आलेख - खुद हाशिये पर चले गए नफरत की बुनियाद रखने वाले
लेखक - सुसंस्कृति परिहार |
बाबरी ध्वंस की घटना की याद दिल दुखाने वाली है। यह ऐसी घटना थी जिसने देश में नफ़रत को जन्म दिया। उसके बाद 2002 का नरसंहार इसी की पृष्ठभूमि पर तैयार हुई दुखद त्रासदी है। इस नरसंहार ने एक ऐसे प्रधानमंत्री को सत्ता में बैठाया जिसने तमाम देश को पिछले एक दशक में ऐसे हालात में पहुंचाया जिससे निजात पाना इस सरकार के रहते मुश्किल लगता है किंतु अवाम पर भरोसा है जो निरंतर इनके हौसले पस्त कर रही है
बहरहाल, आज उस घटना की दुर्दांत याद के साथ एक प्रसंग की स्मृति ज़रूरी है। जब इस घटना के जिम्मेदार मुख्यमंत्री को अदालत ने सिर्फ एक दिन तिहाड़ जेल में रहने की सजा सुनाई तथा 20 हज़ार रुपए का अर्थदंड दिया। इससे यह तो जाहिर हो गया कि न्याय प्रणाली मुख्यमंत्री के मामले में कितने लचर फैसले देती है।ऐसे गुनहगारों को सुरक्षा कवच क्यों मिलता है यह विचारणीय मुद्दा है।
इसी की आड़ में प्रशासन और सुरक्षा बलों ने जो कुछ भी किया वह भी अक्षम्य है। 6 दिसम्बर 1992 की इस असंवैधानिक और नफ़रत फैलाने वाली घटना पर तत्कालीन भारत सरकार के प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने उत्तरप्रदेश सरकार को तत्काल प्रभाव से भंग कर दिया था। 7 नवम्बर को मुख्यमंत्री भूतपूर्व हो गए थे मगर प्रशासनिक अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई जिन्होंने अंधभक्तों की तरह काम किया। आगे चलकर गुजरात में इसे विस्तार मिला जहां मुख्यमंत्री और प्रशासनिक अधिकारियों ने मिलकर नरसंहार का स्वरूप दिया।
यह सब बढ़ते बढ़ते अब पूरे हिंदुस्तान को बर्बाद करने पर तुला है। अफसोसनाक ये कि ध्रुवीकरण के सहारे गुजरात का तत्कालीन मुख्यमंत्री भारत का प्रधानमंत्री बन जाता है और यही स्थितियां तमाम देश में बन जाती हैं। आज संविधान और लोकतंत्र दोनों के साथ हास्यास्पद खेल चल रहा है। कथनी करनी दोनों में मेल नहीं।
बहरहाल, इस नफ़रत की बुनियाद लोकतंत्र के दरवाजे पर रखने वाले कल्याण सिंह ने संघ की मंदिर बनाने की आज्ञा को जिस तरह शिरोधार्य किया उसका प्रतिफल उन्हें ये मिला पहले तो सत्ता गई फिर एक दिन की जेल। जबकि उनके साथ प्रमुख भूमिका निभाने वाले कद्दावर नेता लालकृष्ण अडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती पर आंच नहीं आई। इसकी वजह उनकी अपने अपराध की स्वीकार्यता थी। बाकी झूठे बच निकले। शायद कल्याण जी ने सोचा होगा इससे उनका भविष्य उज्जवल होगा लेकिन वे ना घर के रहे ना घाट के। विशेष बात ये कि जिस राम मंदिर के लिए उन्होंने असंवैधानिक कृत्य किया उसके भूमि पूजन या उद्घाटन में उन्हें पूछा नहीं गया।
बताया जाता है कि कल्याण सिंह ने एक साक्षात्कार में कहा था कि उनकी सरकार का इरादा मस्जिद गिराने का नहीं था वे चाहते थे कि उसे अन्य जगह स्थानांतरित कर दिया जाए। उन्होंने ये भी बताया था कि विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल ने मंदिर बनाने के लिए विशेष तिथि की घोषणा भी नहीं की थी।
