आलेख : पं. नेहरू की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं राहुल - लेखक सुसंस्कृति परिहार

बाल दिवस पर विशेष 

लेखक सुसंस्कृति परिहार 

14 नवम्बर पंडित जवाहरलाल लाल नेहरू का जन्मदिन है जिसे बाल दिवस के रुप में ‌मनाया जाता  रहा है। नेहरू बच्चों के चहेते चाचा रहे हैं। आज उनकी विरासत को उनका नाती राहुल आगे बढ़ाने की पुरज़ोर कोशिश में लगा है।

वस्तुत: पंडित मोतीलाल  नेहरू और महात्मा गांधी के साथ आज़ादी का इतिहास जुड़ा हुआ है। वे महात्मा गांधी के पक्के दोस्त थे, इस दोस्ती की बदौलत जवाहरलाल नेहरू गांधी के अनन्य अनुरागी बने। मोतीलाल नेहरू प्रयागराज के एक प्रसिद्ध अधिवक्ता एवं ब्रिटिशकालीन राजनेता थे। वे भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू के पिता थे। वे भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के आरम्भिक कार्यकर्ताओं में से थे। जलियांवाला बाग काण्ड के बाद 1919 में अमृतसर में हुई कांग्रेस के वे पहली बार अध्यक्ष बने और फिर 1928 में कलकत्ता में दोबारा कांग्रेस के अध्यक्ष बने। धीरे धीरे इस परिवार कहते हैं देश पर नेहरू-गांधी परिवार ने कब्जा कर लिया। आजादी से बाद से अधिकतर समय तक कांग्रेस पार्टी का शासन रहा है और उसमें भी नेहरू-गांधी परिवार के लोग ही प्रधानमंत्री बनते रहे। हालांकि नेहरू जी की इच्छानुसार लाल बहादुर शास्त्री जी प्रधानमंत्री बनाए गए। वे अचानक काल कवलित हो गए। उसके बाद नेहरू की इकलौती लाड़ली बेटी इंदिरा को लोकतांत्रिक तरीके से जो सफलता जनता ने दिलाई वह महत्वपूर्ण है। चूंकि इंदिरा जी इमरजेंसी लगाने की वजह से विवादित हो गई थीं, तब मोरारजी भाई देसाई प्रधानमंत्री बने किंतु जनता ने फिर आम चुनाव में इंदिरा जी को सत्ता सौंप दी। उनकी हत्या के पहले राजनीति में सक्रिय छोटे पुत्र संजय गांधी की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई, तब राजीव और सोनिया जी के विरोध के बावजूद राजीव गांधी को कांग्रेस महासचिव बनाया गया। बाद में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उन्हें देश का प्रधानमंत्री बना शीर्ष सत्ता पर काबिज करा दिया। इस दौरान उन्होंने देश को तकनीकी क्षेत्र, ग्राम्य क्षेत्र में शिक्षा, कंप्यूटर क्रांति में विशेष योगदान दिया। तमिल लोगों के हित में शांति सेना भेजने से श्रीलंका के तमिलों की नासमझी की वजह से उनकी भी हत्या कर दी। नरसिंह राव और मनमोहन सिंह ने उनके बाद कांग्रेस को सत्ता में बनाए रखा। सोनिया गांधी तभी से कांग्रेस अध्यक्ष पद पर कांग्रेसियों की मर्जी से ये सम्हाले रहीं। बीच में राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया। चुनाव में पराजित होने पर उन्होंने पद छोड़ दिया। मनमोहन जी ने उन्हें प्रधानमंत्री बनाने का भी प्रयास किया पर उन्होंने अस्वीकार कर दिया। वर्तमान में कोई गांधी कांग्रेस अध्यक्ष नहीं है। दस वर्ष से सत्ता पर भाजपा बैठी है। गांधी परिवार का दूर-दूर तक नहीं नज़र आता। मगर बलशाली भाजपा आज भी नेहरू गांधी परिवार को कोसे जा रही है। जिस परिवार से दो लोग शहीद हुए हों, उस परिवार का चिराग़ आज निडर होकर विरासत बचाने निकल पड़ा है।

