पटना। बिहार की राजनीति में एक बार फिर मकर संक्रांति के मौके पर आयोजित होने वाले दही-चूड़ा भोज ने सियासी हलचल तेज़ कर दी है। दही-चूड़ा भोज केवल एक पारंपरिक आयोजन नहीं है, बल्कि राजनीतिक समीकरणों को मापने का भी अहम जरिया बनता रहा है। इस बार के भोज को लेकर जो चर्चाएं चल रही हैं, उससे यह साफ है कि बिहार की सियासत में कुछ बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं।
🟢 पशुपति पारस ने भेजा बड़ा न्योता, लालू-नीतीश पर टिकी नजरें
रालोजपा प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव समेत तमाम बड़े नेताओं को अपने दही-चूड़ा भोज में शामिल होने का न्योता दिया है।
अगर इस आयोजन में लालू यादव और नीतीश कुमार एक साथ नजर आते हैं, तो यह बिहार की राजनीति में नए समीकरण की ओर इशारा कर सकता है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह भोज महागठबंधन और एनडीए के बीच की खाई को पाटने की कवायद भी हो सकती है।
पारस का यह भोज ऐसे समय में हो रहा है, जब बिहार में चुनावी तैयारियां जोर पकड़ रही हैं और हर दल अपने पत्ते खोलने के लिए सही मौके की तलाश में है।
🔴 राबड़ी देवी के आवास पर भी भोज की चर्चा
पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास पर भी हर साल की तरह दही-चूड़ा भोज के आयोजन की खबरें हैं। हालांकि, इसे लेकर अभी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
अगर इस बार राबड़ी आवास पर भोज होता है, तो सभी की नजर इस बात पर होगी कि एनडीए से कौन-कौन नेता इस भोज में शामिल होते हैं।
इतिहास रहा है कि लालू यादव के दही-चूड़ा भोज में विभिन्न दलों के नेता शामिल होते रहे हैं। खासकर नीतीश कुमार की मौजूदगी बड़ा राजनीतिक संकेत देती है।
⚪ भाजपा और कांग्रेस भी मैदान में उतरीं
बिहार की सियासत में भोज के इस खेल में भाजपा और कांग्रेस भी पीछे नहीं हैं।
कांग्रेस हर साल की तरह इस बार भी सदाक़त आश्रम में दही-चूड़ा भोज का आयोजन करेगी। इसमें महागठबंधन के सभी घटक दलों के नेताओं के शामिल होने की उम्मीद है।
वहीं, भाजपा भी अपने पार्टी कार्यालय में भोज करेगी। हालांकि, भाजपा के भोज में विपक्षी दलों के नेता अमूमन शामिल नहीं होते।
लेकिन इस बार का भोज खास इसलिए है क्योंकि 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों की रणनीति भोजों के दौरान ही तय होती नजर आ रही है।
🟡 जदयू के भोज को लेकर सवाल, कौन संभालेगा जिम्मेदारी?
हर साल जदयू की ओर से वशिष्ठ नारायण सिंह दही-चूड़ा भोज का आयोजन करते थे। लेकिन स्वास्थ्य कारणों से इस बार उनके आयोजन करने की संभावना कम है।
ऐसे में सवाल उठ रहा है कि इस बार जदयू की तरफ से भोज की जिम्मेदारी कौन संभालेगा?
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि जदयू भी जल्द ही अपने आयोजन की घोषणा कर सकती है।
🔥 दही-चूड़ा भोज के पीछे की सियासी चालें
बिहार की राजनीति में दही-चूड़ा भोज केवल एक सांस्कृतिक परंपरा नहीं है।
यह भोज नेताओं के बीच रिश्तों की गर्माहट और राजनीतिक समीकरणों को मापने का एक जरिया बन चुका है।
हर भोज के पीछे कई सियासी चालें होती हैं, जैसे –
- कौन भोज में शामिल होता है?
- कौन भोज से दूर रहता है?
- किस भोज में कौन नेता दिखते हैं?
इन सवालों से ही बिहार की भविष्य की राजनीति की दिशा तय होती है।
🟢 भोज के बाद शुरू होगा एनडीए का मिशन 2025
मकर संक्रांति के बाद, यानी 15 जनवरी से एनडीए अपना कार्यकर्ता सम्मेलन शुरू करने जा रहा है।
इस सम्मेलन का उद्देश्य एनडीए गठबंधन को जमीनी स्तर तक मजबूत करना है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि 15 जनवरी से मिशन 2025 का शंखनाद हो जाएगा और भाजपा-जदयू मिलकर अपने चुनावी अभियान की शुरुआत करेंगे।
✍️ क्या निकल सकते हैं राजनीतिक संकेत?
इस बार के दही-चूड़ा भोज से कुछ बड़े राजनीतिक संकेत निकल सकते हैं।
- क्या लालू-नीतीश की दूरी घटेगी?
- क्या एनडीए और महागठबंधन के बीच कोई नई सियासी दोस्ती होगी?
- क्या बिहार में कोई नया गठबंधन बन सकता है?
इन सवालों के जवाब दही-चूड़ा भोज में नेताओं की उपस्थिति और बयानबाजी से मिल सकते हैं।
बिहार की राजनीति में दही-चूड़ा भोज एक ऐसी परंपरा है, जो सियासी संकेतों का आइना दिखाती है।
हर भोज का राजनीतिक महत्व होता है।
इस बार भी मकर संक्रांति के भोज पर सबकी नजरें टिकी हैं कि कौन किसके साथ बैठकर भोज करता है और कौन दूरी बनाए रखता है।
जैसा कहा जाता है –
"बिहार की राजनीति का रास्ता रसोई से होकर गुजरता है।"
इस बार का दही-चूड़ा भोज बिहार की सियासी दिशा को नई करवट दे सकता है।
आने वाले दिनों में सियासी पारा चढ़ने वाला है, और इसकी शुरुआत दही-चूड़ा के स्वाद से ही होगी।
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