नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को स्पष्ट किया कि किसानों के मुद्दों पर बातचीत के लिए उसके दरवाजे हर समय खुले हैं। न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने यह बयान शंभू बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन के मामले की सुनवाई के दौरान दिया। यह प्रदर्शन 13 फरवरी, 2024 से जारी है।
खंडपीठ ने पंजाब सरकार को चेताया कि आमरण अनशन पर बैठे किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल के स्वास्थ्य को लेकर यदि कोई अप्रिय घटना घटती है, तो इसकी ज़िम्मेदारी राज्य सरकार की होगी। न्यायालय ने कहा कि डॉक्टरों की राय के अनुसार, श्री दल्लेवाल को अविलंब चिकित्सा देखभाल हेतु अस्पताल में भर्ती कराया जाना चाहिए।
पंजाब के एडवोकेट जनरल गुरमिंदर सिंह ने अदालत को बताया कि किसान अदालत द्वारा नियुक्त समिति से संवाद स्थापित करने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। इस पर खंडपीठ ने दोहराया, "हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि न्यायालय का मंच हमेशा सबके लिए उपलब्ध है। किसान अपने सुझाव या मांगें सीधे अथवा प्रतिनिधियों के माध्यम से प्रस्तुत कर सकते हैं। सभी पक्षों की बात सुनने के बाद इन पर विचार किया जाएगा।"
अनशन पर अड़े किसानों के स्वास्थ्य पर न्यायालय की चिंता
एडवोकेट जनरल ने यह भी अवगत कराया कि पिछले 20 दिनों से भूख हड़ताल पर बैठे श्री दल्लेवाल ने चिकित्सा जांच करवाने से इनकार कर दिया है। हालांकि उनकी हालत स्थिर बताई गई है, डॉक्टरों ने उन्हें तुरंत भर्ती करने का परामर्श दिया है।
खंडपीठ ने कहा, "विचारों में मतभेद स्वाभाविक है, लेकिन आंदोलन के लिए प्रदर्शनकारियों का स्वस्थ होना भी अत्यावश्यक है। एक लोकतांत्रिक सरकार और संवैधानिक संस्था के रूप में, राज्य का यह दायित्व है कि किसी भी नागरिक को जान-माल की हानि से बचाया जाए।"
शांतिपूर्ण विरोध के संवैधानिक अधिकार पर जोर
खंडपीठ ने कहा कि वह सभी संबंधित पक्षों को इस बात के लिए प्रेरित करेगी कि समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं। सुनवाई की अगली तारीख गुरुवार निर्धारित की गई है।
पिछली सुनवाई में अदालत ने किसानों के विरोध प्रदर्शन को अस्थायी रूप से स्थगित करने या राजमार्ग से स्थानांतरित करने के लिए उन्हें मनाने का निर्देश दिया था। खंडपीठ ने इस बात पर बल दिया था कि शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन हर नागरिक का संवैधानिक अधिकार है, जो गांधीवादी मूल्यों के अनुरूप किया जा सकता है।
किसानों की प्रमुख मांगें और समिति की भूमिका
ज्ञात हो कि किसान लंबे समय से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी सहित कई अन्य मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। इनमें स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करना, किसानों और खेत मजदूरों के लिए पेंशन की व्यवस्था, कृषि ऋण माफी, भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 को बहाल करना और पिछले आंदोलनों के दौरान मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवजा देना शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट ने 2 सितंबर को एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था, जिसकी अध्यक्षता पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश नवाब सिंह कर रहे हैं। इस समिति का उद्देश्य किसानों और सरकार के बीच संवाद स्थापित कर समाधान निकालना है।
लोकतंत्र में विरोध और जिम्मेदारी का संतुलन
सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन नागरिकों का मौलिक अधिकार है। हालांकि, यह भी सुनिश्चित करना आवश्यक है कि आम जनजीवन प्रभावित न हो।
किसानों का यह आंदोलन शंभू और खनौरी बॉर्डर पर 13 फरवरी से जारी है। न्यायालय ने सरकार और किसानों दोनों से संवाद कायम कर गतिरोध समाप्त करने का आह्वान किया है।
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