बहरहाल, याद रखें अंग्रेजों की कैद में रहते हुए (1942-46) उन्होंने अपनी प्रख्यात पुस्तक डिस्कवरी ऑफ इंडिया (भारत एक खोज) लिखी. इस किताब के माध्यम से नेहरू ने भारत को एक ऐसे इतिहास सम्मत राष्ट्र के रूप में स्थापित कर दिया, आजादी जिसका अधिकार थी। नेहरू के लिए सेक्युलरिज्म़ का अर्थ धर्म को राजनीति से अलग रखना था. बाद के सालों में कांग्रेस के लिए धर्म निरपेक्षता की परिभाषा कुछ अलग हो गई. तब समस्त धर्मों का समान रूप से आदर करना, समस्त धार्मिक अल्पसंख्यकों व उनके हितों की सुरक्षा करना तथा उनकी पहचान बनाए रखना धर्म निरपेक्षता कहलाने लगा। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ और जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। मई 1964 में अपनी मौत तक वे इस पद को सुशोभित करते रहे. भारत में औद्योगीकरण को उन्होंने प्रमुख़ता दी तथा आर्थिक क्षेत्र में सुधार के लिए समाजवादी विचारधारा के अनुरूप नीतियां तय कीं. अफ्रीकी व एशियाई गुट निरपेक्ष देशों के लिए वे प्रमुख़ प्रवक्ता की भूमिका निभाते रहे. इन देशों में से कई इंग्लैंड के अधीन रहे थे तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वे किसी बड़ी शक्ति पर निर्भर नहीं रहना चाहते थे. नेहरू अपने तमाम पड़ोसी देशों से अच्छे संबंध रखने के इच्छुक थे, इसके बावजूद सन् 1962 में सीमा विवाद के चलते वे चीन के साथ युद्ध में उलझ गए, जिसमें भारतीय सेना को बुरी हार का सामना करना पड़ा।

देश का पहला आम चुनाव कांग्रेस ने नेहरू के नेतृत्व में लड़ा, जिसमें देश के प्रधानमंत्री ने लगभग 40 हजार किलोमीटर की यात्राएं की और कोई साढ़े तीन करोड़ लोगों को सीधे संबोधित किया. यह संख्य़ा तब भारत की जनसंख्या का दसवां भाग थी। इस चुनाव में दिए गए ‘कांग्रेस को वोट देना यानी नेहरू को वोट देना’ जैसे नारे से साफ़ पता चलता है कि यह पूरा चुनाव पंडित जवाहरलाल नेहरू पर केंद्रित था। उस समय जबकि नेहरू, फ़िरोज़ व इंदिरा जैसे प्रभावशाली व लोकतंत्र में पूरी आस्था रखने वाले व्यक्तित्व देश की राजनीति पर छाए हुए थे, उसी समय कहीं न कहीं लोगों का ख्याल है कि वंशवाद की नींव भी डल गई थी. फ़िरोज़ गांधी की जीवनी लिखने वाले बर्टिल फॉक के मुताबिक नेहरू के दामाद की राजनीति पर अच्छी पकड़ थी। फ़िरोज़ गांधी की जीवनी लिखने वाले बर्टिल फॉक के मुताबिक नेहरू के दामाद की राजनीति पर अच्छी पकड़ थी. इतनी अच्छी कि अगर उनका विवाह इंदिरा से नहीं हुआ होता, तो भी कांग्रेस को उन्हें लोकसभा का टिकट देना पड़ता. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी फ़िरोज़ गांधी को अंगरेजी राज का विरोध करने पर चार बार जेल की यात्रा करनी पड़ी। 

आज राहुल गांधी जिन हिंदू अलगाववादी ताकतों के बीच पिछले दस सालों से जो संघर्ष कर रहे हैं महात्मा, नेहरू, फिरोज़ गांधी ने भी नहीं सहा होगा। भारत जोड़ो यात्रा का महास्वप्न निश्चित ही उन चिंताओं को लेकर है जिस भारत निर्माण की नेहरू ने कड़ी मेहनत और लगन ने शुरुआत ‌‌‌‌की उसे आगे चलकर उनके परिवार ने लोकतांत्रिक तरीके से जीतकर देश को सुदृढ़ बनाया। पिछले एक दशक से भारत में  जिस तरह की फासिस्ट राजनीति पनपी है। संविधान की उपेक्षाएं सामने आई हैं। देशवासियों के बीच जो दरार पड़ी है उसे भरने में राहुल की यह तपस्या नेहरू की विरासत को सही दिशा में ले जाने वाली है। देश के इस महान परिवार पर हम सब गौरवान्वित हैं और देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी को शिद्दत से याद करते हैं।

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