सुप्रीम कोर्ट ने आदतन अपराधी नाबालिग को जमानत देने से किया इनकार


नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने एक नाबालिग आरोपी को जमानत देने से इंकार कर दिया, जो कई बार अपराध करने का दोषी पाया गया है। अदालत ने सोमवार को यह स्पष्ट किया कि महज अल्पायु होने से किसी भी व्यक्ति को कानून के दायरे से स्वतः छूट नहीं मिल सकती।

न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की खंडपीठ ने आरोपी के आपराधिक रिकॉर्ड का अवलोकन किया और पाया कि उसके विरुद्ध पहले से ही चार समान अपराधों के मामले दर्ज हैं। अदालत ने यह इंगित किया कि याचिकाकर्ता, जो पहले से ही तीन अन्य मामलों में जमानत पर था, बार-बार अपनी उम्र का लाभ उठाकर कानूनी दंड से बचने का प्रयास कर रहा है।

खंडपीठ ने कड़े शब्दों में कहा, "यह सुधारने योग्य नहीं है! बिल्कुल भी नहीं!"

मामला जबरन वसूली और आपराधिक धमकी से संबंधित था, जिसमें राजस्थान उच्च न्यायालय ने आरोपी को जमानत देने से इनकार कर दिया था।

अदालत ने यह स्वीकार किया कि आरोपी, जो किशोर न्याय अधिनियम के तहत अधिकतम तीन वर्ष की सजा का प्रावधान रखता है, वह पहले ही एक वर्ष और आठ महीने हिरासत में बिता चुका है। बावजूद इसके, सुप्रीम कोर्ट ने उसे राहत देने से मना कर दिया।

इसके अतिरिक्त, पीठ ने यह भी संज्ञान में लिया कि गवाहों की अनुपस्थिति के कारण मुकदमे की प्रक्रिया लंबित पड़ी हुई है। न्यायालय ने किशोर न्यायालय के पीठासीन अधिकारी को निर्देश दिया कि वे गवाहों की उपस्थिति सुनिश्चित करें ताकि न्यायिक प्रक्रिया बिना किसी अवरोध के आगे बढ़ सके।

सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की शीघ्र सुनवाई का आदेश देते हुए निचली अदालत को निर्देश दिया कि यदि आवश्यक हो, तो प्रतिदिन सुनवाई कर चार माह के भीतर मुकदमे की कार्यवाही पूर्ण की जाए।

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