आलेख : प्रकृति को धन्यवाद भी देता है बड़ा दिन लेखक - सुसंस्कृति परिहार

 

लेखक - सुसंस्कृति परिहार

देश में सूर्योपासना के लिए दो पर्व विख्यात हैं एक मकर संक्रान्ति और दूसरा छठ पर्व। मकर संक्रांति तो संपूर्ण देश में कई नामों से मनाई जाती है। तमिलनाडु में पोंगल, असम में वीहू, उत्तर भारत में संकरात या खिचड़ी, पंजाब में माघी, गुजरात में उत्तरायण  केरल में ओणम आदि नाम से प्रकृति की उपासना की जाती है,लेकिन यदि दुनिया की ओर नज़र डालें तो और गहराई से चिंतन करें तो यह बात सामने आती है कि विश्व की सर्वाधिक आबादी रखने वाले ईसाई समाज के लोग 25 दिसंबर को जो बड़ा दिन या क्रिसमस  मनाते हैं, वह भी सूर्योपासना का एक तरीका है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यह बात सत्य है क्योंकि 22 दिसम्बर सबसे छोटा दिन होता है। दूसरे तीसरे दिन आंशिक बढ़ोतरी होती है जिसका अहसास नहीं होता। यह 25 दिसंबर से ही पता चलता है। क्योंकि पृथ्वी का अक्ष  23.5 डिग्री के कोण पर झुका हुआ है। इस झुकाव के कारण, सूर्य की किरणें पृथ्वी की सतह पर अलग-अलग कोणों से पड़ती हैं। जब सूर्य की किरणें पृथ्वी की सतह पर सबसे ज़्यादा तिरछी पड़ती हैं, तो दिन सबसे छोटा होता है।इस  लिहाज़ से बड़ा दिन कहना युक्तिसंगत है।

कतिपय लोग ईसाईयों के लिए इसे सबसे बड़ा त्‍योहार होने के कारण है, बड़ा दिन कहते हैं ।
खासकर ठंडे मुल्कों में यह विशेष उत्सव का दिन होता है। कहना ना होगा कि सूर्य की उपस्थिति कठोर शीत के बाद अत्यंत लुभावनी और मनमोहक होती है।यकीनन सूर्य सबको प्रभावित करता है तथा प्रकृति के महत्वपूर्ण और अनिवार्य उपादानों में वह एक है। इसलिए अप्रत्यक्षत:यह सात दिवसीय पर्व भी एक तरह से प्रकृति पर्व है या कहें प्रकृति को धन्यवाद देने का पर्व है।

ऐसा कहा जाता है कि चौथी सदी में रोम के सम्राट कॉन्स्टेंटाइन ने 25 दिसंबर को प्रभु यीशु के जन्मदिवस के रूप में मान्यता दी। यह तारीख सूर्य के पुनर्जन्म से भी जुड़ी हुई मानी गई, जो धीरे-धीरे धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा में बदल हो गई। इस प्रकार, 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाने की परंपरा चलन में आ गया। अगर आपसे पूछा जाए कि इस पर्व को क्‍यों मनाया जाता है, तो आप झट से कहेंगे कि इस दिन प्रभु यीशू का जन्‍म हुआ था लेकिन अगर हम आपसे कहें कि यीशू के पैदाइश की तारीख 25 दिसंबर नहीं है, तो क्‍या आप यकीन करेंगे? हो सकता है आपको इस बात की जानकारी न हो, लेकिन ये सच है कि ईसा मसीह के जन्‍म की तारीख के बारे में किसी को भी सटीक जानकारी नहीं है। इसको लेकर तमाम तरह के तर्क दिए जाते हैं। वॉशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बाइबिल में इस बारे में कोई स्पष्ट रूप से किसी भी तारीख या दिन का जिक्र नहीं किया गया है। दिसंबर को बड़ा दिन कहा जाता है, इसका कारण है कि यूरोप में कुछ लोग जो ईसाई समुदाय से नहीं थे, वे सूर्य के उत्तरायण के मौके को त्योहार के रूप में 25 दिसंबर को मनाया करते थे। इस दिन के बाद से दिन धीरे-धीरे बड़ा होना शुरू हो जाता है। यूरोप में इस दिन को गैर ईसाई लोग सूर्यदेव के जन्‍मदिन के तौर पर मनाया करते थे।

इस पर्व में सैंटा जिसका वास्तविक नाम संत निकोलस है, भी महत्वपूर्ण पात्र हैं। और यह कथा 280 ईस्वी में तुर्की से शुरू होती है। सैंटा उत्तरी ध्रुव पर अपनी पत्नी मिसेज क्लॉज के साथ निवास करते हैं। वह एक खुशमिजाज व्यक्ति हैं, जिनकी सफेद दाढ़ी है और जिनके हृदय में दया और करुणा का भाव भरा हुआ है। संत निकोलस जरूरतमंदों और बीमारों की सहायता के लिए यात्रा किया करते थे। यहां यह ध्यान देने की बात है वे उत्तर ध्रुव प्रदेश में रहते हैं जो इस वक्त दुनिया सबसे का ठंडा स्थल रहता है। वहां सूर्य की रश्मियों से वे बड़ा दिन में इतने आल्हादित होते हैं कि खुशियां बांटने का काम करते हैं।

प्रकृति के साहचर्य का एक अनूठा दृश्य तब देखा जा सकता है जब मैक्सिको की खाड़ी में जन्मी गल्फ स्ट्रीम गर्म जलधारा के ज़रिए अमेरिका वासी 25 दिसंबर को अपने शुभकामना पत्र भेजते हैं जो यूरोप तट पर नए साल के प्रथम दिन पहुंच जाते हैं। यूरोप के तटीय क्षेत्रों में संचार क्रांति के बावजूद लोग इन्हें प्राप्त करने तटीय क्षेत्रों में आज भी बड़ा दिन मनाते हैं।

कुल मिलाकर हर पर्व के साथ किसी धार्मिक प्रतीक को जोड़ दिया जाता है जैसे संक्रान्ति पर्व पर शंकर जी, छठ पर्व पर छठी मैय्या या बड़े दिन पर ईसा मसीह को जोड़ा गया। वस्तुत:ये तमाम पर्व प्रकृति से प्राप्त उपादानों के लिए कायनात हेतु शुक्रिया का पर्व है। यह तमाम वसुंधरा पर अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। आइए, हम सब भी बड़े दिन पर खुशी का इज़हार करें। प्रकृति हम सबकी है सब कुछ उसका ही दिया हुआ है।

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