लेखक - सुसंस्कृति परिहार |
फ़कीर झोला उठाके भले ना चला हो पर प्रियंका-गांधी ने संसद परिसर में पहुंच कर जिस तरह अपना परचम लहराया है अभी उसकी काट भाजपा निकाल नहीं पाई थी कि प्रियंका ने फिलीस्तीन के समर्थन में जो झोला लटकाया उसने तमाम दुनियां में भारत की रणनीति का स्वागत किया है। जबकि फ़कीर तो इज़राइल का अनन्य अनुरागी है। जो अमरीका परस्त है। लेकिन मौके बेमौके भारी मन से नेहरू गांधी की विदेश नीति के तहत फिलीस्तीन का समर्थन करना पड़ जाता है।
प्रियंका ने ये झोला टांगकर मोदी सरकार हिला दिया है। वरना सदन में भाजपा समर्थक इस झोले का समर्थन करते। झोला टांगने पर समर्थन तो दूर उनका आईटी सेल प्रियंका पर मुसलमानों का समर्थन करने पर सक्रिय हो गया। मुसलमानों से नफ़रत का ये सिलसिला चल पड़ा जो थमने का नाम नहीं ले रहा है उन्हें फिर प्रियंका को कोसने का बहाना मिल गया तथा वे कांग्रेस की भाईचारे की संस्कृति पर पिल पड़े।
पर प्रियंका भला कहां हार मानने वाली थी उन्होंने ईंट का जवाब पत्थर से दे दिया दूसरे दिन बांग्लादेश का बैग टांगकर हिंदू और ईसाई समुदाय की समस्या की ओर ध्यानाकर्षण किया। भाजपा इस प्रत्युत्तर से अवाक रह गई है। कहीं-कहीं से ईसाई पक्ष की बात की ख़बर आई लेकिन फिर ख़ामोशी छा गई। क्योंकि वे हिंदुओं के संरक्षण पर भी ज़ोर दे रही थीं।
प्रियंका और राहुल ऐसे राजनेता हैं, जिन्होंने राजनीति में विपक्ष को ज़िंदा रखने के अथक प्रयास किए हैं तथा भाजपा की झूठनीति, कूटनीति तथा लूटनीति से भलीभांति वाकिफ हैं। वे जान जोखिम में डालकर सैद्धांतिक लड़ाई लड़ रहे हैं। देश को विकासशील भारत की बुनियाद में उनके परिवार के लोगों का योगदान विश्व जानता है। उन्होंने ऐसे परिवार में जन्म लिया है, जिसमें दो लोगों ने देश की खातिर अपना बलिदान दिया। इससे पहले नेहरू और उनकी पत्नी, बहनें, मां पिता सब आज़ादी के दौरान जेल में रहे। उनकी रग रग में देशप्रेम समाहित है। बापू के बुनियादी सिद्धांतों सत्य, अहिंसा और शांति के पथ पर आज भी वे दृढ़ संकल्पित हैं। इसलिए उनका दिल फिलीस्तीन और बांग्लादेश में परेशान लोगों के प्रति दुखता है और वे चाहते हैं भारत सरकार उन लोगों का समर्थन करते हुए सहयोग करें।
मिसाल के तौर पर नेहरू और इंदिरा की शरणार्थियों के प्रति कर्तव्यनिष्ठा देखने को मिलती है। वे तिब्बती हों या पाकिस्तानी उन्होंने कभी परहेज नहीं की। शरणागत को शरण देकर भारतीय संस्कृति को पुष्ट किया है।
इंदिरा जी ने तो पाकिस्तानी तानाशाह से पीड़ित पूर्वी पाकिस्तान के उत्पीड़न को देखकर वहां की मुक्ति सेना के समर्थन में अपनी सेनाएं भेजकर उनको आज़ाद बांग्लादेश दिया। वहां से आए एक लाख शरणार्थियों को शरण देकर उनकी सम्मान पूर्वक मदद की।
आज उनके इस काम की सराहना करना तो दूर उनका ज़िक्र भी भारत सरकार नहीं करती। यहां तक की 93000 पाकिस्तानी सैनिकों के आत्मसमर्पण के चित्र को सेना मुख्यालय से हटाती है। पूर्वी पाकिस्तान से आए हिंदू मुस्लिम शरणार्थियों से घृणास्पद व्यवहार करती है। उनकी वापसी के कानून बनाती है।
भाजपा के शासनकाल में म्यांमार से आए परेशान शरणार्थियों के साथ उनका व्यवहार जग जाहिर है यदि राष्ट्रसंघ का दबाव ना होता तो वे बेचारे कब के खदेड़ दिए गए होते।
बहरहाल, परदेशियों की बात छोड़िए मणिपुर में जो आग इन्होंने लगाई वह आज तक भभक रही हैं। वहां के वाशिंदों के साथ इनका सलूक दुनिया देख रही है। लोग प्रियंका से मणिपुर का झोला टांगने का आग्रह कर रहे हैं वह ठीक है किंतु इस बात को भी स्मरण रखना चाहिए जलते मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच शासकीय अवरोध के बावजूद ज़िद पूर्वक उनके घावों पर मरहम पट्टी लगाने राहुल गांधी दो बार गए।
ये वही परिवार है जिसने भारत जोड़ो और भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान देश में भाईचारा कायम रखने नफ़रत के ख़िलाफ़ मोहब्बत की दूकान खोली।तमाम रास्ते में मिलने वालों से मिले उनके दुख दर्द जाने। आजकल ऐसा कौन करता है।
यौनाचार पीड़ित महिलाओं से मिलने में प्रियंका और राहुल ही अग्रणी रहे।आज भी राहुल हर तरह के कर्मियों से मिलकर उसे सीखकर उस पीड़ा का एहसास करते हैं। मदद का हाथ बढ़ाते हैं। इतनी पीड़ा भला कौन उठाता है?
वह भी उन्हें एक टी शर्ट में हर मौसम देखा जाता है।
ये तमाम चीजें यह बताती हैं कि इस परिवार के सदस्यों ने दुख,दर्द और विविध तरह की पीड़ाओं को ना केवल सहा है बल्कि समानांतर रुप से कमोवेश ऐसे लोगों से मिलकर उनका ग़म बांटा है।
प्रियंका के ये झोले सिर्फ़ दिखावे या विक्रय के लिए नहीं है। ये झोले उन देशों के तमाम पीड़ित,परेशान लोगों के दिलों में उत्पन्न दर्द और अत्याचारियों के विरुद्ध एक बुलंद आवाज़ है। जिसे समझा जाना चाहिए।
एक टिप्पणी भेजें