लेखक - सुसंस्कृति परिहार |
अयोध्या में राम मंदिर की स्थापना के बाद सनातनियों में बड़ी खुशी देखी गई थी, हालांकि वे भाजपा के राम सिद्ध हुए। जबकि राम भारतीय संस्कृति के प्रतीक पुरुष हैं। उनके विविध स्वरुप अनेकों राम कथाओं में मौजूद हैं। राम बाल्मीकि के समकालीन बताए जाते हैं इसलिए उनका लेखन सर्वाधिक सत्य के करीब माना जाता है। रामायण की कथा को तुलसीदास ने रामचरितमानस के रुप में विकसित किया। जो लोकप्रिय हुआ। उत्तर भारत से दक्षिण भारत और दक्षिण एशिया के कई द्वीपों में राम की अलग-अलग कथाएं विद्यमान हैं। फिर भी यह तय है कि राम नाम का विस्तार व्यापक है जबकि इन तमाम पुस्तकों को भारत का सर्वोच्च न्यायालय काल्पनिक कथाएं मानता है।
बहरहाल, राम इतने शिद्दत के साथ भारतीय समाज में विभिन्न कथाओं में मौजूद हैं कि मशहूर लेखक डॉ. भगवान सिंह को 'अपने अपने राम' लिखने की ज़रुरत महसूस हुई।
इन सब रामों के बीच एक महात्मा गांधी के भी राम थे। जिनसे वे बचपन से प्रभावित थे। लेकिन उम्र के साथ उनके राम का स्वरुप बदला वे निराकार हुए। ये सच है कि महात्मा गांधी ने धार्मिक सत्वों को कभी खोजा नहीं लेकिन अपने जीवन में उन की अनुभूति अवश्य की थी इसीलिए उनके विचारों में विरोधाभास मिलता है कहीं वे द्वैतवादी नज़र आते हैं तो कहीं अद्वैतवादी। वे अपने आप को वैष्णव कहते थे लेकिन राम नाम कीर्तन में उनका बड़ा विश्वास था। वे असह्य वेदना से पीड़ित व्यक्ति से कहते थे, राम नाम लो। किसी को नींद ना आ रही हो तो कहते थे। राम नाम जपो। यहां तक कि अंत में आकर उनका विश्वास हो गया था कि रामधुन से शारीरिक मानसिक रोग ठीक हो जाते हैं। पराकाष्ठा यह हुई कि हत्यारे की गोलियां खाकर जब वे गिरे तब भी हे राम दो शब्द जिव्हा पर आए। जबकि कहा जाता है -
जन्म-जन्म मुनि जतन कराहीं
अंत राम कहि आवत ना हीं ।
उन्होंने हरिजन के 28 अप्रैल 46 के अंक में राम को स्पष्ट करते हुए लिखा - "वे देह धारी राम की पूजा नहीं करते, निरंजन निराकार राम को पूजते हैं जो दशरथ पुत्र और अयोध्या के राजा नहीं है, वे सनातन हैं। वे अजन्मा हैं, वे अद्वितीय हैं। मैं उन्हीं से सहायता और वरदान मांगता हूं।"
गांधी के राम किस एक युग के राम नहीं है दशरथ पुत्र राम तो सतयुग, त्रेता ,द्वापर ,कलयुग से बंधा है। उनके राम किसी देश काल से नहीं बंधे। अयोध्या से जुड़े राम के संबंध में कोई ऐतिहासिक तथ्य उपलब्ध नहीं है। उनके चरित्र के जो अनेक रूप हमें भारत और अन्य देशों में मिलते हैं, वह कवियों की कल्पना और जीवन दृष्टि से निर्मित हैं ।
