लेखक - सुसंस्कृति परिहार |
भारत का संविधान जिसे आधिकारिक रूप से 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया। पहली बार संविधान दिवस डॉ. गौर की जयंती 26 नवंबर 2015 को मनाई गई। तब से प्रति वर्ष यह दिन संविधान दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। अफ़सोसनाक बात है सन 2014में जनता से झूठे वायदे के साथ जिसने देश की सत्ता संभाली, वहीं संविधान दिवस मनाने पर ज़ोर दे रहे हैं। ठीक वैसे ही जैसे भगवान राम से सरकार प्रमुख दो लोगों का कुछ लेना देना नहीं एक तो जन्मजात जयश्री कृष्ण वाले हैं और दूजे जैन सम्प्रदाय से हैं। यह सब जनता के साथ एक छलावा था ठीक वैसे ही आज संविधान बचाने की बात कहने और संविधान की पुस्तक साथ लेकर चलने वाले राहुल गांधी को जो सफलता मिल रही है, उसी की काट निकालने का यह एक शिगूफा है।
वैसे भी देश की जनता इस बात को समझ चुकी है कि ये सरकार जो कहती है वह करती नहीं। करनी और कथनी में फर्क हर जगह हर बात में साफ़ दिखाई देता है। चीन को लाल आंख दिखाने की बात हो, खाते में 15 लाख जमा और देश नहीं बिकने दूंगा आदि कई वायदों की धज्जियां जिस तरह उड़ाई गईं ! उसे नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता। जनता के साथ छल करना। यह पूर्णतः असंवैधानिक है। मैनीफेस्टो का उल्लंघन कर फासिस्ट आचरण करना लोकतांत्रिक शासन में शर्मसार करता है। हमें संविधान दिवस मनाने के मायने समझने होंगे !
संविधान दिवस कुछ वर्षों से काफ़ी ज़ोरदार तरीके से मनाया जा रहा है। इस साल भले ही विद्यार्थियों की उपस्थिति ना होने से फीका रहे। लेकिन इसमें आम नागरिक की दिली उपस्थिति बेहद ज़रूरी है। विशेष बात ये कि यह दिवस सन 2015 से मनाया जा रहा है और लगभग एक वर्ष पहले से ही संविधान की भावनाएं आहत होनी शुरू हो गई थीं और आज पांच वर्षों बाद संविधान बचाने की मुहिम शुरू करनी पड़ गई है।
आइए पहले अपने संविधान पर एक नज़र डाल लें। हमारा संविधान यानि भारत गणराज्य का संविधान 26 नवम्बर 1949 को बनकर तैयार हुआ था। संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ॰ भीमराव आंबेडकर के 125वें जयंती वर्ष के रूप में 26 नवम्बर 2015 से संविधान दिवस मनाना शुरू हुआ। हमें मालूम होना चाहिए कि भारतीय संविधान को दुनिया का सबसे बड़ा संविधान कहा जाता है। इस संविधान में 94 संशोधन 448 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियों को शामिल किया गया है। यह हस्तलिखित संविधान 2 साल 11 महीने और 17 दिन में लिखा गया । भारतीय संविधान, जिसमें 48 आर्टिकल हैं। यह 1948 में संविधान का पहला प्रारूप चर्चा के लिए प्रस्तुत किया गया। 4 नवंबर 1948 से शुरू हुई यह चर्चा तकरीबन 32 दिनों तक चली थी। इस अवधि के दौरान 7,635 संशोधन प्रस्तावित किए गए, जिनमें से 2,473 पर विस्तार से चर्चा हुई। संविधान सभा के 284 सदस्यों ने 24 जनवरी 1950 को दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। दो दिन बाद इसे लागू किया गया था। संविधान निर्माता के डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने भारतीय संविधान के रूप में दुनिया का सबसे बड़ा संविधान तैयार किया है। यह दुनिया के सभी संविधानों को परखने के बाद बनाया गया। संविधान की प्रस्तावना पर गौर करें - "हम भारत के लोग भारत को एक संप्रभुताम्पन्न समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्मऔर उपासना की स्वतंत्रता निष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में, व्यक्ति की गरिमा, राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्पित होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ईस्वी (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं ।"यह संविधान की मूल भावना को प्रकट करती है ।
संविधान निर्माण की संक्षिप्त कहानी यह बताती है कि ये कानून देश के 284 सदस्यों की राय और मशविरे से ही नहीं बल्कि दुनिया के तमाम संविधानों के अध्ययन से ली गई महत्वपूर्ण बातों से मिलकर उभरा है। इसकी खासियत यह भी रही कि इसे लचीला भी बनाया गया है कि आवश्यकता होने पर और जनहित में इसे संशोधित किया जा सकता है । इस प्रकार हमारा संविधान किसी राजसी सनक से बना कानून नहीं बल्कि गहन अध्ययन के बाद तैयार किया गया है, जिसमें स्त्री पुरुष को समानाधिकार की बात है अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार है। वह नागरिक के अधिकार और कर्तव्यों को बताता है। समानता, न्याय और समता की बात करता है ।
अफ़सोसनाक बात ये है कि शिक्षण का अभाव और संविधान के प्रति लगाव की घोर उपेक्षा के चलते आज चुनाव, रोजगार के अधिकार, धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिक सद्भाव के बीच छद्मरूप में संविधान विरोधी ताकतें पनप रहीं हैं। वे देश को संविधान की बजाय मनुस्मृति से चलाने की साजिश गोपनीय रुप से चला रहीं हैं । अब तो लव-जिहाद के बहाने प्रेम करने वालों को भी नापने की तैयारी हो चुकी है। धर्म परिवर्तन पर भी नज़र रखी जायेगी। जबकि हमारा संविधान प्रेम करने और अपने पसंद का धर्म चुनने का अधिकार देता है। भाषा, लिबास और खान-पान पर भी अड़ंगे डाले जा रहे हैं। सच लिखने और बोलने पर भी ख़तरे बढ़े हैं। जीवन के ज़रूरी बुनियादी मुद्दों से अलहदा गड़े मुर्दे उखाड़ कर बेबस रियाया को बहलाना और वोट हथियाने के साथ साथ चुनाव आयोग और यहां तक कि जुडीशरी के निष्पक्ष कार्य में बाधा डाली जा रही है। ये सब के सब मसले हमारे संविधान विरोधी हैं। ख़िलाफ़त करना जहां स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी है, वहां इसे देशद्रोह मानकर कार्रवाई करना फ़ाजि़ज़्म के आगमन की आहट है।
एक टिप्पणी भेजें