आलेख - रावण.... कहीं उसने अपना नाम और ब्राण्ड तो नहीं बदल लिया... लेखक - मनोहर बिल्लौरे

आलेख
रावण.... कहीं उसने अपना नाम और ब्राण्ड तो नहीं बदल लिया... 
लेखक - मनोहर बिल्लौरे


लेखक - मनोहर बिल्लौरे

पढ़ी सुनी बात है - रावण एक प्रतापी राजा था। इतना प्रतापी कि उसकी क़ैद में एक समय सारे देवता थे। वायु, जल, अग्नि, आकाश, भूमि सब के सब। वह उन्हें अपनी चाल चलाता था।

अब देखें अग्नि तो पहले ही बिक रही थी। अब जल देवता बाज़ार में पान-परचून की दुकान पर भी मिल जायेंगे। एक रुपये से सौ रुपये तक। बोतल में बंद। पैक्ड। जैसा कि मेरे एक पढ़े-लिखे दोस्त ने बताया कि धर्मालयों से भी रोज़गार पनपता है। तो मैंने कहा, भाई इससे तो भिखारी भी बढ़ते हैं। वे चुप्पी साध गये। सीधे सरल थे। पूरमपूर भक्त नहीं थे, अन्यथा लड़ने लगते।

इसी तरह प्रदूषण से भी रोज़गार पनपता है। अब नदियों के प्रदूषण से जल (देव) अपेय है, तो उसे पेय बनाने के लिए फिल्टर प्लांट लगेगे। और और काम होंगे इस वजह से। तो रोज़गार बढ़ जायेगा। नदियाँ प्रदूषित नहीं होगी, तो जल के भाव कैसे बढ़ेंगे...? बढ़ रहे हैं। और यह बाढ़ रुक नहीं सकती। और रुक जाये तो समझ लेना कि अवतार हो गया, सत्ता सिंहासन पर किसी परम-आत्मा का।

प्राण-वायु (ऑक्सीजन) तो बिक ही रही थी। अब पवन-देव के बिकने की बारी है। देश की, हम सब की राजधानी, दिल्ली। सबसे विकसित है। पर वहाँ ऑक्सीजन की कमी का हल्ला हर साल ठण्ड के दिनों में होता है। वहाँ और उस जैसे शहरों में एक विष-घुली धूम, भारी हवाओं में चहलक़दमी करती रहती है, सड़कों पर। लोगों के लिए असहनीय।

कुछ दिनों बाद दिल्ली जैसे शहरों में लोग ऑक्सीजन सिलेण्डर खरीद कर अपने बैग या पाॅकेट में रखा करेंगे। पता नहीं साँस कब रुकने लगे...? और फुफ्फुस-रोगियों के लिए तोऔर भी जटिल और ख़तरनाक स्थिति है। वे यदि ज़रूरी हुआ तो ऑक्सीजन सिलिण्डर लगाकर बाहर निकलेंगे। घर में तो एयर क्लीनर लगे ही होंगे। कितने सारे रोज़गार पनपेंगे। सोचिए...!

घरों के बाद में - पहले भवनों के डिज़ाइनों में तब्लदीली आएगी। ऐसे उद्योग लगेंगे भविष्य में, जो ऐसे फिल्टर बनायेंगे जो बाहर की हवा को इस तरह छानकर अंदर भेजे कि दूषित पदार्थ उसमें चिपक जायें, या बाहर रह जायें।

हमारे यहाँ अभी दूर-दूर ही सही चारों तरफ़ खेत हैं। पेड़-पौधे, हरियाली है। हवा पावन और स्वच्छ भले न हो, पर ज़हरीली नहीं।

अब इसे ‘विकास’ कहना है, तो कह लीजिए। और विकास के लालच में विनाश की तैयारी करते रहिए।

और ‘विकास’, ‘विकास’, विकास… की हुआ हुआ हुआ में शामिल होते जाइये। आपकी तो कट जाएगी, पर आने वाली पीढ़ियाँ...? ऊपरवाला है, न्,...।

रावण कौन..., कहाँ छुपा है....? कहीं उसने अपना नाम और ब्राण्ड तो नहीं बदल लिया...?
             


Post a Comment

Previous Post Next Post