आलेख : नाबालिगों के बढ़ते अपराध दोषी कौन?
लेखक - सुसंस्कृति परिहार |
पिछले दिनों मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के समीपवर्ती एक गांव के शासकीय हायर सेकंडरी विद्यालय में प्राचार्य को 12वीं के एक छात्र ने जिस तरह सधे हाथों से गोली मारकर मार डाला, वह दिल दहलाने वाला है। इसी तरह मध्यप्रदेश के ही दमोह जिले के पथरिया में भी एक सरकारी हाई स्कूल के चार नाबालिग छात्रों ने अपनी सहपाठी नाबालिग छात्रा के साथ गैंगरेप किया इससे क्षुब्ध होकर बालिका ने आत्महत्या कर ली।
आजकल स्कूलों में इस तरह की घटनाएं ज़्यादा होने लगी हैं जो चिंताजनक है इसकी वज़ह क्या हो सकती इस पर विमर्श बेहद जरूरी है। आइए, पहले छतरपुर के स्कूल की बात करें। यहां विद्यालय के छात्र, शिक्षक प्राचार्य और परिवार जन भली-भांति जानते थे कि हत्यारा अपराधी छात्र गुस्सैल प्रवृत्ति का है और तरह-तरह के छुटपुट अपराध करता रहता है। विद्यालय कभी-कभार ही आता जाता है। उसकी इस बदमिज़ाज़ी को ना केवल परिवार के लोग सहते रहे बल्कि शालेय परिवार ने भी कभी उसे समझाने की कोशिश नहीं की। इससे उसका मनोबल इतना बढ़ गया कि शाला प्रमुख प्राचार्य ने जब उसे पहली बार परिवारजनों और विद्यालय में सबके सामने शर्मिंदा किया तो उसके अब तक बने स्वाभिमान को ठेस पहुंची, वह आगबबूला हो उठा और उसने प्राचार्य के खिलाफ एक सुनियोजित षड़यंत्र रचा। आक्रोश के वशीभूत होकर उसने रिवाल्वर का इंतजाम किया तथा आपराधिक लोगों की तरह पहले ही हमले में उन्हें मौत की नींद में सुला दिया। इतना ही नहीं वह शातिराना तरीके से प्राचार्य के वाहन पर सवार होकर भाग खड़ा हुआ। यहां फिर वही हुआ उस को किसी ने बुद्धिमत्ता से पकड़ने की ज़रा भी कोशिश नहीं की।
इतनी काम उम्र में कानूनी दांवपेंच की इतनी समझ !
पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया है, जहां उसने जुर्म कबूल कर लिया है खास बात ये है कि उसे किशोर न्याय प्रणाली की जानकारी है इसलिए वह कह रहा है कुछ नहीं होगा, कुछ दिनों की जेल, फिर बेल तथा फिर सज़ा मुक्त हो जाऊंगा। कक्षा 12वीं का छात्र को यह जानकारी किसने दी जबकि शहरी बच्चों को भी यह जानकारी नहीं रहती। यह इस बात को सिद्ध करता है किसी ने उसे हत्या करने से पूर्व यह गुरु मंत्र दिया था।
वाकई, यदि यह हुआ़ है तो चिंताजनक है क्योंकि गांव में यह सोच मुसीबत बन सकती है वैसे शहरों में तो बच्चों को बाल संरक्षण कानून के बारे में बताया जाता है। इस बारे में सोचना निहायत जरूरी है। कल को कोई भी नाबालिग बच्चे से कहीं भी कुछ करवा सकता है।
दूसरी घटना में गैंगरेप प्रताड़ित लड़की का आत्महत्या करना ,इस बात की पुष्टि करता है कि बालिका को अपने अधिकारों के साथ संरक्षण हेतु बने कानून की जानकारी नहीं है। ये दो तरह के मामले हैं। बालिकाओं में ये चेतना कब आएगी, कब वे बलात् अपराधों के लिए सम्बन्धितों को सामने लाने महिला थानों और संरक्षण कानून का सहारा लेने में समर्थ होंगी।
