नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने किसानों के आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में एक महत्वपूर्ण बयान देते हुए कहा है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी भी नागरिक को शांतिपूर्ण ढंग से विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार है। न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने इस विषय पर किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल की ओर से पेश वकील को सुझाव दिया कि वे किसानों को इस बात के लिए सहमत करें कि उनके प्रदर्शन से सार्वजनिक मार्ग बाधित न हों और लोगों को असुविधा न हो।
खंडपीठ ने वकील से स्पष्ट शब्दों में कहा, "लोकतंत्र में विरोध की स्वतंत्रता सबको है, किंतु यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आम जनता को इससे किसी प्रकार की असुविधा न हो।" उन्होंने खनौरी सीमा को पंजाब की जीवनरेखा बताते हुए यह भी उल्लेख किया कि इस क्षेत्र में किसी प्रकार का व्यवधान पूरे राज्य को प्रभावित कर सकता है।
हालांकि, खंडपीठ ने यह स्पष्ट कर दिया कि वे विरोध प्रदर्शन के औचित्य पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा, "हम इस पर विचार नहीं कर रहे कि प्रदर्शन सही है या गलत। यह निर्णय का विषय नहीं है।"
किसानों की मांगें और आंदोलन की पृष्ठभूमि
किसान संगठन लंबे समय से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने, किसानों व खेत मजदूरों के लिए पेंशन, कृषि ऋण माफी, भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 को बहाल करने, तथा पिछले आंदोलनों के दौरान मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवजा देने की मांग कर रहे हैं। ये आंदोलनकारी फरवरी से पंजाब और हरियाणा के बीच शंभू व खनौरी सीमाओं पर डेरा डाले हुए हैं।
इस संदर्भ में, पंजाब पुलिस द्वारा किसान नेता दल्लेवाल को खनौरी सीमा से जबरन हटाए जाने और लुधियाना के एक अस्पताल में ले जाए जाने की घटना ने सुर्खियां बटोरी। उन्हें अस्पताल से रिहा कर दिया गया और उन्होंने फिर से आमरण अनशन में भाग लिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के तहत सुना और पाया कि उनकी रिहाई हो चुकी है।
किसानों और प्रशासन के बीच संवाद स्थापित करने के उद्देश्य से, सुप्रीम कोर्ट ने 2 सितंबर को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति नवाब सिंह की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया। इस समिति में कृषि विशेषज्ञ और अन्य संबंधित अधिकारी शामिल हैं।
यह समिति किसानों की मांगों और उनके समाधान के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत करने का प्रयास कर रही है। इसमें कृषि विशेषज्ञ प्रोफेसर देवेंद्र शर्मा और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के कृषि अर्थशास्त्री डॉ. सुखपाल सिंह की अहम भूमिका है।
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