आलेख : 'निराला' वसंत लेखक - सुसंस्कृति परिहार


लेखक - सुसंस्कृति परिहार 

वसंत का आना हो और निराला की जी की याद ना आए ऐसा मुमकिन नहीं। निराला और लाड़ला वसंत एक दूसरे के बिन अधूरे से लगते हैं। वे सूर्यकांत त्रिपाठी के साथ निराला भी हैं, ना इसलिए वे अन्य कवियों से इतर भी देखने की सामर्थ्य रखते हैं, वे ख़ुशनुमा धरती में उन सूखी डालों पर भी नज़र रखते हैं, जिनको भी वसंत की दरकार है। आइए कुछ वासंती रचनाओं में उन्हें देखते हैं - कैसे प्रफुल्लित मन से वे वसंत के आगमन की सूचना सबसे पहले सखि को देते हैं -
सखि वसन्त आया  
भरा हर्ष वन के मन 
नवोत्कर्ष छाया  
किसलय-वसना नव-वय-लतिका 
मिली मधुर प्रिय-उर तरु-पतिका, 
मधुप-वृन्द बन्दी 
पिक-स्वर नभ सरसाया 

वे पहली सूचना उसे ही देते हैं जो सुकोमल मन और संवेदनशील मनोभावों को पहले-पहल जान और पहचान लेती है तथा जिस पर प्रकृति का सीधा प्रभाव पड़ता है। वे भी पंत की तरह सुकुमार नज़र आते हैं, वसंत के सम्मोहन में सतत कैद होते जाते हैं। वसंत अपने पूरे रंग वैभव के साथ उनके गीतों में नज़र आता है। वसंत में धरती पग पग रंग जाती है; वृक्षों के अंतस की लालिमा निखर जाती है। वसंत की सुषमा को वे अपनी इस रचना में पूर्ण लालित्य के साथ उकेरते हैं
रँग गई पग-पग धन्य धरा – 
हुई जग जगमग मनोहरा। 
वर्ण गंध धर, मधु-मरन्द भर
तरु उर की अरुणिमा तरुणतर
खुली रूप कलियों में पर भर
स्तर-स्तर सुपरिसरा।
गूँज उठा पिक-पावन पंचम
खग-कुल-कलरव मृदुल मनोरम,
सुख के भय काँपती प्रणय-क्लम
वन श्री चारुतरा।

उनकी पैनी दृष्टि से वह रूखी शुष्क डाल भी नहीं छुप पाती वह उससे भी संवाद करते हैं, उसे वसंत का संदेश सुनाते हुए आश्वस्त करते हैं-

रुखी री यह डाल वसन वासन्ती लेगी.
देख खड़ी करती तप अपलक 
हीरक-सी समीर माला जप 
शैल-सुता अपर्ण - अशना 
पल्लव -वसना बनेगी
वसन वासन्ती लेगी
हार गले पहना फूलों का
ऋतुपति सकल सुकृत-कूलों का
स्नेह, सरस भर देगा उर-सर
स्मर हर को वरेगी 
वसन वासन्ती लेगी

कूकती कोयल की मधुरिम गूज वसंत के आगमन की उद्घोषणा मादकता का संचार कुंज कुंज में करती है  ।
कुंज -कुंज कोयल बोली है,
स्वर की मादकता घोली है 

 चहुंओर रंगों की रंगीनियां उन्हें अपनी ओर खींचती हैं वे लिखते हैं समूची धरती पर जैसे वसंत ने अपनी कूची से अनेक रंग भर दिए हों। देखें-यह रंगीन नज़ारा

“कूची तुम्हारी फिरी कानन में
फूलों के आनन आनन में
फूटे रंग वासंती, गुलाबी,
लाल पलास, लिए सुख, स्वाबी, 
नील, श्वेत शतदल सर के जल, 
चमके हैं केशर पंचानन में।

हालांकि निराला जीवन भर अभावों के बीच रहे मगर जीवन में बीते कुछ वासंती  मधुर क्षणों को भूल नहीं पाए। कवि के जीवन में वसन्त का माधर्य लेकर पहले तो उनकी सहचरी मनोहरा देवी आई, बाद में लाडली बिटिया सरोज वसंतस्वरूपा आई। कवि की ये स्मृतियाँ सरोज-स्मृति कविता में -

देखा मैंने, वह मूर्ति धीति/
मेरे वसंत की प्रथम गीति-
श्रृंगार, रहा जो निराकार,
रस कविता में उच्छ्वसित धार
गाया स्वर्गीय प्रिया-संग-
भरता प्राणों में राग – रंग,
रति रूप प्राप्त कर रहा वही,
आकाश बदलकर बना मही।”


सचमुच निराला ने वसंत को जितना शिद्दत से आत्मसात कर उसके विभिन्न स्वरुपों को अपनी अनेक कविताओं में पिरोया वह अद्भुत है, लगता है प्रकृति के अलौकिक वसंत के सम्मोहन ने ही उनसे कई रचनाएं लिखवाईं। महाप्राण निराला का जन्म भी वसंत पंचमी के दिन हुआ। जन्म से अंत तक इसीलिए वसंत उनके साथ रहा, वे इसलिए यह कह पाते हैं-

अभी न होगा मेरा अन्त
अभी-अभी ही तो आया है
मेरे वन में मृदुल वसन्त
अभी न होगा मेरा अन्त

Post a Comment

أحدث أقدم