गांधी के राम में सांप्रदायिकता के विषाणु नहीं इसीलिए सब मिलकर गाते थे रघुपति राघव राजा राम----- ईश्वर अल्लाह तेरो नाम ! एक प्रतीक रूप में राम धर्मनिरपेक्ष शब्द बन गया राजा राम के निम्न कार्यों से भी गांधी प्रभावित थे -अन्याय का विरोध, सत्ता के बल पर अन्य लोगों के अधिकारों, राज्य, संपत्ति और स्त्री का अपहरण करने वालों का विरोध, रावण को दंडित करना, लंका में सुशासन की स्थापना, पिछड़ी जातियों को बराबरी का दर्जा देना, सुख- स्वास्थ्य की रक्षा कर एक न्याय प्रिय की भावना का सम्मान, अयोध्या, किष्किंधा, लंका का राज त्याग आदि। यही राम अनादि काल से भारतीय जन की पूर्णता की सपनों का मानदंड हैं।
एक जिज्ञासु का आश्रम में सवाल था, आपके राम दशरथ राम नहीं है, फिर ऐसा क्यों है कि आपकी प्रार्थना में सीताराम और राजाराम बार-बार आते हैं? इस प्रश्न के उत्तर में गांधी ने टिप्पणी की थी यह ठीक है कि राम धुन के क्रम में सीताराम और राजा राम शब्द बार-बार आते हैं लेकिन ध्यान देने की बात है कि राम से अधिक शक्तिशाली उनका नाम है तुलसी ने लिखा है-
कहो कहां लगी नाम बढ़ाई,
राम ना सकहिं नाम गुन गाई ।
निश्चित ही यह तय था कि राम का नाम ज्यादा प्रभावी था और यही गांधी के अहिंसा आंदोलन की ऊर्जा था। रामराज्य उनका आदर्श था, जिसे वे भारत में स्थापित करना चाहते थे। उन्होंने रामराज्य का प्रयोग सर्वोत्कृष्ट शासन या आदर्श शासन के रूपक (प्रतीक) के तौर पर किया जाता है। रामराज्य, लोकतन्त्र का परिमार्जित रूप माना जा सकता है। वैश्विक स्तर पर रामराज्य की स्थापना गांधी जी की चाह थी। गांधी जी ने भारत में अंग्रेजी शासन से मुक्ति के बाद ग्राम स्वराज के रूप में रामराज्य की कल्पना की थी। जबकि वर्तमान समय में राम राज्य स्वार्थ साधने का नाम बन गया। राम के सर्व व्यापी रूप को खंडित किया गया। उसमें सद्भाव के प्रतीक राम अलगाव और टकराव के प्रतीक बन गए जबसे जय श्रीराम का उद्घोष हुआ राम-राम और जय सिया राम जी की परंपराओं को सांप सूंघ गया। गांधीजी ने कहा था `मैं सत्य को राम के नाम से पहचानता हूं। मेरी परीक्षा की कठिन से कठिन घड़ी में इसी नाम सत्य ने मेरी रक्षा की है' यह सत्य आज सिर्फ राम नाम सत्य के रूप में ही देखने मिलता है। चारों ओर झूठ का बोल बाला है। आज यदि, राम ने नैतिकता के जो भी शिखर छुए उनको छूने की सिर्फ इच्छा ही जाग जाए तो गांधी के राम वापसी की उम्मीद की जा सकती है और गांधी के सर्व व्यापी निराकार राम की वापसी का मतलब होगा भारतीय जनमानस के सपनों का साकार होना देश में सौहार्द्र और सद्भाव की स्थापना।
आज के कथित राम राज्य के विकास को देखकर लगता है कि भाजपा के ये राम भारतीय जनमानस के राम नहीं है।सही राम तो गांधी के ही राम थे, जो अंतिम समय पर उनकी जिव्हा पर आए थे। आज देश को ऐसे ही राम की ज़रुरत है जो जन जन में व्याप्त हैं और जिनसे संपूर्ण भारतवासी मोहब्बत करते हैं। नाथूरामियों की नहीं, जो बात राम की करते हैं और आचरण नाथूराम का रखते हैं।
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