व्यंग्य : कुत्ते को कुत्ता मत कहिये…! लेखक - मनोहर बिल्लौरे

व्यंग्य : कुत्ते को कुत्ता मत कहिये…!  


लेखक - मनोहर बिल्लौरे

कुत्ते को कुत्ता मत कहिये। वह नाराज़ हो जायेगा। भौंकने लगेगा। भौंकता जायेगा मुसलसल… भौंकता रहेगा, तब तक जब तक आप उसके परिक्षेत्र से दूर नहीं हो चले जायेंगे। वह आपसे गुस्सा जायेगा; आपने उससे बात नहीं की, हाय हलो नहीं किया, हिकारत से देखा; मुँह बनाकर बिना बोले ‘कुत्ता’ कहा और मोड़ लिया। यह तो गड़बड़ है।

असल में भौंक कर बुरा-भला कह रहा है वह आपसे। और आप हैं कि उसकी उपेक्षा कर रहे हैं। अब यदि आप उससे डरे, भागे इधर-उधर, हमलावर हुए उस पर; तो यदि वह लेंड़ू न हुआ, तो काट खायेगा, गुस्से में। आपकी पिण्डली पर। क्योंकि उसकी पहुँच वहीं तक है। उसके दाँतों का घाव लिये आप जायेंगे डॉक्टर के पास। अंधविश्वासी हुए तो झाड़-फूँक करवाएँगे। कुछ न कुछ उपाय तो करेंगे ही। अब इसमें भी आपको संवेदना बटोरने का मौक़ा मिलेगा। बटोरिये जी भर। पर सामने वाला भी औपचारिकता के अलावा कुछ करेगा नहीं। और इस बात पर बुरा मत मानिये। यही चलन है, दुनियादारी का।

कुत्ते भौंक कर अक्सर डराते हैं। असल में वे ख़ुद आपसे डरते हैं। करतब दिखाते, दिखते भर हैं साहसी, होते नहीं हैं। एक दृश्य याद आता है। एक कुत्ता बिल्ली के पीछे लगा था। उसे पकड़कर झंझोड़ने। बिल्ली का शिकार कर कभी खाते तो देखा नहीं कभी कुत्ते को। बिल्ली को लगा कि वह पकड़ में आ जायेगी, यदि उसने कुछ किया न तो...! और उसने देर नहीं की; वह पलटी। पलटकर, पिछली दोनों टांगों पर खड़ी हो गयी। अगले दोनों पंजे कुत्ते के सामाने कर लिये। क्रुद्ध मुद्रा पहन ली। शरीर फूल गया। मुख और शरीर के रोम तन कर खड़े हो गये। ख़ूँख्वार नुकीली पैने दाँत दिखने लगे। ये मांस नौंच भी सकते थे और उसे खा भी सकते थे। चूहे पकड़कर उसे कौने में ले जाकर उसका स्वाद लेते तो अक्सर देखा ही है।

आप भले न रहें, रह पायें, वे एकजुट रहते हैं। उनके मुक़ामों मुहल्लों में कोई ग़ैर कुत्ता नहीं घुस सकता। मुखिया सबको एकजुट कर हमला करता है। उनका जोशो-ख़रोश परवान चढ़ा होता है। सड़ियल से सड़ियल, ख़ाज-ख़ुजली वाला भी कहीं कौने अंतरे से निकल भौं-भौं करने लगता है। सवाल पेट का है। कहीं यह रुक गया तो उनका खाने पीने कोटा कुछ घट जायेगा। ताक़तवर हुआ तो, सरदार की कुर्सी के लिऐ ख़तरा बन सकता है।

असल में कुत्तों से उलझना बुद्धिमानी नहीं। उनसे प्रेम से मिलना जुलना, लाड़ करना, दुलराना ही ठीक है। क्योंकि आप उनसे पंगा लेकर शांति से रह नहीं पायेंगे। बस आप उनसे डरो नहीं। आपके चेहरे पर उनसे मिलने पर घबराहट न रहे, न ही लुरु-लुरु भाव। न हिक़ारत, न गुस्सा। बदला लेने की तो बात ही मत सोचिये। सौदा बहुत महँगा पड़   सकता है। घर फूँकने का शौक तो आपको होगा नहीं।

भौंकने के भी कई संकेत हैं. सूत्र हैं - उन्हें अनावरित कीजिए। वे आपसे परिचित होना चाहते हैं। कु्छ ला़ड़-प्यार चाहते हैं। मनुष्यता पर दो बातें करना चाहते हैं। अपने ऊपर घटित दुर्घटना पर आपकी संवेदना पाना चाहते हैं। पर आप हैं कि, बेपरहवाह। आपको बस अपनी पड़ी है। वे उमगते, उछलते आपकी और कुछ कहने आयें तो आप, चुपचाप खड़े हो जाइये। वे आयेंगे आपके कपड़े, शरीर सूँघेगे। यदि मौसमी बुखार चढ़ा होगा तो ज़्यादा से ज़्यादा अपने अगले दोनों पैर आपकी पेट के ऊपर रखेंगे। आप सांत्वना दीजिए। शांत रहिये। यदि आस्थावान भक्त हैं, तो हैं और डर रहे हैं तो हनुमान चालीसा पढ़ सकते हैं। और निडर हैं, तो इसकी ज़रूरत ही नहीं। बोल सकते हैं तो, दो एक वाक्य सद्भाव के बोल दीजिये। वह शांत होकर लौट जायेगा। पूंछ डुलाकर आपको बाई बाई कहकर । फिर कभी मिला तो हाय-हलो करेगा। बस इतना ही फंडा है। उसे सुख मिलेगा, शांति मिलेगी, कि चलो उनका, कोई पूछने वाला तो है। कभी इससे मदद मिल सकती है।

इतना अच्छा प्रेमी प्राणी। जब देखों तब प्यार में पूँछ हिलाता। लिड़ियाता, इठलाता आपके लिए किसी से भी झगड़ा मोल लेता। और आप उसे कुत्ता कहते हैं।

कुत्ते को कुत्ता मत कहिये। वह नाराज़ हो जायेगा।

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