CBI को राज्यों के केंद्र अधिकारियों पर FIR दर्ज करने के लिए मंजूरी की आवश्यकता नहीं: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय


नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने हालिया फैसले में स्पष्ट किया है कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को राज्यों में तैनात केंद्र सरकार के अधिकारियों के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करने हेतु राज्य सरकारों की स्वीकृति अनिवार्य नहीं है। यह निर्णय सीबीआई के अधिकार क्षेत्र को और सुदृढ़ करता है और भ्रष्टाचार विरोधी मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप की एक नई दिशा तय करता है।

न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की खंडपीठ ने दो जनवरी को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश को निरस्त कर दिया जिसमें सीबीआई द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपों में दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया गया था। पीठ ने स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार के कर्मचारी, चाहे वे किसी भी राज्य में कार्यरत हों, उनके खिलाफ सीबीआई को जांच करने के लिए अलग से राज्य की मंजूरी की जरूरत नहीं है।

न्यायालय ने अपने फैसले में कहा, "जिस स्थान पर अधिकारी नियुक्त है, उस पर ध्यान दिए बिना यह तथ्य स्थापित होता है कि वे केंद्र सरकार के कर्मचारी हैं और उन पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत गंभीर आरोप हैं, जो एक केंद्रीय अधिनियम है।"
  • मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद उस वक्त सामने आया जब आंध्र प्रदेश में कार्यरत दो केंद्रीय अधिकारियों के खिलाफ सीबीआई ने भ्रष्टाचार के आरोपों में प्राथमिकी दर्ज की। इन अधिकारियों ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में सीबीआई के अधिकार क्षेत्र को चुनौती देते हुए यह तर्क दिया कि विभाजन के बाद बने नए आंध्र प्रदेश राज्य में, पहले से दी गई सहमति स्वतः मान्य नहीं होनी चाहिए।

उच्च न्यायालय ने आरोपियों के इस तर्क को स्वीकार करते हुए सीबीआई की प्राथमिकी को रद्द कर दिया था। अदालत ने माना था कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (DSPE Act), 1946 के तहत दर्ज मामलों के लिए राज्य की नई सहमति आवश्यक है।
  • सुप्रीम कोर्ट का तर्क और फैसला
हालांकि, न्यायमूर्ति रविकुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने उच्च न्यायालय की इस व्याख्या को खारिज कर दिया। अपने 32-पृष्ठीय फैसले में उन्होंने कहा कि राज्य विभाजन के बावजूद, 1 जून 2014 को लागू सभी कानून तेलंगाना और आंध्र प्रदेश दोनों पर तब तक लागू रहेंगे जब तक उनमें कोई संशोधन नहीं किया जाता।

पीठ ने कहा, "आंध्र प्रदेश के विभाजन के बावजूद डीएसपीई अधिनियम के तहत दी गई राज्य की सामान्य सहमति यथावत है। ऐसे मामलों में नई सहमति लेने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह औपचारिकता केवल समय और संसाधनों की बर्बादी होगी।"
  • फैसले का व्यापक प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल सीबीआई की जांच प्रक्रिया को सुदृढ़ करेगा, बल्कि भ्रष्टाचार के मामलों में तेजी से कार्रवाई सुनिश्चित करने में भी मदद करेगा। यह फैसला स्पष्ट करता है कि राज्यों में तैनात केंद्र सरकार के कर्मचारियों पर भ्रष्टाचार के मामलों में सीबीआई बिना किसी देरी के जांच शुरू कर सकती है, जो एक महत्वपूर्ण न्यायिक सुधार की दिशा में कदम है।

इस फैसले से यह भी स्पष्ट हो गया है कि केंद्र और राज्य सरकारों के बीच प्रशासनिक संतुलन बनाए रखते हुए, सीबीआई जैसी संस्थाओं को उनके अधिकार क्षेत्र में स्वतंत्रता दी जानी चाहिए ताकि वे अपने कर्तव्यों का निर्वहन प्रभावी ढंग से कर सकें।

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