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लेखक - सुसंस्कृति परिहार |
मध्यप्रदेश के सतना कलेक्टर ने एक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक को निलंबित कर दिया है। उसका गुनाह यह था कि उसने अपने अधिकारियों से अनेक बार विद्यालय की बाउंड्री वाल बनाने के लिए इल्तज़ा की थी। जब उनकी बात नहीं सुनी गई तो वे स्कूल की समस्या लेकर मंगलवार को होने वाली जनसुनवाई में कलेक्टर कार्यालय पहुंच गए।
कलेक्टर ने आव देखा ना ताव इतना सुनते ही कि वह फलां-फलां विद्यालय में सरकारी शिक्षक है। जमकर फटकार लगाई और उसे निलंबित कर दिया।
अब, उस शिक्षक का क्या कुसूर था। जब शिक्षा विभाग के अधिकारी मौन रहे तो क्या शालेय हित में उसका वहां जाना जुर्म था।
बताया जा रहा है कि वह एक महिला शिक्षिका के सहारे स्कूल छोड़कर यहां आया था और विद्यार्थियों का नुक़सान हुआ। उसने अपने सक्षम अधिकारी से अनुमति नहीं ली। साहिब ये बताइए क्या शिक्षा विभाग उन्हें अनुमति प्रदान करता। देखा जाए, तो प्राय: समस्त सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में दो शिक्षक नियुक्त हैं। जहां एक महिला शिक्षक वहां सारी सरकारी जानकारियों की आपूर्ति कर पुरुष शिक्षक ही इधर-उधर दफ्तरों में पहुंचाता है। आमतौर पर बहुत कम दिन शिक्षक कार्यस्थल पर उपस्थित रह पाते हैं। प्राथमिक शिक्षक ही है जो तमाम सरकारी योजनाओं और जानकारियों को ग्रामीण नागरिकों तक पहुंचाते हैं। नेताओं की रैलियों में बच्चों और महिलाओं को पहुंचाते हैं। वे पशु गणना से लेकर टीकाकरण, जनगणना, मतदान और विभिन्न ग्रामीण शिविरों में अपनी अहम् भूमिका निभाते हैं। सरपंचों और पंचों के आदेशों का भी पालन करते हैं। वे दूर-दूर से विद्यालय पहुंचते हैं। इतनी भूमिकाओं में जिन विद्यार्थियों की शिक्षा की कलेक्टर महोदय चिंता कर रहे हैं, वह क्या मुनासिब हो सकती है।
फिर शिक्षक अपनी निजी समस्या लेकर तो नहीं गया था। काश! आपने उस शिक्षक से बात की होती तो शिक्षा विभाग में बैठे घाघों को आप चीन्ह पाते। उन पर कार्रवाई होती तो पंगु शिक्षा विभाग में गति आती ।
लेकिन चहुंओर बढ़ती तानाशाह वृत्ति के वशीभूत होकर जो कदम उठाया गया है वह कतई हितकर नहीं है और ना ही उचित। इस मामले की पूरी मीमांसा होनी चाहिए। एक नेक विचार वाले निरीह कमजोर शिक्षक पर ये ज़्यादती शिक्षा विभाग को और प्रशय देगी तथा शिक्षक बेजुबान हो जाएंगे जिससे आपकी शिक्षा को बढ़ावा देने की सोच को निश्चित तौर पर नुकसान पहुंचाएगा।
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