नई दिल्ली | केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय के हालिया आंकड़ों के अनुसार, पिछले दस वर्षों में भारत में सड़क हादसों में लगभग 15 लाख लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। यह आंकड़ा न केवल भारत के लिए चिंताजनक है, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर सड़क यातायात की असुरक्षा की समस्या को भी उजागर करता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ों के अनुसार, हर वर्ष दुनिया भर में 13 लाख से अधिक लोग सड़क हादसों का शिकार होकर अपनी जान गंवा देते हैं। भारत में हर 10,000 किलोमीटर पर मरने वालों की संख्या 250 है, जो अमेरिका (57), चीन (119) और ऑस्ट्रेलिया (11) की तुलना में कई गुना अधिक है।
साल 2022 में देश में सड़क हादसों में 1,68,491 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 2023 में यह आंकड़ा बढ़कर करीब 1,73,000 तक पहुंच गया। यह दर्शाता है कि साल 2023 में औसतन हर दिन 474 लोगों की मौत हुई। यह स्थिति न केवल चौंकाने वाली है, बल्कि निराशाजनक भी है।
एक विशेषज्ञ, डॉ. साक्षी चोपड़ा, जो सड़क सुरक्षा पर शोध करती हैं, कहती हैं, "हमारे देश में बढ़ती वाहन संख्या और सड़कों की संकीर्णता के कारण हादसों की दर में वृद्धि हुई है। सुरक्षा उपायों की कमी और नियमों के पालन का अभाव भी इस समस्या को बढ़ा रहा है।"
2012 में भारत में लगभग 16 करोड़ गाड़ियां रजिस्टर्ड थीं, जो पिछले एक दशक में दोगुनी हो गई हैं। हालांकि, सड़कों की लंबाई में उतनी वृद्धि नहीं हुई है। 2012 में सड़कों की लंबाई 48.6 लाख किलोमीटर थी, जो 2019 में बढ़कर 63.3 लाख किलोमीटर हो गई। ऐसे में मंत्रालय का उद्देश्य है कि 2025 तक सड़क हादसों में 50 प्रतिशत की कमी लाई जाए, लेकिन यह तभी संभव होगा जब सड़क दुर्घटनाओं के मूल कारणों का निवारण किया जाए।
इस स्थिति ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर किया है कि क्या आधुनिक सड़कों का निर्माण केवल गति और सुविधा के लिए किया जाना चाहिए, या फिर इन सड़कों पर यात्रा की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने लोगों से अपील की है कि वे सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाएं और जिम्मेदारी के साथ सड़क पर चलें। यह सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है कि आने वाले वर्षों में हम इस भयावह आंकड़े को कम कर सकें।
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