लेखक - सुसंस्कृति परिहार |
महाकुंभ में युवाओं को भरपूर रोजगार मिलेगा मोदीजी का यह कहना था। इसलिए बड़ी संख्या में रोज़गार की तलाश में वे यहां पहुंच रहे हैं। उनमें सबसे ज्यादा, साधु वेश धरे युवा कुंभ की रौनक बढ़ा रहे हैं क्योंकि यह वेश आजकल देश का प्रतिष्ठित सिंबल बना हुआ है। ऐसे युवा साधुओं को दान दक्षिणा भी मिल रही है। कुछ जादूगरी के चमत्कार से लोगों को आकृष्ट कर रहे हैं। इनके यहां युवतियां कुछ ज़्यादा ही दिलचस्पी ले रही हैं। तो कुछ छीना झपटी और लूट के नये प्रयोग कर अपना धंधा जमा रहे हैं। योगी सरकार से निवेदन है ऐसे लोगों पर रहम करे ऐसे अवसर कई सालों बाद आते हैं। यह निवेदन इसीलिए है कि गत दिवस एक किशोर साधु पर लोग पिल पड़े, सनातन ज्ञान की परीक्षा लेने लगे उसके अखाड़े का नाम पूछे। उस युवा की फजीहत कर डाली।
एक दलित युवा ढपली बजा बजाकर लोगों को लुभा रहा था तो एक साधु ने उस पर जातिवाद का हमला कर, वहां से उसे खदेड़ दिया।
ऐसे अनेक युवा पीएम की इच्छा के अनुसार रोजगार की तलाश में यहां आए हैं। महाकुंभ क्या है यहां एक से एक मजमेबाज संत साधु और व्यापारी जुटे हुए हैं। युवाओं को भी अवसर देना चाहिए। देश भी तो ऐसे ही मजमेबाज़ों के हाथ में है फिर इनके प्रति ये व्यवहार अक्षम्य है। अभी तो जुम्मा जुम्मा दो-तीन रोज़ ही हुआ है। लगातार बेरोजगार युवाओं के जत्थे वहां पहुंचेंगे। याद रखिए बेरोजगारी कम करने का वादा इस महाकुंभ में साहिब जी ने किया हुआ है। बेरोजगारों का पहुंचना,साधु बनना, चमत्कार दिखाना, लूट करना कैसे गुनाह हो सकता है। यहां तो मज़मेबाजो से बहुत कुछ सीखने का अवसर भी है। कुंभ की समाप्ति पर ऐसे आंकड़ों को सरकार को बताना चाहिए।
इधर, लूट, अज्ञान और चमत्कार के बीच व्यापार तो चकाचक चल रहा है। जो महाकुंभ का सबसे अहम् मुद्दा है। वाकई विश्वगुरु के इस ज्ञान का मुकाबला दुनिया का कोई भी मुल्क नहीं कर सकता है। 144 साल बाद आए महाकुंभ का पुण्य पाने पौष पूर्णिमा को ही यहां एक करोड़ से अधिक लोग पहुंचे। 45 करोड़ लोगों के पहुंचने के आसार बताए गए हैं लेकिन यहां मजमेबाज़ों के तमाशों की बात शहर पहुंचते ही लोगों की उत्कंठा बढ़ रही है। मोदी मीडिया ने भी इसे परोसने में खासी दिलचस्पी ली है। रोजाना की गतिविधियां महाकुंभ चैनल भी दिखा रहा है। और सबसे बड़ी बात ये एक 146 साल बाद आया अवसर है भला लोग क्यों छोड़ेंगे।
खास बात ये हुई कि इस महाकुंभ का पुण्य लेने विदेशों से ईसाई समाज के विशिष्ट वर्ग के लोग आए। दिवंगत लॉरेन पॉवेल, स्टीव जॉब्स की पत्नी, कुंभ मेले में शिरकत कर रही हैं। वे1.25 लाख करोड़ की मालकिन है। लॉरेन 'ईसाई/बौद्ध दोनों में यक़ीन रखती हैं।बीफ़ भी खाती हैं। हिंदू नहीं हैं। उनका कहना है कि कुंभ की आस्था को समझने के लिए भारत आई हैं। उनको पेशवाई में शामिल किया गया। जिसमें सिर्फ साधु ही शामिल होते रहे हैं इतना ही नहीं उन्हें मुख्य यजमान बनाया गया है। एक ईसाई को यजमान बनाना क्या कोई सियासती खेल है। लारेन को वीआईपी घर और सुरक्षा प्रदान की गई है।
बड़ी विचित्र बात है कि करोड़ों सनातनियों ने एक ईसाई को क्यों बर्दाश्त किया। जबकि मुसलमानों के महाकुंभ मेले में प्रवेश पर रोक है। इस सम्बन्ध में कृष्ण अय्यर साहिब ने मायने की बात की है वे लिखते हैं मैं दावे के साथ कहता हूं कि "अगर आज कोई शेख की बेटी भी आती तो भी उन्हें इतनी ही इज़्ज़त मिलती, एक तो पैसा, दूसरा इंटरनेशनल इमेज। इनके ख़िलाफ़ बोलने की किसी ढोंगी बाबा की हिम्मत नहीं है।"
इससे यह सिद्ध होता है कि यह कोई आध्यात्मिक मेला नहीं पूरी तरह सियासती मेला है। साथ ही विश्वगुरु की अहमियत बता के व्यापारिक लाभ उठाना है। कुल मामला ये है महाकुंभ में एक से बढ़कर एक नौटंकीबाज इकट्ठा किए गए हैं। जिसका सनातन संस्कृति से कुछ लेना देना नहीं हैं। एक तरफ मुस्लिम वा दलितों से घृणास्पद व्यवहार हो रहा है और दूसरी ओर अरबपति ईसाई लारेन को माथे पर बिठाया जा रहा है। यह सनातन संस्कृति नहीं है वह तो वसुदेव कुटुम्बकम की भावना रखती है। सभी धर्मों के लोग उसके लिए बराबर है। इसी भटकाव में बेरोजगार युवाओं का जो प्रशिक्षण यहां रोजाना के नाम पर चल रहा है। उसके दूरगामी परिणाम खतरनाक होंगे। कल्पना कीजिए छल, छद्म, झूठ, लूट से भला देश का भला कैसे हो सकता है। स्नान ध्यान और दान दक्षिणा का यह केंद्र इलाहाबाद में आयोजित महाकुंभ का हाल चाल ठीक नहीं है। यह भीड़ तंत्र से अपनी सत्ता को बचाने का एक उपक्रम ज़्यादा है। गंगा मां के नाम पर आस्था के सैलाब में यह आम आदमी के शोषण का एक बड़ा हथकंडा है।
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