इस मामले में सीबीआई के आरोप पत्र कुछ अलग ही कहते हैं।इस विध्वंस पर दाखिल सीबीआई के आरोप पत्र में लिखा है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने कहा था -कि अयोध्या में राम मंदिर बनकर रहेगा। सीबीआई के आरोप पत्र के मुताबिक 6 दिसम्बर को बाबरी मस्जिद ध्वंस के कुछ रोज पहले कल्याण सिंह ने कहा था कि रोक निर्माण पर लगी है विध्वंस पर नहीं।
कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री रहते हुए विवादित परिसर के आसपास 2.77 एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण पर्यटन क्षेत्र विकसित करने के नाम पर कर लिया था। विदित हो इसी ज़मीन पर लाखों कारसेवकों को इकट्ठा किया गया था। कल्याण सिंह ने मस्जिद बचाने की कोशिश नहीं की जबकि अयोध्या में दंगे रोकने बड़ी संख्या में अर्ध सैनिक बलों को तैनात किया गया था। लेकिन कारसेवकों के कार्य में इन्होंने हस्तक्षेप सरकार के इशारे पर नहीं किया।
जबकि मार्च 1993 में कल्याण सिंह ने कहा था कि विवादित ढांचे की सुरक्षा ना कर पाने का उन्हें कतई अफ़सोस नहीं है क्योंकि यह 464 साल पुराने गुलामी का चिन्ह था। इसी तरह 8 दिसम्बर को पत्रकारों से बातचीत करते हुए वे बोले थे कि यह ध्वंस भगवान की मर्जी से हुआ। इसका ना मुझे अफ़सोस है, ना कोई दुख है ना ही कोई पछतावा। हमारी सरकार राम मंदिर के नाम पर बनी थी हमारा मकसद पूरा हो गया।
उन्होंने गुमानपूर्वक यह भी कहा था सरकार मुझे कभी भी गिरफ्तार कर सकती है क्योंकि मैं ही हूं जिसने अपनी पार्टी के उद्देश्य को पूरा किया है। भाजपा कार्यकर्ताओं के सम्मेलन में मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद उन्होंने यह भी कहा था, जिसे अदालत में मामला करना है, करो। जांच आयोग बिठाना है, बिठाओ। सजा देनी है तो सज़ा दो। उन्होंने कहा कि मुझे गृहमंत्री शंकरलाल चव्हाण का फोन आया था। मैंने उनसे कहा था बात रिकॉर्ड कर लो, मैं किसी पर गोली नहीं चलवाऊंगा।
कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर मस्जिद को नुकसान नहीं होने देने का भरोसा दिया था लेकिन इसके बावजूद मस्जिद गिराई गई। सुप्रीम कोर्ट में कल्याण सिंह के खिलाफ मोहम्मद असलम ने अर्जी लगाई थी। वे अवमानना के दोषी सिद्ध हुए। अदालत ने फैसले में साफ़ कहा कि मुख्यमंत्री ने कोर्ट की अवमानना की है और देश के धर्मनिरपेक्ष तानेबाने को प्रभावित किया है इसलिए उन्हें सांकेतिक तौर पर एक दिन की सज़ा और 20 हज़ार रुपए का अर्थदंड लगाया जाता है।
काश ! यह सज़ा सख़्त होती तथा तमाम दोषियों को दंडित किया जाता तो आज देश में नफ़रतियों का ये रेला ना देखने मिलता। वैसे यह अयोध्या अध्याय उन मुख्यमंत्रियों के लिए चेतावनी भी देता है कि अति श्रद्धा जताना कभी कभी कल्याण सिंह, अडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमाभारती भी बना देता है।
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