काशीनाथ शर्मा |
जबलपुर। काशीनाथ को सिर्फ पत्रकार के दायरे में नहीं रखा जा सकता। वे दरअसल आब्जर्वर थे। वे सभी विषयों के आब्जर्वर थे। राजनीति, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक व कला सहित सभी विषयों की उनकी समझ उन्हें विशिष्ट बनाती थी। उनका हास्य बोध ग़ज़ब का था। काशीनाथ शर्मा स्वयं को सिर्फ काशीनाथ लिखते थे और इस नाम का ही संबोधन पसंद करते थे। उनके भीतर यह परिवर्तन जातियों में बंटते हुए समाज को लेकर था। विद्यार्थी राजनीति में ज़रूर उन्हें पंडित के संबोधन से पहचाना व पुकारा जाता हो लेकिन ब्राम्हण के सूत्र में उनको बंधना कभी मंजूर नहीं था। काशीनाथ सामाजिक न्याय के प्रखर समर्थक थे। उनकी एक पहचान एक्टिविस्ट के रूप में थी।
काशीनाथ की विशिष्टता उनकी विचारधारा के कारण थी। स्कूली जीवन में वे शरद यादव के आंदोलन से जुड़े और इसलिए उन्होंने समाजवादी विचारधारा का निर्वाह जीवन भर किया। वे अपनी विचारधारा से कभी डिगे नहीं और न ही कभी प्रभोलित होकर दूसरी विचारधारा का हाथ पकड़ा। वर्तमान में जब विचार शून्य हो रहे हों ऐसे समय काशीनाथ ने अपने दो साथियों के साथ 'हां मैं गांधी हूं' का विचार सम्प्रेषित किया।
काशीनाथ की एक विशिष्टता उनका खूब पढ़ने की आदत थी। ज्ञानरंजन के संपादन में निकलने वाली 'पहल' के अंक का वे बेसब्री से इंतजार करते थे। प्रगतिशीलता व वैज्ञानिकता उनके भीतर कूट-कूट कर भरी थी। अपढ़ता व कुपढ़ता व वे जमकर प्रहार करते थे।
काशीनाथ साहसी व जीवट वाले व्यक्ति थे। जिस मीडिया संस्थान में वे कार्यरत रहे वहां उन्होंने प्रबंधन से साथी पत्रकारों के हित को लेकर संघर्ष ही किया। वे सदैव मदद करने को तत्पर रहते थे। प्रगतिशील साहित्यिक, सांस्कृतिक व कला आंदोलन व कार्यक्रम में उनकी सक्रिय भागीदारी रहती थी। वे अपने प्रयास से ऐसे आयोजन को सभी तरह से सहयोग प्रदान करते थे।
विख्यात कथाकार व पहल के संपादक ज्ञानरंजन को जब काशीनाथ के देहावसान की सूचना मिली तो उन्होंने कहा- हमारा एक साथी चला गया। ज्ञानरंजन ने याद किया कि काशीनाथ जैसा पढ़ने वाले लोग अब कहां बचे हैं।
हम लोगों का नियमित रूप से मिलना प्रतिदिन सुबह के समय डिलाइट टॉकीज क्षेत्र में होता था। काफ़ी लोग व्यस्तता के बावजूद दो मिनट के लिए रूकते थे। काशीनाथ भी वहां मौजूद रहते थे। काशीनाथ की पहल पर नियमित मिलने वालों का एक आभासी ग्रुप डिलाइट विचार मंच बना लिया गया था। पिछले एक माह से उनकी अनुपस्थिति थी। अरूण चौकसे की पान की दुकान उनका खास ठिया था। लगभग दस दिन पूर्व अरूण चौकसे ने जानकारी दी कि काशीनाथ संभवतः मुंबई चेकअप करवाने गए हैं। किडनी की समस्या से सभी परिचित वाकिफ़ थे। सभी लोग सोचते थे कि काशीनाथ जल्द मंद-मंद मुस्कारत हुए हम लोगों के बीच उपस्थित होंगे। फिर जानकारी मिली कि वे हॉस्पिटल में हैं तो उन्हें देखने 7 दिसंबर को रात में गया। आईसीयू में एक झलक देखने गया तो आक्सीजन मॉस्क लगाए हुए काशीनाथ ने हाथ उठाया तो महसूस हुआ कि जैसे वे कह रहे हों साथी चिंता मत करो जल्द किसी सुबह डिलाइट में मिलेंगे।
हम लोगों में से किसी ने कभी कल्पना ही नहीं की थी कि डिलाइट में अब काशीनाथ कभी नहीं मिलेंगे।
- काशीनाथ को श्रद्धांजलि-पंकज स्वामी
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