल उत्पादन को दो करोड़ 54.5 लाख टन तक बढ़ाना है, जो हमारी अनुमानित घरेलू आवश्यकता की लगभग 72 प्रतिशत जरूरत को पूरा करेगा। इसे उच्च उपज देने वाली उच्च तेल सामग्री वाली बीज किस्मों को अपनाने, चावल की परती भूमि में खेती का विस्तार करने और अंतर-फसल को बढ़ावा देकर प्राप्त किया जाएगा। सरकार ने कहा, ‘‘मिशन, जीनोम एडिटिंग जैसी अत्याधुनिक वैश्विक तकनीकों का उपयोग करके उच्च गुणवत्ता वाले बीजों के चल रहे विकास का लाभ उठाएगा।” बयान के अनुसार, ‘बीज उत्पादन के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में 65 नए बीज केंद्र और 50 बीज भंडारण इकाइयाँ स्थापित की जाएंगी।’ सरकार ने बताया कि देश आयात पर बहुत अधिक निर्भर है। आयात अभी खाद्य तेलों की घरेलू मांग का 57 प्रतिशत है।
  • दो बड़ी कृषि योजनाओं को मंजूरी
उधर, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने टिकाऊ कृषि को प्रोत्साहन और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक लाख करोड़ रुपये के परिव्यय वाली दो बड़ी कृषि योजनाओं को मंजूरी दी। इन योजनाओं के नाम ‘पीएम राष्ट्रीय कृषि विकास योजना’ (पीएम-आरकेवीवाई) और ‘कृषोन्नति योजना’ (केवाई) हैं। इनमें से पीएम-आरकेवीवाई योजना टिकाऊ खेती को बढ़ावा देगी जबकि कृषोन्नति योजना खाद्य सुरक्षा एवं कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को समर्पित होगी। एक आधिकारिक बयान के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में कृषि मंत्रालय के तहत संचालित सभी केंद्र-प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) को दो बड़ी योजनाओं के रूप में युक्तिसंगत बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। सरकार ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर पोस्ट में कहा कि इन दोनों कृषि योजनाओं पर कुल मिलाकर 1,01,321.61 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इसमें से आरकेवीवाई के लिए 57,074.72 करोड़ रुपये और कृषोन्नति योजना के लिए 44,246.89 करोड़ रुपये चिह्नित किए गए हैं। इन दोनों योजनाओं में 18 मौजूदा कृषि योजनाओं को शामिल किया गया है। केंद्र सरकार इन योजनाओं को राज्य सरकारों के माध्यम से क्रियान्वित करती है। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ‘एक्स’ पर कहा, ‘यह निर्णय कृषि और किसानों के प्रति सरकार की प्राथमिकता को दर्शाता है।’ आधिकारिक बयान के मुताबिक, इस पहल से यह सुनिश्चित होता है कि सभी मौजूदा योजनाएं जारी रखी जा रही हैं। जहां भी किसानों के कल्याण के लिए किसी क्षेत्र को बढ़ावा देना जरूरी समझा गया वहां योजना को मिशन मोड में लिया गया है। कृषोन्नति योजना के एक घटक ‘पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट’ (एमओवीसीडीएनईआर) योजना में ‘विस्तृत परियोजना रिपोर्ट’ घटक को जोड़ा गया है। इससे पूर्वोत्तर राज्यों को महत्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान करने के लिए लचीलापन मिलेगा। सरकार ने कहा कि इन कृषि योजनाओं को युक्तिसंगत बनाने से राज्य सरकारें कृषि क्षेत्र के लिए अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप एक व्यापक रणनीतिक योजना तैयार करने में सक्षम होंगी। रणनीतिक दस्तावेज न केवल फसलों के उत्पादन और पैदावार पर ध्यान केंद्रित करता है बल्कि जलवायु-अनुकूल कृषि और कृषि उत्पादों के लिए मूल्य शृंखला दृष्टिकोण के विकास के उभरते मुद्दों का भी उल्लेख करता है। सरकार ने कहा कि दोहराव से बचने, सम्मिलन को सुनिश्चित करने और राज्यों को लचीलापन देने के लिए विभिन्न योजनाओं को युक्तिसंगत बनाया गया है। इससे कृषि की उभरती चुनौतियों- पोषण सुरक्षा, टिकाऊपन, जलवायु लचीलापन, मूल्य शृंखला विकास और निजी क्षेत्र की भागीदारी पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलेगी। पीएम-आरकेवीवाई में राज्य सरकारों को अपने राज्य की विशिष्ट जरूरतों के आधार पर एक से दूसरे घटक में धन आवंटित करने का लचीलापन दिया जाएगा। पीएम-आरकेवीवाई में मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, वर्षा-सिंचित क्षेत्र विकास, कृषि वानिकी, परंपरागत कृषि विकास योजना, कृषि मशीनीकरण, प्रति बूंद अधिक फसल, फसल विविधीकरण कार्यक्रम, आरकेवीवाई डीपीआर घटक और कृषि स्टार्टअप के लिए उत्प्रेरक निधि शामिल है।


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