आलेख : सियासत में महलों की चर्चा उफ़ान पर लेखक - सुसंस्कृति परिहार


 लेखक - सुसंस्कृति परिहार 

इन दिनों दिल्ली की सियासत में महलों की चर्चा उफ़ान पर है। तकरीबन एक माह पहले दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा निर्मित मुख्यमंत्री आवास की साज-सज्जा से जो स्वरुप सामने आया। वह किसी महल के दर्शन करा रहा था जिसे भाजपा ने शीशों की अधिकता के कारण शीश महल नाम दिया। वह इतना चर्चा में रहा कि दिल्ली की अवाम का आम आदमी पार्टी से विश्वास डिगाने में काफ़ी कुछ सफ़ल रहा। अब उस शीशमहल में भाजपा नवागत मुख्यमंत्री (प्रवेश वर्मा ) रहने जाने वाले हैं। इस नवीनीकरण और साज-सज्जा पर 45 करोड़ ख़र्च किया गया। हालांकि शीशमहलों की इस इबारत को सही पढ़ें, तो सबसे चर्चित शीशमहल जयपुर के आमेर महल में स्थित है। यही वह शीशमहल है, जिसके बारे में कभी कवि बिहारी ने ये दोहा लिखा था:

प्रतिबिंबित जयसाहि-दुति,
दीपति दरपन-धाम

भाजपा की दिल्ली जीत के बाद एक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ कई मंजिला भवन वाले दो महलों की हकीकत सामने आ गई, जिसे रंग महल कहा जा रहा है। केशव कुंज बनाम यह रंग महल लगभग चार एकड़ में फैला है। जिसमें 5 लाख वर्ग फुट के निर्मित क्षेत्र के साथ तीन ,12 मंजिला टावर, 300 कमरे, 270 कारों के लिए एक पार्किंग स्थान के अलावा बहुत कुछ है। संघ के मुताबिक ये टावर 150 करोड़ में बनकर तैयार हुआ। नागपुर मुख्यालय अब दिल्ली पहुंच गया है। 19 फरवरी को संघ प्रमुख मोहन भागवत यहां पहुंचने वाले हैं।

संघ तो एक सांस्कृतिक संगठन के नाम पर काम करने का दावा करता रहा है किंतु 2014 में भाजपा की दिल्ली सत्ता आते ही उसका सही रुप सामने आ गया है। इससे पहले उसने गुजरात नरसंहार के बाद मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को जिस तरह प्रधानमंत्री का चेहरा बनाकर पेश किया, उससे उनकी अंदरूनी हकीकत को समझा जा सकता है।

देखते ही देखते भाजपा की बदौलत संघ ने रंगमहल दिल्ली में बना लिया। भाजपा के दिल्ली मुख्यालय का आलीशान महल तथा प्राय:सभी जिलों में स्थित मुख्यालय छोटे महल की तरहा ही हैं। याद आता पूर्व प्रधानमंत्रियों के छोटे-छोटे तीन कमरों के आवास। आज के प्रधानमंत्री का आवास भी महल से कम नहीं है, जिसे सेंट्रल विस्टा के पास देखा जा सकता है।

सवाल इस बात का है कांग्रेस ने अपने तकरीबन साठ वर्ष के शासन में जिस तरह के मुख्यालयों में काम किया, उसे देखकर कांग्रेसी हलकों में अपने भवन की बात की गूंज अक्सर सुनाई देती रही। ले देकर सिमटती और मिटाई जाती कांग्रेस ने इसी वर्ष दिल्ली में अपना कार्यालय इंदिरा भवन के नाम से उद्घाटित किया। जो मुख्यतः कांग्रेस के इतिहास को संजोए रखने का एक प्रयास है ताकि भाजपा के कांग्रेस के विरुद्ध अनर्गल प्रलाप की हकीकत को समझाया जा सके। जो प्रचार पिछले एक दशक से आम जनता के बीच किया जा रहा है।

अफसोसनाक है इन महलों का निर्माण यह देश की जनता के शोषण की बुनियाद पर खड़े किए गए हैं। राजा  गए रानी गए तो महलों की क्या ज़रूरत है। इसका मतलब तो यही होता है कि लोकतंत्र की आड़ में एक बार फिर सामंतशाही ज़ोर पकड़ चुकी  है। धार्मिक भावनाओं को उकेरा जा रहा है। स्त्री अस्मिता तार तार हो रही है। महाकुम्भ में मौतों का जश्न हो रहा है। अप्रवासी भारतीय बेड़ियों में लगातार चले आ रहे हैं। देश प्रमुख संवेदना शून्य होकर सज़दा किए जा रहे हैं। तमाम लोकतांत्रिक व्यवस्था का कचूमर निकाला जा रहा है। ये सब फासिस्टवादी तौर तरीके हैं। अमेरिका परस्त इज़राइल की तरह हमारा देश गाज़ा बनने की ओर अग्रसर है। यह इस बात से ज़ाहिर होता है कि पेंटागन से संचालित सरकार जबरिया भारत को घिटे पिटे हथियार पकड़ा कर भविष्य के युद्ध की रणनीति तैयार कर रही है। वरना हमारे शांतिप्रिय राष्ट्र को हथियारों की क्या ज़रूरत। क्या अब हम बांग्लादेश से युद्ध की ओर ढकेले जा रहे हैं। पाकिस्तान तो लुट पिट चुका है।

विदित हो, महलों में और शीशमहलों में रहने वाले लोग अपने को कतई सुरक्षित ना समझ लें। जब मौत आती  है तो ओसामा बिन लादेन, सद्दाम  हुसैन भी बच नहीं पाते। मुसोलिनी, हिटलर की दुर्दशा किसी से छुपी नहीं है। ज़रुरत इस बात की है कि लोकतान्त्रिक सरकारें, आम आदमी की तरह यदि नहीं रहना सीखेंगे तो उनका हश्र भी ऐसा ही होगा।

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