लेखक - सुसंस्कृति परिहार |
एक हैं तो सेफ हैं, का ढोल पीटने वालों ने मणिपुर में जो हालात पैदा किए हैं वो बंटोगे तो कटोगे का जीता जागता उदाहरण हैं। मणिपुर एक वक्त शांति का टापू हुआ करता था। वहां कुकी, नागा आदिवासी और मैतेई मिल-जुलकर रहते थे। मैतेई इम्फाल घाटी में खुशहाल थे और कुकी नागा आदिवासी पर्वतीय पठारी भूमि पर मस्ती से रहते थे।
मणिपुर राज्य में जब शिक्षा और व्यवसाय का प्रबंधन गांवों तक पहुंचा तब आदिवासी लोगों का इम्फाल आना जाना बढ़ा शिक्षा और व्यवसाय में उन्होंने भागीदारी करनी शुरू की। उधर चुनावों में आदिवासियों की शिरकत भी बढ़ी। इतना सब होने के बावजूद कभी भी यहां इन दोनों में कभी तनाव नहीं रहा।
यहां लगे हुए AFSPA कानून की खिलाफत भी दोनों वर्ग मिलकर करते रहे। मणिपुर में AFSPA के खिलाफ इरोम चानू शर्मिला ने 16 साल तक अनशन किया था। नवंबर 2000 में आयरन लेडी के नाम से मशहूर इरोम शर्मिला के सामने एक बस स्टैंड के पास 16 जून को दस लोगों को सैन्य बलों ने गोली मार दी थी। इस घटना का विरोध करते हुए उस वक्त 29 वर्षीय इरोम ने भूख हड़ताल शुरू कर दी थी, जो 16 साल तक चली। इस कानून के तहत् सुरक्षा बल को जिस किसी पर गोली चलाने की छूट थी। नागालैंड, असम और मणिपुर में साल 2022 में AFSPA के दायरे को कम कर दिया गया।
इस एक्ट को सबसे पहले अंग्रेजों के जमाने में लागू किया गया था। उस वक्त ब्रिटिश सरकार ने भारत छोड़ो आंदोलन को कुचलने के लिए सैन्य बलों को विशेष अधिकार दिए थे। आजादी के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने भी इस कानून को जारी रखने का फैसला लिया। फिर वर्ष 1958 में एक अध्यादेश के जरिए AFSPA को लाया गया और तीन महीने बाद ही अध्यादेश को संसद की स्वीकृति मिल गई। इसके बाद 11 सितंबर 1958 को AFSPA एक कानून के रूप में लागू हो गया।
यह किसी भी राज्य या किसी भी क्षेत्र में तभी लागू किया जाता है, जब राज्य या केंद्र सरकार उस क्षेत्र को ‘अशांत क्षेत्र’ अर्थात डिस्टर्बड एरिया एक्ट (Disturbed Area Act) घोषित करती है। इस कानून के लागू होने के बाद ही वहाँ सेना या सशस्त्र बल भेजे जाते हैं। कानून के लगते ही सेना या सशस्त्र बल को किसी भी संदिग्ध व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई का अधिकार मिल जाता है।
बता दें कि 11 नवंबर को मणिपुर कुकी उग्रवादियों जिरीबाम जिले के बोरोबेकरा स्थित सीआरपीएफ कैंप पर हमला कर दिया था। इसके जवाब में सुरक्षाबलों ने 11 कुकी उग्रवादियों को मार गिराया था। इस हमले के बाद तीन महिलाएँ और तीन बच्चे लापता हो गए थे। माना जाता है कि कुकी उग्रवादियों ने इनका अपहरण किया था। अब इनकी लाश मिली है।
मणिपुर में लापता 6 लोगों की लाश मिलने के बाद राज्य में हिंसा का एक नया दौर शुरू हो गया और मुख्यमंत्री, तीन मंत्रियों एवं छह विधायकों के घरों पर हमला करके आग लगा दी गई। इसके बाद हिंसा प्रभावित छह पुलिस थानों में केंद्र सरकार ने ‘सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम (AFSPA)’ को फिर से लागू कर दिया है। शनिवार को इसकी समीक्षा करने और उसे हटाने का अनुरोध किया गया है।
केंद्र सरकार के संयुक्त सचिव (गृह) को एक पत्र में कहा गया है, “राज्य मंत्रिमंडल ने 15 नवंबर को हुई बैठक में इस (AFSPA को फिर से लागू करने) पर विचार-विमर्श किया है और केंद्र सरकार को इसकी समीक्षा करने और इसे वापस लेने की सिफारिश की है।” राज्य के छह पुलिस थाना क्षेत्रों में AFSPA 1958 की धारा 3 के तहत अशांत क्षेत्र घोषित की गई है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 14 नवंबर 2024 को राजधानी इंफाल के पश्चिम जिले सेकमाई पीएस एवं लामसांग पीएस, इंफाल पूर्व में लामलाई, बिष्णुपुर में मोइरांग, कांगपोकपी में लीमाखोंग और जिरीबाम जिले के जिरीबाम पुलिस थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में AFSPA को फिर से लागू कर दिया था। सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम (AFSPA) विशेष शक्तियों वाला प्रावधान है।
मणिपुर के बड़े हिस्से में इस कानून का सहारा लेकर लोगों का फिर सहजता से कत्लेआम होगा इसलिए जगह-जगह प्रदर्शन और अग्निकांड हो रहे हैं। मणिपुर वासी आज़ादी के पहले से ही इस कानून से जूझ चुके हैं। इसलिए असंतोष ज्यादा बढ़ा है। जहां तक कुकी नागा आदिवासी और मैतेई के बीच विवाद का सवाल है। यह पूरी तरह योजनाबद्ध तैयार किया गया। मैतेई लोगों को आदिवासियों का दर्जा देने से यहां कोहराम पिछले सालों से जारी है। मैतेई के बहाने पहाड़ी क्षेत्र जिन पर कुकी नागा आदिवासी रहते हैं, वहां की खनिज सम्पदा तथा वनोपज हथियाना है। मैतेई लोगों को भले ही कुछ ना मिल पाए पर कश्मीर की तरह लूट के लिए मणिपुर के दरवाजे खुल जाएंगे। मूलतः यह वहां की कीमती खनिज सम्पदा अडानी को देने का कुचक्र है। जिसमे मैतेई, कुकी लड़े-मरे जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में निश्चित है सुरक्षा बल आदिवासी कुकी समुदाय पर अकारण गोली चलायेंगे। जैसा कि सुरक्षा बलों पर हमले के बहाने जिरीबाम में 11 कुकियों को गोली से भूंज दिया गया। यदि यह कानून नहीं हटाया जाता है तो मणिपुर को बांटने वालों का कुछ नहीं बिगड़ेगा। मणिपुर वासी यदि इसी तरह बंटेंगे तो निश्चित कटेंगे। और दिप दिप करता शांति का क्षेत्र इसी तरह बाध्य होकर इस क्रूरता की भेंट सहजता से चढ़़ जायेगा। आईए, कटुता छोड़े और बचाएं खूबसूरत महिलाओं का सम्मान करने वाले इस छोटे से राज्य को हिंसा से बचाएं।
إرسال تعليق