थर्मल पावर प्लांट्स की ज़िम्मेदारी तय हो: बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ


जबलपुर। मध्यप्रदेश में संचालित 15 सरकारी एवं निजी थर्मल पावर प्लांटों की संयुक्त विद्युत उत्पादन क्षमता 22,730 मेगावाट है। इन संयंत्रों से प्रतिवर्ष लगभग 2 करोड़ 85 लाख 17 हजार 588 मेट्रिक टन राख उत्पन्न होती है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 31 दिसंबर 2021 को जारी अधिसूचना के तहत कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों को अपनी समस्त राख का 100% उपयोग सुनिश्चित करना अनिवार्य किया गया है। हालांकि, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की गाइडलाइंस के बावजूद, कई थर्मल पावर प्लांट इस नियम का पालन करने में विफल हो रहे हैं।

प्रदूषण नियंत्रण नियामक संस्थाओं के नए मानकों के तहत, चिमनी से निकलने वाले धुएं में 125 मिलीग्राम प्रति घन मीटर तक धूलकणों की सीमा निर्धारित की गई है, किन्तु वास्तविकता इससे परे है। चिमनियों से उड़ने वाली फ्लाई ऐश स्पष्ट रूप से वातावरण में व्याप्त हो रही है, जिसे स्थानीय लोग अपनी नंगी आंखों से देख और अनुभव कर सकते हैं।

झाबुआ थर्मल पावर प्लांट पर गंभीर आरोप

बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ ने झाबुआ थर्मल पावर प्लांट पर आरोप लगाया है कि संयंत्र से निकलने वाली राख ने आसपास के खेतों को बंजर बना दिया है। लगातार बढ़ते प्रदूषण के चलते किसानों को बार-बार अपनी फसल खराब होने की मार झेलनी पड़ रही है, जिससे वे खेती छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं।

क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक जलस्रोत गोंडी नाला, जो किसानों और मवेशियों के लिए जीवनरेखा माना जाता है, भी राख से प्रदूषित हो चुका है। यह नाला टेमर नदी से मिलता है, जो आगे चलकर नर्मदा नदी की सहायक धारा बनती है। यदि यह प्रदूषण जारी रहा तो पूरे जलचक्र और पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।

प्लांट के आंकड़े और पर्यावरणीय चिंताएं

ग्राउंड रिपोर्टर शिशिर अग्रवाल के अनुसार, झाबुआ पावर प्लांट की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2023 से मार्च 2024 तक संयंत्र में 29,18,265 मिलियन टन कोयले का उपयोग किया गया। मार्च 2024 के अंत तक, संयंत्र में 17,24,228 मिलियन टन फ्लाई ऐश जमा हो चुकी थी, जिसमें से मात्र 8,35,086 मिलियन टन (48.43%) का उपयोग किया गया।

बरगी बांध विस्थापित संघ की मांग

बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ ने सरकार से मांग की है कि थर्मल पावर प्लांट प्रबंधन पर पर्यावरणीय एवं सामाजिक जवाबदेही तय की जाए। संघ का कहना है कि प्रदूषण फैलाने वाले संयंत्रों को जवाबदेह बनाते हुए उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि वे राख और अन्य अपशिष्टों का उचित निपटान करें।

सामाजिक जवाबदेही के तहत स्थानीय निवासियों के स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छ पेयजल एवं रोजगार जैसी बुनियादी आवश्यकताओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। यदि जल्द कदम नहीं उठाए गए, तो यह प्रदूषण न केवल स्थानीय लोगों के जीवन पर, बल्कि पूरे पर्यावरणीय संतुलन पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकता है।

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