यहां यह ख़्याल रखना होगा कि शालेय परिसर और कक्षाओं में किशोर बच्चे साथ साथ उठते बैठते हैं। इसलिए उन्हें कानून की समस्त जानकारी दी जानी है किंतु यहां उन पर सम्पूर्णता के साथ ध्यान देने की भी ज़रुरत है। उसके बाद बच्चे जब घर जाते हैं तो सामाजिक कार्यकर्ता उन पर नज़र रखें। घर पर परिवार जनों का दायित्व बनता है कि वे बच्चों का ख़्याल रखें। गैंगरेप जैसी घटना के बाद बच्ची को समझाएं उसके मन से भय निकालें लोग क्या कहेंगे? इसके लिए मां-बाप को पूरा सहयोग देना होगा। तब वह इस तरह के वीडियो बनाने वालों से घबराकर आत्महत्या का विचार कभी नहीं लाएगी।
बच्ची का स्कूल में बस्ता होने के बावजूद लड़की का ना होने पर छुट्टी के बाद जैसा कहा जा रहा है कि शिक्षक उसे ढूंढने निकले तो बच्ची पहाड़ी पर मिली।उनका कहना है कि वह खुश थी इसलिए आगे बात नहीं हुई आखिरकार क्यों नहीं की। आप लोग उसे ढूंढने गए थे, आपका दायित्व था। आप उसे परिजनों के सुपुर्द करते या प्यार से यही पूछ लेते। बेटा यहां कैसे? तो शायद ऐसी घटना नहीं घटती तथा आसपास मौजूद अपराध करने को आतुर छात्र भी भाग खड़े होते।
बहरहाल, दोनों नाबालिगों द्वारा हुई घटनाएं हमारे समाज की लापरवाही का प्रतीक हैं। जिसमें जितने शिक्षक जिम्मेदार हैं उतने ही दोषी परिवार जन और हम नागरिक भी है। किशोर बच्चे बच्चियों के मनोभावों को पढ़ना शिक्षक शिक्षिकाओं को आता है। बशर्ते वे उसके सम्यक विकास पर ध्यान दें यदि सिर्फ शिक्षा देना व्यवसाय होगा तो ऐसी घटनाएं निरंतर बढ़ती जाएगी। यहां यह बात भी जाननी ज़रूरी है कि आज की किशोर और बच्चों की पीढ़ी का ज्ञान समय से बहुत आगे चल रहा है। उससे निपटने शिक्षकीय चतुराई और स्नेहिल व्यवहार से काम लेना होगा। डर दिखाकर इस समस्या का हल नहीं निकल सकता है।यही बात परिवार जनों पर भी लागू होती है।
आज के चहुंओर फैले अराजक माहौल में जहां आम जन को मक्कार और धूर्त और चालाक बनाया जा रहा है उस समाज में जन्मने किशोर और बच्चों की पीढ़ी से हम अच्छी उम्मीद कैसे कर सकते हैं। वे निरंतर अपराधियों को सत्ता सुख,जेल से बेल और अभिनंदित होते देख रहे हैं। यहां तक कि,अपराधी युवाओं को एक पार्टी में जब विशेष सम्मान और काम दिए जा रहे हों तो बच्चे भ्रमित होंगे ही। आजकल शिक्षक, प्राचार्य भी अनावश्यक दबावों में हैं। उनसे भी कैसे सदाचरण की उम्मीद की जा सकती है। वर्तमान में ऐसे शिक्षक उंगलियों पर गिने जाने वाले हैं।
लेकिन इस सब के बावजूद हमारे परिवार, समाज के बहुसंख्यक लोग और शिक्षक ठान लें तो नाबालिगों को इस आपराधिक वृत्ति से बचाया जा सकता है। सरकार और कानून का सहारा लेना उचित है पर भरोसे बैठना कदापि ठीक नहीं है।
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